
गणेशशंकर विद्यार्थी
विजयदत्त श्रीधर
(संस्थापक-संयोजक, सप्रे संग्रहालय, भोपाल)
9 नवंबर, 1913 को जब 'प्रताप' का जन्म हुआ, तब गणेशशंकर विद्यार्थी 23 वर्ष के युवा थे। उनके पत्रकारी खाते में कुल जमा दो साल का 'सरस्वती' और 'अभ्युदय' के सह-संपादन का अनुभव था। परंतु इतने अल्प समय में ही उन्होंने अपनी विलक्षण मेधा का परिचय दे दिया था। आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी ने अपने संस्मरण में इसे रेखांकित किया है। उन दिनों किसी पत्र-पत्रिका का प्रकाशन करते समय संपादक अपनी नीति और उद्देश्य की घोषणा करते थे।
'प्रताप' ने प्रवेशांक (9.11.1913) में लिखा- 'समस्त मानव जाति का कल्याण हमारा परमोद्देश्य है और इस उद्देश्य की प्राप्ति का एक बहुत बड़ा और बहुत जरूरी साधन हम भारतवर्ष की उन्नति को समझते हैं। हम अपनी प्राचीन सभ्यता और जातीय गौरव की प्रशंसा करने में किसी से पीछे नहीं रहेंगे और अपने पूजनीय पुरुषों के साहित्य, दर्शन, विज्ञान और धर्मभाव का यश सदैव गाएंगे। किन्तु, अपनी जातीय निर्बलताओं और सामाजिक कुसंस्कारों तथा दोषों को प्रकट करने में हम कभी बनावटी जोश या मसहल-वक्त से काम न लेंगे, क्योंकि हमारा विश्वास है कि मिथ्याभिमान जातियों के सर्वनाश का कारण होता है।'
युवा संपादक गणेशशंकर विद्यार्थी का चिंतन, युगबोध और सामाजिक सरोकारों से सम्पृक्त संपादकीय निष्ठा कितने प्रौढ़-परिपक्व और गुरु-गंभीर थे, इसका प्रमाण उनके संपादकीय उद्घोष से मिलता है। यह उद्घोष आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी विरचित इस दोहे के रूप में 'प्रताप' के प्रत्येक अंक में मुखपृष्ठ पर पत्र के नाम के ठीक नीचे लिखा होता था-
'जिसको न निज गौरव तथा निज देश का अभिमान है।
वह नर नहीं, नर-पशु निरा है और मृतक समान है।।'
जन-पक्षधर पत्रकारिता के कारण 'प्रताप' को बारम्बार मुसीबतों का सामना करना पड़ा। जमानतें मांंगी गईं और जब्त की गईं, जेल जाना पड़ा। बीच-बीच में 'प्रताप' का प्रकाशन अवरुद्ध भी हुआ। परंतु जिस जन-पक्षधरता के कारण संकट आए, उस जनता ने 'प्रताप' का साथ देने में कोताही नहीं की। विद्यार्थी जी ने भी 'प्रताप' को ट्रस्ट का अखबार बनाया। वे उन संपादकों में थे, जो मानते थे कि संपादक के नाम का उल्लेख किसी अंक में एक बार से अधिक नहीं होना चाहिए। हिन्दी साहित्य सम्मेलन के गोरखपुर अधिवेशन (1930) की अध्यक्षता विद्यार्थी जी ने की। 'प्रताप' में इसकी रपट तो छपी पर चित्र छापने की अनुमति उन्होंने नहीं दी। विद्यार्थी जी के संपादकीय आदर्श की अनुकरणीय विशिष्टि है पत्र में छपने वाले एक-एक अक्षर की नैतिक और वैधानिक जिम्मेदारी स्वीकार करना। इसके अलावा संवाद लेखक का नाम प्रकट नहीं करना, जेल जाने की कीमत पर भी नहीं।
'प्रताप' पत्रकारिता की पाठशाला भी रहा। शहीद-ए-आजम भगत सिंह की क्रांतिकारिता को विद्यार्थी के 'प्रतापÓ में ठांव मिला। चाहे किसानों और मजदूरों का शोषण हो या उन पर अत्याचार, स्वतंत्रता की अभिलाषा हो या पुलिस और फिरंगी हुकूमत की प्रताडऩा का प्रतिरोध, धार्मिक पाखंडों और अंधविश्वासों की लूट, विषमताएं और जाति प्रथा के अभिशाप, भूख, बेकारी, बेगारी, अशिक्षा, बीमारी - इनके कारक और कर्ता, सभी के खिलाफ 'प्रताप' ने बेबाक कलम चलाई। उनकी कथनी और करनी एक थे।
विद्यार्थी जी सांप्रदायिकता के विरुद्ध थे। शहीद-ए-आजम भगत सिंह-राजगुरु-सुखदेव की फिरंगियों की ओर से कायराना फांसी के दो दिन बाद कानपुर में भड़की दंगों की ज्वाला शांत करने के लिए गणेशशंकर विद्यार्थी सड़कों पर निकल पड़े। दंगाइयों के हाथों 25 मार्च, 1931 को उनका बलिदान हो गया। अपने आदर्शों पर अडिग निष्ठा की इससे बड़ी मिसाल कहां मिलेगी, तभी तो गणेशजी की शहादत पर महात्मा गांधी को भी स्पृहा हुई थी।
विद्यार्थी जी के व्यक्तित्व का एक और पक्ष विचारणीय है, वह है भविष्य में झांकने की क्षमता। विष्णुदत्त शुक्ल की पुस्तक 'पत्रकार कला' (1930) की भूमिका में उन्होंने लिखा - 'कुछ ही समय पश्चात यहां के समाचारपत्र भी मशीन के सदृश हो जाएंगे, और उनमें काम करने वाले पत्रकार केवल मशीन के पुरजे। व्यक्तित्व न रहेगा, सत्य और असत्य का अन्तर न रहेगा, अन्याय के विरुद्ध डट जाने और न्याय के लिए आफतों के बुलाने की चाह न रहेगी, रह जाएगा केवल खिंची हुई लकीर पर चलना।'
विद्यार्थी जी पत्रकार के लिए यह कसौटी मानते थे- 'पत्रकार की समाज के प्रति बड़ी जिम्मेदारी है। वह अपने विवेक के अनुसार अपने पाठकों को ठीक मार्ग पर ले जाता है। वह जो कुछ लिखे, प्रमाण और परिणाम का विचार रख कर लिखे और अपनी गति-मति में सदैव शुद्ध और विवेकशील रहे।'
गणेशशंकर विद्यार्थी की विरासत और उस युग के मनीषी संपादकों की सीखों और नसीहतों, चेतावनियों और प्रेरणाओं के आईने में क्या आज की पत्रकारिता, आज का मीडिया, कहीं अपना अक्स तलाश पाएगा? वस्तुत: जरूरत आत्मावलोकन की है। क्या हम विद्यार्थी जी की परंपरा से अपने आपको जोड़ने के अधिकारी हैं?
Published on:
25 Mar 2022 08:25 pm
बड़ी खबरें
View Allओपिनियन
ट्रेंडिंग
