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मोटे अनाज की सरकारी खरीद सुनिश्चित करना भी जरूरी

भारत सरकार खरीदे गए अनाज को पीडीएस, मिड-डे-मील, आंगनबाड़ी जैसी योजनाओं के सहारे खपा सकती है। इसके अलावा, भारत सरकार जरूरत पडऩे पर खरीदे गए बाजरे का उपयोग देश में पशु आहार के रूप में भी कर सकती है। यह कुपोषण और गरीबी को दूर करने की पहल साबित हो सकती है।

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Patrika Desk

Feb 10, 2023

मोटे अनाज की सरकारी खरीद सुनिश्चित करना भी जरूरी

मोटे अनाज की सरकारी खरीद सुनिश्चित करना भी जरूरी

भागीरथ चौधरी
संस्थापक निदेशक, दक्षिण एशिया जैव प्रौद्योगिकी केंद्र और नाबार्ड कृषि निर्यात सुविधा केंद्र

संसद में हाल ही पेश किए गए बजट में मोटे अनाज को श्री अन्न के नाम से संबोधित करके केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने मोटे अनाज की तरफ सभी का ध्यान खींचा। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मोटे अनाज वर्ष-2023 की घोषणा की गई है। भारत सरकार भी देश में मोटे अनाज के उत्पादन और खपत को बढ़ावा देने के लिए अभियान चला रही है। मोटे अनाजों के उत्पादन में छलांग तभी संभव है, जब इनकी बाजार में मांग बढ़े और किसानों को मोटे अनाज उत्पादन की तरफ आकर्षित किया जाए। जब तक मिलेट्स आधारित आहार के लिए बाजार में मांग नहीं बढ़ती, तब तक किसानों को मिलेट्स उत्पादन के लिए प्रोत्साहित करने के लिए इनके लिए एमएसपी सुनिश्चित करने और मिलेट्स उत्पादकों से एमएसपी मूल्य पर खरीदने की व्यवस्था करनी पड़ेगी।
विश्व में भारत मोटे अनाज उत्पादन का मुख्य केन्द्र है। देश अंतरराष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष-2023 मना रहा है। यही सही समय है कि भारत सरकार मोटे अनाजों में प्रमुख अनाज जैसे बाजरे, ज्वार और रागी के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) घोषित करने के साथ ही मोटे अनाजों के कुल उत्पादन का एक तिहाई सरकारी खरीद कर छोटे और मझले किसानों को मोटे अनाज उत्पादन के लिए प्रोत्साहित करे। यह कदम न केवल व्यावहारिक साबित होगा, बल्कि न्यायोचित भी होगा, क्योकि मोटे अनाजों का बाजार मूल्य घोषित एमएसपी से काफी कम रहता है। छोटे किसान बाजार व्यवस्था से काफी परेशान हैं और गरीबी से जूझ रहे हंै। भारत सरकार खरीदे गए अनाज को पीडीएस, मिड-डे-मील, आंगनबाड़ी जैसी योजनाओं के सहारे खपा सकती है। इसके अलावा, भारत सरकार जरूरत पडऩे पर खरीदे गए बाजरे का उपयोग देश में पशु आहार के रूप में भी कर सकती है। यह कुपोषण और गरीबी को दूर करने की पहल साबित हो सकती है।
इस बीच उल्लेखनीय है कि मोटे अनाज की खपत के स्वास्थ्य और पोषण संबंधी लाभों के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए प्रत्येक मंत्रालय, मिशन और दूतावासों के तहत एक विस्तृत कार्य योजना तैयार की गई है। इन कार्यक्रमों में देश में उच्चतम स्तर पर सार्वजनिक और राजनीतिक प्रतिनिधियों को शामिल करते हुए मोटे अनाजों का देशव्यापी प्रचार शामिल है। भारत सरकार का उद्देश्य विभिन्न गतिविधियों के माध्यम से समाज के सबसे निचले तबके तक मोटे अनाज को पहुंचाना है, जो देश के मोटे अनाजों का प्रमुख उत्पादक है। भारत में लाखों छोटे और सीमांत किसान मोटे अनाज जैसे ज्वार, रागी, जौ, कागनी और कुटकी का उत्पादन कर रहे हैं। सामान्यत: मोटे अनाजों का उत्पादन संसाधन रहित छोटे और सीमांत किसान करते हैं। अन्य प्रचलित अनाजों जैसे गेहूं और धान की तुलना में मोटे अनाज को अधिक पोषक माना जाता है, क्योंकि येे खनिज, जिंक, आयरन और कैल्शियम, विटामिन और एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर होते हैं। वास्तव में मोटे अनाज पोषण और सूक्ष्म पोषक तत्वों का खजाना हैं। हम सब को मिल कर कुपोषण से लडऩे के लिए इसे नियमित आहार का हिस्सा बनाना होगा, जिससे ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में कुपोषण और मधुमेह जैसी स्वास्थ्य समस्याओं से निपटा जा सके ।
राष्ट्रीय मिलेट वर्ष-2018 से भारत सरकार मोटे अनाजों के स्वास्थ्य लाभों के बारे में उपभोक्ताओं को जानकारी दे रही है। नए-नए उत्पाद बनाने के लिए उद्यमियों को प्रोत्साहित कर रही है और प्रचार प्रसार कर देश में मोटे अनाज की खपत को बढ़ाने के लिए प्रयास कर रही है। 2018 से राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के तहत 'मोटे अनाज पर उप मिशनÓ को शामिल किया गया है। कई राज्यों में पोषण मिशन अभियान शुरू किया गया है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के प्रयासों से तकरीबन 200 स्टार्टअप और 400 उद्यमी मोटा अनाज प्रसंस्करण और मोटा अनाज आधारित व्यवसाय के लिए प्रेरित हुए हैं। मोटे अनाज की 15 फसलों को न्यूट्री -सीरियल्स की श्रेणी में रखने का निर्णय किया गया है। सरकार के प्रयास अपनी जगह सही हैं, लेकिन ये प्रयास तभी सफल होंगे, जब मोटे अनाज की उचित मूल्य पर सुनिश्चित सरकारी खरीद करने की व्यवस्था की जाए।