
प्रतीकात्मक चित्र
रवि वेंकटेशन
बिजनेस लीडर, सोशल आंत्रप्रनर और ‘वॉट द हेक डू आइ डू विद माइ लाइफ? हाउ टु फ्लरिश इन ए टब्र्युलेंट वर्ल्ड’ के लेखक
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हर व्यक्ति की इच्छा होती है कि वह प्रसन्न रहे। कुछ लोग भाग्यशाली होते हैं और स्वभाव से ही खुश रहते हैं। उनके पास एक गुण होता है, जिसे मनोवैज्ञानिक ‘हाई सेट पॉइंट’ कहते हैं। बाकी लोगों को खुशियां ढूंढनी पड़ती हैं। जीवन की शुरुआत में ही हम खुशी का अपना सिद्धांत विकसित कर लेते हैं। यानी हमें किस चीज से खुशी मिलती है, उसके बारे में एक भरोसा। यह सिद्धांत आम तौर पर अचैतन्य होता है लेकिन अत्यधिक गहन है और हमारे सारे कार्यकलाप संचालित करता है।
खुशी का एक सामान्य सिद्धांत है-‘मिसिंग टाइल सिद्धांत’। हमारा पूरा ध्यान इस बात पर लगा रहता है कि क्या है जो नहीं है और हम मान बैठते हैं कि अगर ‘यह’ होगा तब ही हम खुश होंगे। ‘यह’ कुछ भी हो सकता है। जैसे अच्छे अंक, अच्छा कॉलेज, अच्छी नौकरी, सही जीवनसाथी मिलना, पदोन्नति मिलना या एक निश्चित जीवनशैली जीना। समस्या यह है कि यह टाइल बदलती रहती है। जैसे ही आप एक ‘गायब टाइल’ पा लेते हैं, तुरंत ही दूसरी गायब टाइल पर फोकस करने लगते हैं। इस प्रकार खुशी हमेशा के लिए टल जाती है। दूसरा सिद्धांत जिसे बहुत से महत्त्वाकांक्षी लोग मानते आए हैं, वह है - सफलता। बच्चे को अच्छा व्यवहार और अकादमिक उत्कृष्टता प्रशंसा और प्रेम दिलाता है। हमें यह अच्छा लगता है और जल्द ही हम इसके आदी हो जाते हैं। कुछ ही समय में आप कठोर परिश्रम के पथ पर चल पड़ते हैं, जिससे आपको कई उपलब्धियां व परिणाम प्राप्त होते हैं। सफलता से कुछ खुशी अवश्य मिलती है पर हमारी लालसा बढऩे लगती है कि अधिक सफलता मिले ताकि हमें सुखानुभूति हो। आप कितना भी हासिल कर लें हमेशा यही लगेगा कि दूसरे अधिक सफल हैं। इसी भाव को ‘हीडोनिक ट्रेडमिल’ कहते हैं। करीब 15 साल पहले मैं स्वयं इस सिद्धांत से परेशान हो गया था। तब से मैंने इस बात की तह तक जाने के लिए काफी प्रयास किए और बहुत कुछ सीखा।
पहली बात, खुशी का इस बात से कोई सरोकार नहीं है कि आपके पास क्या है, क्या नहीं है, आप सफल हैं कि नहीं।
मनोवैज्ञानिकों व दार्शनिकों का निष्कर्ष है कि खुशी ‘कृत्रिम’ है या हमारे मस्तिष्क द्वारा गढ़ी हुई होती है। कवि जॉन मिल्टन के अनुसार, ‘दिमाग अपनी जगह है और वह स्वयं ही नर्क को स्वर्ग और स्वर्ग को नर्क बना सकता है।’
एक प्रसिद्ध अध्ययन के अनुसार, एक ही समय में एक व्यक्ति की लॉटरी लगती है और दूसरे के हाथ में चोट लग जाती है। छह माह बाद दोनों उतने ही खुश मिलते हैं, जैसे कि वे इन घटनाओं से पहले थे। हाल ही में मैं शालिनी सरस्वती से मिला, जिसने एक रात में अपने हाथ-पैर खो दिए और अपना बच्चा भी। फिर भी उसने हार नहीं मानी और आज वह मैराथन दौड़ती है व प्रेरक वक्ता है। स्वयं को हुई हानियों से टूटना तो दूर, वह आज ओजपूर्ण व हंसमुख व्यक्ति हैं। इसलिए खुशी की एक कुंजी यह है कि मस्तिष्क को ध्यान योग से जोड़ा जाए, विचारों से मुक्ति पाना, प्रचुरता और कृतज्ञता का भाव विकसित करना सीखा जाए। सदियों से आध्यात्मिक परम्पराएं इसी सिद्धांत की पक्षधर रही हैं।
