
petroleum price
- केवल खन्ना, वित्त सलाहकार
कच्चे तेल की कीमत बढक़र ८० डॉलर प्रति बैरल हो गई। इसके साथ ही भारत का कच्चे तेल के आयात पर होने वाला खर्च भी बढ़ रहा है। यह वाकई चिंता का विषय है क्योंकि देश में ईंधन की 80 प्रतिशत जरूरत आयात से ही पूरी की जाती है। ऊर्जा अनुसंधान एवं परामर्शदात्री फर्म वुड मेकेंजी की एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2018 में देश में ईंधन की प्रतिदिन मांग गत वर्ष के मुकाबले दोगुनी से अधिक 1,90,000 बैरल तक पहुंच सकती है। इसका सीधा अर्थ है कि देश को कच्चा तेल खरीदने के लिए ज्यादा डॉलर की जरूरत होगी। इससे विदेशी मुद्रा विनिमय पर बुरा असर पड़ेगा और भारतीय रुपया कमजोर होगा।
हाल के दिनों में भारतीय बाजारों में दिखाई दी रुपए में गिरावट, कच्चे तेल की बढ़ती कीमतें, आयात की बढ़ती मात्रा और अमरीका का ईरान के साथ परमाणु सौदे से खुद को अलग करना आदि घटनाक्रमों ने अनिश्चितता की स्थिति पैदा कर दी है। इसके अलावा अन्य घटकों जैसे ओपेक व रूस से होने वाली कच्चे तेल की आपूर्ति, वेनेजुएला में उत्पादन में कमी और अमरीका-ईरान तनाव के चलते कच्चे तेल के दाम और बढ़ सकते हैं। चूंकि पेट्रोलियम पदार्थों को बाजार का निर्णायक घटक माना जाता है, इसलिए उपभोक्ताओं को महंगाई का सामना करना पड़ सकता है। आम जनता की खरीदने की क्षमता भी प्रभावित होने की आशंका है।
विपक्ष और समाज के विभिन्न वर्गों की ओर से पेट्रोल-डीजल पर कर कम करने की मांग की जाती रही है। सरकार को इस संबंध में व्यावहारिक कदम उठाने होंगे ताकि न केवल राजकोषीय संतुलन बनाया जा सके, बल्कि सबको समान महत्व देते हुए उपभोक्ताओं के बजटीय हित भी सुनिश्चित किए जा सकें। आगामी चुनावों को देखते हुए इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती। भारत, चीन, जापान और दक्षिण कोरिया विश्व बाजार में कच्चे तेल के बड़े आयातक हैं।
सभी देश एकजुट होकर ओपेक देशों से वार्ता कर वाजिब मूल्य निर्धारित कर सकते हैं। हालांकि राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रम्प के ईरान के साथ परमाणु संधि से बाहर होने का निर्णय अधिक सब्सिडी बिल के कारण भारत सरकार पर वित्तीय दबाव बढ़ा सकता है। चूंकि भारत, ईरान से बड़ी मात्रा में तेल आयात करता है, इसलिए तेल की आपूर्ति और भुगतान में समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। कुल मिलाकर बात यह है कि ताजा घटनाक्रम भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए शुभ संकेत नहीं है।

Published on:
23 May 2018 10:00 am
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