
आपकी बात, अस्पतालों की व्यवस्था कैसे सुधारी जा सकती है ?
प्रबंधन में सुधार की जरूरत
अस्पताल प्रबंधन में अभी बहुत कुछ सुधार की जरूरत है। सभी ब्रांच के डॉक्टरों की भर्ती हो। मेडिकल कालेजों में यूजी और पीजी की सीटों को वर्तमान के हिसाब से तीन गुना बढ़ाने की आवश्यकता है। आयुर्वेद और होम्योपैथी कॉलेजों में भी सीटें बढ़ाई जाएं। सभी चिकित्सा पद्धतियों के बेरोजगार डॉक्टरों को ट्रेनिंग पूरी करते ही नियुक्तियां दी जाए। अस्पतालों में आवश्यक मेडिकल इक्विपमेंट व मशीनरी हो तथा नर्सिंग स्टाफ पूरा हो। अस्पतालों में साफ -सफाई के लिए पर्याप्त संख्या में सफाईकर्मी लगाए जाएं। शासकीय अस्पतालों में भी प्रबंधन के लिए प्रशिक्षित स्टाफ लगाया जाना चाहिए। दवाइयों की अपर्याप्त आपूर्ति होना बहुत आवश्यक है। अस्पतालों की निगरानी का काम लगातार होना चाहिए। व्यवस्था सुधारने के लिए समृद्ध तबके से आर्थिक सहयोग लिया जा सकता है।
-राजेन्द्र आचार्य, भवानीमंडी
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सक्रिय है चिकित्सा माफिया
अव्यवस्थाओं का मूल कारण चिकित्सा का व्यावसायीकरण है। सरकारी अस्पतालों में चिकित्सको ने वेतन के अलावा अन्य अनैतिक तरीकों को आय का जरिया बना रखा है। निजी अस्पतालों में मनमाने तरीकों से धन वसूला जाता है। यदि इसे चिकित्सा माफिया कहें तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। चिकित्सक, नर्सिंग स्टाफ, कैमिस्ट तथा दवा-मेडिकल उपकरण बनाने वाले उद्योगपति सभी मिलकर इस अनैतिक तन्त्र को चलाते हैं। इस नेटवर्क को तोडऩा होगा।
-नरेन्द्र कुमार शर्मा, जयपुर
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अस्पताल प्रबंधन की जवाबदेही तय हो
सरकारी अस्पताल हों या निजी, लापरवाही से किसी की मौत न हो। अस्पतालों में शय्या की संख्या बढ़ाई जाए। मरीजों के साथ भेदभाव न हो। सभी सरकारी अस्पतालों में आवश्यक चिकित्सा उपकरण उपलब्ध कराए जाएं। अस्पतालों में डॉक्टरों की गैर हाजिरी पर कार्रवाई हो। अस्पतालों में कूलर, पंखों की व्यवस्था व साफ- सफाई रहे। निजी अस्पतालों में चिकित्सा के नाम पर लूट पर अंकुश लगे। इन सब बातों के मद्देनजर रखते हुए अस्पताल प्रबंधन की जवाबदेही तय की जाए। किसी भी स्तर पर लापरवाही न हो।
-शिवजी लाल मीना, जयपुर
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जनप्रतिनिधि ध्यान दें
चिकिस्सा का पेशा सेवा से जुड़ा है। दुर्भाग्य से आज यह व्यवसाय बन गया है। मुश्किल यह है कि अस्पतालों में लापरवाही की तो कोई सीमा ही नहीं। सरकारी अस्पतालों में जांच मशीनें खराब पड़ी रहती हैं। डॉक्टर का निजी लैब से कमीशन बंधा होता है। इसलिए भी इन मशीनों को ठीक नहीं करवाया जाता। जनप्रतिनिधियों को अस्पतालों में सुधार के लिए ठोस प्रयास करने चाहिए।
-नरेंद्र कुमार सेन, रायसिंहनगर
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सरकारी अस्पतालों पर ध्यान दिया जाए
अस्पतालों की व्यवस्था सुधारने के लिए सर्वप्रथम उन समस्याओं पर विचार किया जाना चाहिए, जिनकी वजह से अस्पतालों की व्यवस्था बिगड़ी हुई है। आमतौर पर ग्रामीण क्षेत्रों के अस्पतालों में तो कई बार ऐसा देखने में आता है कि डॉक्टर समय से नहीं पहुंचते। इस कारण ग्रामीणों को निजी चिकित्सकों के पास मजबूरन जाना पड़ता है। कई लोग सरकारी अस्पतालों की बदहाल व्यवस्था की वजह से निजी डॉक्टरों के पास इलाज कराते हंै। अगर सरकारी अस्पतालों में भी बेहतर सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएं, तो आम जनता को राहत मिल सकती है।