दूसरी बात, आप जितना स्वयं पर फोकस करेंगे, उतना ही आपका खुश रहना मुश्किल होगा। सारे नकारात्मक विचार जैसे तुलना, ईष्र्या और पछतावा आपको व्यथित कर सकते हैं। इससे मुक्ति पाने का एक ही उपाय है कि स्वयं को गतिविधियों या प्रतिबद्धताओं में व्यस्त रखें। जब आप दौड़ रहे हैं, टेनिस खेल रहे हैं या गाना गा रहे हैं तो थोड़ी राहत महसूस करेंगे। जैसे एक बच्चे को पालना, दूसरों की मदद करना, कोई व्यापार करना या कुछ रचनात्मक कार्य करना। एक समय के लिए आप स्वयं को भूल कर काम में लग जाएंगे। इसे ‘फ्लो’ या प्रवाह कहते हैं। जब आप प्रवाह में होते हैं तो उदास होना असंभव है।
खुशी की तीसरी आवश्यकता है स्वतंत्रता। स्वतंत्रता का मतलब अलग-अलग लोगों के लिए अलग-अलग होता है। मेरे लिए सबसे महत्त्वपूर्ण मतलब है कामना से मुक्ति। इस दशक में मैंने स्वयं को स्वतंत्र रखने के कई उपाय किए। एक सामाजिक उद्यमी व लेखक बनने के लिए नौकरी छोड़ी। आकर्षण का केंद्र बनने की लालसा छोड़ी और प्रासंगिक बने रहना सीखा। अपने समय पर दोबारा नियंत्रण पाना सीखा और यह भी कि इसे कैसे व्यतीत किया जाए।
खुशी का चौथा कारण है लोग। कुछ चुनिंदा लोग होते हैं, जिनके साथ हम उठते-बैठते हैं। इसलिए आप उन लोगों के साथ रहना पसंद करेंगे जो सकारात्मक विचारों वाले हैं और आपको बिना शर्त प्यार करते हैं व प्रेरित करते हैं कि आप स्वयं को और बेहतर बनाएं। खुशी एवं नकारात्मकता दोनों ही कोविड से ज्यादा संक्रामक हैं।
अंतत: खुशी मिलती है स्वीकार्यता से। दिवंगत अभिनेता इरफान खान को कैंसर हुआ, तब उन्होंने कहा था - ‘जीवन इस बात के लिए बाध्य नहीं है कि आपको जो चाहिए, वह सब दे।’ दरअसल, जीवन हमेशा वैसा नहीं होता, जैसा हम उम्मीद करते हैं। जब आप जीवन की मध्य अवस्था में पहुंच जाते हैं तो भले ही सब कुछ अच्छा चल रहा हो, मन में खयाल यह आता है द्ग ‘क्या बस इतना ही! मैंने तो बहुत कुछ उम्मीद लगा रखी थी।’ कई बार वाकई में बुरी घटनाएं घट जाती हैं। बीमारियां, गलतियां और हानियां। और यह सब ठीक नहीं लगता। यह वैसा जीवन नहीं है, जैसा आपने सोचा था। ‘मेरे साथ ही ऐसा क्यों हो रहा है?’, ‘मैं ही क्यों?’ जैसे सवाल गलत हैं। आप इतने खास कैसे हो सकते हैं कि जो भी बुरा है, वह केवल दूसरों के साथ ही घटित होगा? आपके साथ क्यों नहीं?
सवाल यह नहीं है कि आप जीवन से क्या चाहते हैं बल्कि यह है कि जीवन आपसे क्या चाहता है। सरल शब्दों में कहा जाए तो खुशी का रहस्य है जो मिला है, वही इच्छित हो, न कि यह कि जो इच्छित था वह मिला या नहीं। खुशी दरअसल क्या है, यह हमें आध्यात्मिक परम्पराओं से पता चलता है। यह केवल आपकी मानसिक अवस्था है। यह हमारे अंदर ही अंतर्निहित है और हमेशा हमारी पकड़ में है पर इसे पहचानने में पूरा जीवन लग जाता है।
Published on:
26 Dec 2022 10:35 pm
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