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विपक्षी दलों को भी बताना होगा कि पुरानी गलतियों से क्या सीखा है। बड़े उद्देश्य के लिए अपनी क्षेत्रीय महत्त्वाकांक्षाओं को परे रखना होगा।

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Sunil Sharma

May 25, 2018

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कर्नाटक में नई सरकार के शपथ समारोह में मंच पर एकजुट विपक्ष ने 2019 के आम चुनाव के मद्देनजर अच्छा फोटोशूट कराया। जहां सोनिया गांधीमायावती की अप्रत्याशित केमिस्ट्री दिखी वहीं तीसरे मोर्चे की कवायद को आगे बढ़ा रहीं ममता बनर्जी की बौखलाहट और कांग्रेस से दूरी बनाकर चल रहे अरविंद केजरीवाल की हिचकिचाहट भी फ्रेम में कैद हो गई। विरोधाभासी अवधारणाओं के बावजूद राज्यों के क्षत्रपों का यह साथ विरोधियों को मोदी सरकार को बेदखल करने का रास्ता दिख रहा है। यह इस पर निर्भर करेगा कि एकजुट विपक्ष जनआक्रोश को अपने पक्ष में कर पाता है या नहीं?

पहले भी कांग्रेस के विरोध में ऐसी एकजुटता दिखती रही है। फर्क यह है कि अब कांग्रेस दूसरी तरफ खड़ी है। हालांकि ऐसी सफलताओं में अंकों के गणित से इतर सतह के नीचे का आवेग (अंडरकरंट) महत्त्वपूर्ण होता है। देश में अघोषित आपातकाल लागू होने का आरोप लगाता विपक्ष क्या वह क्रांतिकारी आवेग पैदा कर सकता है जो ‘इमरजेंसी’ के दौरान कांग्रेस के खिलाफ था। जयप्रकाश नारायण जैसा भरोसेमंद चेहरा न होना विपक्ष की एक कड़वी सच्चाई है जो टूटते भरोसे के बावजूद जनता का ध्यान नरेंद्र मोदी से नहीं हटने देती।

करीब तीन दशक बाद, पिछले आम चुनाव में एक दल को निर्णायक बहुमत देकर जनता ने गठबंधन सरकारों को खारिज करने का संकेत दिया था। महज चार साल में सरकार के खिलाफ गठबंधन की सफलता का अनुमान, खासकर भाजपा के लिए चिंतित होने वाली बात है। विपक्षी दलों को भी बताना होगा कि पुरानी गलतियों से क्या सीखा है। बड़े उद्देश्य के लिए अपनी क्षेत्रीय महत्त्वाकांक्षाओं को परे रखना होगा। बुनियादी मुद्दों पर सर्वसम्मति के साथ स्पष्ट कार्ययोजना जनता के सामने रखनी होगी।

आर्थिक नीतियों पर उन्हें अपने नजरिये पर फिर से मंथन करना होगा क्योंकि यहीं से वह निर्णायक रेखा गुजरती है जो देश की राजनीति को लंबी अवधि तक प्रभावित करती है। वे कारक भी मौजूद हैं जिनसे भाजपा विरोधी विपक्ष को कांग्रेस के साथ खड़े होने में असुविधा होती है। कर्नाटक के कारण संभावित गैर-भाजपा गठबंधन का नेतृत्व करने के लिए कांग्रेस की दावेदारी भले ही मजबूत हो गई हो। लेकिन जब तक ममता व केजरीवाल की हिचकिचाहट दूर नहीं होती और करुणानिधि, चंद्रशेखर राव व नवीन पटनायक जैसे क्षत्रप फ्रेम में शामिल नहीं होते, तब तक 2019 की तस्वीर धुंधली ही रहेगी।