-निखिल देवांगन, छत्तीसगढ़
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फीडबैक रजिस्टर जरूरी
जैसा कि हम जानते हैं कि पहला सुख निरोगी काया। इसके लिए देश के प्रत्येक मरीज को उचित इलाज मिलना जरूरी है। इसके लिए हर अस्पताल में एक फीडबैक रजिस्टर होना चाहिए, जिसमें रोगी सुझाव, समस्या और शिकायत लिख सके। उच्च अधिकारी इस रजिस्टर को नियमित रूप से देखें और उचित टिप्पणी करें। उस रजिस्टर की रेटिंग के हिसाब से अस्पताल की रेटिंग जारी होनी चाहिए। देश के हर अस्पताल में रोगी के अधिकार प्रदर्शित किए होने चाहिए। शिकायत नम्बर प्रदर्शित होने चाहिए तथा वहां से तुरन्त एवं उचित समाधान मिलना चाहिए । उत्कृष्ट कार्य करने वालों को नियमित रूप से सम्मानित करना चाहिए। सरकार को गरीब आदमी की आमदनी को ध्यान में रखते हुए निजी अस्पतालों की फीस की सीमा को तय करना चाहिए। कानून का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ कठोर कार्रवाई करनी चाहिए।
-पवन किशोर कुमावत, बेंगलुरु
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डॉक्टर निभाएं फर्ज
चिकित्सा को वैसे तो हम सेवा का पेशा मानते हैं, लेकिन यह दुर्भाग्य से आजकल व्यवसाय का साधन बन गया है। इसकी वजह से गरीब और मजबूर व्यक्ति ही अपना इलाज कराने सरकारी अस्पताल में आते हैं और डॉक्टर उनका इलाज बेमन से करते हैं। डॉक्टर अपने कार्य के प्रति गंभीर नहीं हैं। डॉक्टरों को इस मानसिकता से बाहर निकलकर सच्ची लगन के साथ मरीजों का इलाज करना चाहिए, ताकि किसी का घर परिवार उजडऩे से बचें
सूरज सुमन, सारोला कला, झालावाड़
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प्रशिक्षित स्टाफ की कमी
ज्यादातर अस्पतालों में प्रशिक्षित स्टाफ की कमी साफ नजर आती है। साथ ही आवश्यक उपकरणों का भी अभाव होता है। स्थानीय प्रशासन निजी व सार्वजनिक अस्पतालों की व्यवस्था पर खास ध्यान दे। लापरवाही होने पर भारी जुर्माना किया जाए। प्रत्येक अस्पताल में एक काउंसलर की व्यवस्था करवाई जाए। साथ ही यह भी कचरे के सही निस्तारण पर भी ध्यान दिया जाए, क्योंकि मरीज एक बीमारी का इलाज कराने अस्पताल जाता है और दो बीमारी साथ लाते हैं
-एकता शर्मा, गारियाबंद, छत्तीसगढ़
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जरूरी है जनसहयोग
लोग सरकारी अस्पताल में जाने से कतराते हंै, क्योंकि वहां की व्यवस्था ठीक नहीं है। मंत्री या अधिकारी दौरे पर आते हैं, तो पूरा अस्पताल प्रशासन हरकत में आ जाता, लेकिन साामन्य दिनों में तो राम भरोसे ही अस्पताल चल रहे हैं। सररकारी अस्पतालों की स्थिति सुधारने के लिए जनता को भी सहयोग देना चाहिए।
-चैतन्य शर्मा, जगदम्बा नगर, जयपुर
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जिम्मेदारी समझें
जन सहभागिता एवं वैयक्तिक जिम्मेदारी सुनिश्चित कर अस्पतालों की व्यवस्था को सुचारू एवं उपयोगी बनाया जा सकता है। हर व्यक्ति, हर कर्मचारी अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन कर चिकित्सकीय व्यवस्थाओं को ठीक करने में सहयोग दे सकता है। जनसहभागिता की नजरअंदाजगी एवं वैयक्तिक कत्र्तव्यों की विमुखता अस्पतालों की चरमराई व्यवस्था के मुख्य कारण हैं। साथ ही जनप्रतिनिधि भी अस्पतालों का निरीक्षण करें। वे व्यवस्था को ठीक करने में सहयोग करें।
-डॉ.अमित कुमार दवे, खडग़दा
Published on:
20 Dec 2020 02:59 pm
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