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जांच का झुनझुना

राजस्थान विधानसभा में संसदीय कार्य मंत्री शांति धारीवाल जिस तरह के वक्तव्य दे रहे हैं और तर्क-वितर्क कर रहे हैं, उससे हर कोई अचंभित हैं।

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- भुवनेश जैन

राजस्थान विधानसभा में संसदीय कार्य मंत्री शांति धारीवाल जिस तरह के वक्तव्य दे रहे हैं और तर्क-वितर्क कर रहे हैं, उससे हर कोई अचंभित हैं। ऐसे कई मौके आ चुके हैं जब प्रतिपक्ष के नेता गुलाबचंद कटारिया और धारीवाल आमने-सामने हो गए और बहस ऐसे स्तर पर चली गई, जिसकी उम्मीद ऐसे दिग्गज नेताओं से किसी ने नहीं की होगी। यहां तक कि विधानसभा अध्यक्ष सी.पी. जोशी को भी कहना पड़ा कि दोनों वरिष्ठ सदस्य क्या मैसेज दे रहे हैं।

विधानसभा के वरिष्ठ सदस्यों से अपेक्षा की जाती है कि सदन में उनका आचरण, व्यवहार और संवाद शैली ऐसी रहेगी, जिससे नए विधायक प्रेरणा ले सकें। साथ ही विधानसभा में उठने वाले मुद्दों पर वरिष्ठ मंत्रियों से सीधा, स्पष्ट और तथ्यों पर आधारित जवाब की आशा की जाती है। लेकिन देखने में आ रहा है कि बातें घुमाई-फिराई जा रही हैं। जवाब से बचने की कोशिश की जा रही है। कई बार यह लगता है कि गंभीर मुद्दों को हल्की हंसी-ठिठोली में इसलिए उड़ाया जा रहा है ताकि जनता का ध्यान भटक जाए।

बाड़मेर में हिरासत में हुई मौत का मामला शुक्रवार को विधानसभा में उठा तो कटारिया और धारीवाल के बीच छींटा-कशी व्यक्तिगत स्तर तक पहुंच गई। इतने गंभीर मुद्दे पर गंभीर चर्चा इस नोक-झोंक की भेंट चढ़ गई। देखने में यह आ रहा है कि जो भी मामला विधानसभा में आता है, जिम्मेदारों को बचाने की कोशिश की जाती है। दो दिन पूर्व बूंदी की बस दुखान्तिका में भी यही हुआ। जांच कमेटी बनाने की घोषणा कर दी गई। फिटनैस नहीं होने की बात गोल कर दी गई और पुल निर्माण में खामी बताते हुए पिछली सरकार की गलती होने की बात की गई। इसी तरह हिरासत में मौत के मामले में भी जवाब दिया गया कि पिछली सरकार में ऐसे मामले में किसको सजा हुई। यानी अगर पिछली सरकार ने गलतियां की तो आप भी गलतियां करना चाहते है! पिछली सरकार को जनता ने सत्ता से बाहर फेंक दिया। क्या आप भी इसलिए उसी तरह की गलतियां करके जनता को नाराज करना चाहते हैं? फिर क्या जनता को आपसे किसी बदलाव की उम्मीद रखनी चाहिए।

सब जानते हैं जाचं कमेटियों का हश्र क्या होता है। कुशासन और न्याय में विलम्ब करने की सोच की उपज होती है ज्यादातर जाचं कमेटियां। इनका या तो नतीजा आता नहीं है। आता है तो छुपा लिया जाता है और किसी पर कार्रवाई नहीं होती। जब भी चहेतों को बचाना हो ऐसी जांचों की घोषणा कर दी जाती है। जनता इसका मतलब निकालती है-मामले को दाखिल दफ्तर करना। आप जनता को जितना मूर्ख समझते हैं, वह उतनी ही होशियार होती है और मौका मिलते ही बड़े-बड़ों को अर्श से फर्श पर ला पटकती है।