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कैसे रूकें बलात्कार

भारत में महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों को रोकने के लिए जितने बड़े कानून बन ...

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Super Admin

Jan 16, 2015

भारत में महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों को रोकने के लिए जितने बड़े कानून बन रहे हैं, अपराध उतने ही ज्यादा बढ़ते जा रहे हैं। क्यों? न्यायपालिका, पुलिस और महिलाओं से जुड़ी हस्तियों का मानना है कि केवल कड़े कानून बनाने से कुछ नहीं होगा। उन्हें उतनी ही सख्ती से लागू भी किया जाना चाहिए और अपराधियों में उनका डर भी बैठना चाहिए।

खत्म हो रहा कानून का डर

शिवकुमार शर्मा, पूर्व न्यायाधीश

देश में बलात्कार के मामले बढ़ते ही जा रहे हैं, इसके कई कारण हो सकते हैं, लेकिन जहां तक मेरा मानना है कि इन घटनाओं की मुख्य वजह लोगों में कानून का डर खत्म होना है। यह बात सभी जानते हैं कि यदि मैंने कुछ गलत किया, तो सजा होगी, लेकिन उनमें कानून का डर कहां है? वे जानते हैं कि पकड़े जाने पर वे आसानी से छूट जाएंगे।

अपराध को कम करने के लिए लोगों में भय का भाव लाना होगा। आज अपराधी जेल चला भी जाता है, तो उसे वहां वह सारी सुविधाएं मिलती हैं, जो उसे बाहर मिलती थीं। अपराधी को अहसास कराना होगा कि यदि मैंने कुछ गलत किया, तो कानून उसे गिरफ्त में लेगा ही।

आसान हो न्याय प्रक्रिया
देश की अदालतों में हजारों बलात्कार के मामले दबे पड़े हैं। देश में न्याय की प्रक्रिया इतनी जटिल हो गई है कि पीडित हताश होने लगे हैं। न्याय की प्रक्रिया को आसान करना होगा, तभी हर व्यक्ति को समय से न्याय मिल पाएगा। आज बलात्कार के मामलों को जल्द से जल्द निपटाने की जरूरत है।

मामलों में सजा सुनाई जाने लगी, तो फिर अपराधियों में कानून का एक खौफ हो जाएगा। वह गुनाह करने से पहले सौ बार सोचेगा। आज बलात्कार पीडिता को मेडिकल चेकअप कराने के लिए भी समस्याओं से दो-चार होना पड़ता है।

निभाएं जिम्मेदारी
पुलिस को भी अपनी जिम्मेदारी सही- तरीके से निभानी होगी। कॉलेजों के बाहर अपनी गतिविधि बढ़ानी होगी और राह चलते लड़कियों पर फब्तियां कसने वालों पर कड़ाई से कार्रवाई करनी होगी। ऎसा होने लगा, तो इस तरह की घटनाओं में कमी जरूर आएगी।

लड़कियों के लिए हेल्पलाइन की सुविधा हो, जिस पर सूचना मिलने पर पुलिस फौरन हरकत में आए। आज देश में कई जगहों पर हेल्पलाइन की सुविधा तो है, लेकिन फोन करने पर कोई उठाता ही नहीं है।

पाश्चात्य संस्कृति के प्रति लगाव ने भी बलात्कार को बढ़ावा दिया है। आज के युवा भारतीय संस्कृति को भूलते जा रहे है। इनके पहनावे बदलते जा रहे हैं। आप गौर करेंगे, तो पाएंगे कि भारत के दक्षिणी राज्यों में रेप व छेड़खानी की घटनाएं कम हैं। इसका मुख्य कारण यह है कि वहां के युवा आधुनिकता की दौड़ में भी अपनी संस्कृति से जुड़े हुए हैं।

कानून को लागू भी करें
कविता कृष्णनन, राष्ट्रीय सचिव, ऑल इंडिया प्रोग्रसिव वूमेन एसोसिएशन

बलात्कार की घटनाओं को रोकने के लिए कानून तो बना दिया गया, लेकिन हमें देखना होगा कि इस बीच महिलाओं के प्रति लोगों में संवेदना कितनी बढ़ी है? सरकार ने कानून तो बना दिया, लेकिन उसे क्रियान्वित नहीं कर पाई है। दिल्ली गैंगरेप की घटना के विरोध में जो आंदोलन हुआ था, उसमें यह मुद्दा जोर-शोर से उठाया गया था कि सुरक्षा के नाम पर महिलाओं की आजादी नहीं छीनी जानी चाहिए।

नहीं बदली सोच
आज भी सरकार का नजरिया महिलाओं के प्रति नहीं बदला है। उदाहरण के तौर पर, मध्यप्रदेश में महिलाओं की सुरक्षा के लिए पुलिस पेट्रोलिंग योजना बनाई गई। इसके बाद पुलिस उन महिलाओं को भी पकड़ने लगी, जो अपने पुरूष साथी के साथ स्वेच्छा से पार्को में बैठी थीं।

आज सबसे बड़ी समस्या यह है कि स्वेच्छा से बने सम्बंध को भी यौन उत्पीड़न माना जाने लगा है। मैं इस बात का सख्त विरोध करती हूं कि पाश्चात्य संस्कृति की वजह से यौन अपराधों में बढ़ोतरी हुई है।

भारत में पहले भी बलात्कार की घटनाएं होती थीं। हजारों बच्चों का बचपन में ही विवाह कर दिया जाता था। कई बçच्चयों की मौत तो उनके पति द्वारा "बलात्कार" करने से हो गई। जहां तक पहनावे का सवाल है, बलात्कार का इससे कोई लेना-देना नहीं है। समाज में पुरूषों का शुरू से ही वर्चस्व रहा है।

बदलाव की जरूरत
आज सामाजिक ताने-बाने को बदलने की जरूरत है, इसमें ही महिलाओं का हित है। मेरा मानना है कि हमारे देश में बलात्कार की घटनाएं यौन आकर्षण की वजह से नहीं होती हैं, इसके पीछे पुरूषों का महिलाओं पर प्राधिकार होता है। यह प्राधिकार केवल यौन मामलों में ही नहीं, अन्य मामलों में भी देखने को मिलता है। पिता या भाई भी बेटी और बहन पर अपना अधिकार दिखाते हैं।

लोगों से अक्सर कहा जाता है कि महिलाओं को मां और बहन की तरह देखो। यहां भी हम महिलाओं के अधिकारों को ही छीनते हैं। हमें जरूरत है, उन्हें इंसान की तरह देखने की। पीडित जब रिपोर्ट लिखवाने पहुंचती है, तो उससे अपराधी जैसा व्यवहार किया जाता है।

देश में न्याय की प्रक्रिया काफी धीमी है। आज कोर्ट और जजों की संख्या बढ़ाने की जरूरत है, इसके लिए बजट बढ़ाना होगा, लेकिन इस तरफ सरकार की कोई भी इच्छाशक्ति नहीं दिखती है।