जहरीली शराब से बढ़ती मौतें, जिम्मेदार कौन ?
- कमोबेश हर राज्य जहरीली शराब की चपेट में है।
- आखिर क्यों राज्य सरकारें जहरीली और अवैध शराब पर रोक नहीं लगा पाती हैं?
- शराब माफियाओं के दुस्साहस को भी समझना जरूरी है।

मध्यप्रदेश के मुरैना में जहरीली शराब से 20 से अधिक लोगों की मौत हो गई। राजस्थान के भरतपुर में भी ऐसी शराब पीने से कुछ लोग मौत के मुंह में चले गए। दो दिन के भीतर दो राज्यों की ये अलग-अलग घटनाएं हैं। मध्यप्रदेश में कुछ महीने पहले ही उज्जैन में जहरीली शराब से कई लोगों की मौत हो गई थी। हरियाणा और उत्तर प्रदेश में भी ऐसी घटनाएं हुईं। कमोबेश हर राज्य जहरीली शराब की चपेट में है। सवाल यही है कि आखिर क्यों राज्य सरकारें जहरीली और अवैध शराब पर रोक नहीं लगा पाती हैं?
शराब माफियाओं के दुस्साहस को भी समझना जरूरी है, जो जिले के कलक्टर, एसपी और आबकारी अफसरों के अलावा नेताओं के साथ मिलकर काम करता है। देश में जितना वैध शराब का काम है, ठीक उसी अनुपात में अवैध शराब का भी धंधा है। यह कहीं देशी के नाम पर बेची जा रही है और कहीं पर कुछ और तरीकों से। मुनाफा अनाप-शनाप है, सरकारी निरीक्षण भी नहीं है। माफिया, अफसर और नेताओं का गठजोड़ बना हुआ है। सवाल यही है कि जिनके ऊपर ऐसी शराब की बिक्री और उत्पादन रोकने की जिम्मेदारी है, वही इस तरह के काम को शह देते हैं, तो फिर यह रुकेगी कैसे?
जिस तरीके से राज्यों में अफसरों में सरकार का डर कम हुआ है, नेताओं के सहारे पोस्टिंग का खेल चला है, ट्रांसफर-पोस्टिंग के बदले नेताओं और सरकारी अफसरों-कर्मचारियोंं को उपकृत करने का दौर शुरू हुआ है, उसमें ऐसी घटनाओं पर आश्चर्य नहीं होना चाहिए। ऐसे में सवाल यही पैदा होता है कि क्या मैदानी अफसर अब अपनी जिम्मेदारी से पीछा छुड़ा रहे हैं या फिर भ्रष्टाचार का दीमक उनके भीतर घर कर गया है, जिसकी वजह से वे गलत कामों को अनदेखा कर देते हैं। यही अनदेखी एक त्रासदी के रूप में सामने आती है।
मध्यप्रदेश में जिम्मेदार कलक्टर और एसपी का तबादला कर दिया गया है। एसडीओपी को निलंबित कर दिया गया है, जबकि आबकारी विभाग के अफसरों के खिलाफ भी कार्रवाई अमल में लाई जा रही है, लेकिन क्या यह सब कुछ पर्याप्त है? क्या यह सरकारों के लिए जागने का समय नहीं है? सरकारें अपने सिस्टम के भीतर लगते हुए घुन को पहचानें और सिस्टम को मजबूत करें, ताकि इस तरह की घटनाओं पर अंकुश लग सके। क्या ऐसी घटनाओं पर सभी मैदानी अफसरों को कड़ा संदेश देने की जरूरत नहीं है? बेहतर हो कि सरकारें सिर्फ अपना दामन बचाने की कोशिशें नहीं करें, बल्कि जरूरी है कि ऐसे प्रयास करें कि दोबारा ऐसी घटनाएं नहीं हों।
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