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महामारी का लंबा दौर और मूल्यों पर संकट

डेल्टा प्लस वैरियंट का सातवां मामला बुधवार को मध्यप्रदेश में सामने आया है। यदि तुरंत इसे नियंत्रित नहीं किया गया तो हम एक बार फिर बढ़ते संक्रमण से सामना करते दिखेंगे।

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महामारी का लंबा दौर और मूल्यों पर संकट

महामारी का लंबा दौर और मूल्यों पर संकट

कोरोना की तीसरी लहर का सामना अगले दो-चार सप्ताह में ही करना पड़ सकता है। महाराष्ट्र में महामारी से निबटने के लिए बनाई गई टास्क फोर्स ने मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को ऐसी रिपोर्ट देकर देश को सकते में ला दिया है। क्योंकि अभी-अभी ही दूसरी लहर के चंगुल से निकलने के बाद लॉकडाउन में छूट मिलनी शुरू हुई है और आर्थिक गतिविधियों में तेजी की उम्मीद बंधी है। टास्क फोर्स की चिंता का विषय कोरोना का डेल्टा प्लस वैरियंट है, जिसके बारे में अभी हमें यह भी पता नहीं है कि इस पर टीके का कितना असर होगा।

डेल्टा प्लस वैरियंट का सातवां मामला बुधवार को मध्यप्रदेश में सामने आया है। यदि तुरंत इसे नियंत्रित नहीं किया गया तो हम एक बार फिर बढ़ते संक्रमण से सामना करते दिखेंगे। आर्थिक गतिविधियों के ठप होने की चिंता तो है ही, यह भी कम चिंतित होने वाली बात नहीं है कि तीसरी लहर में दूसरी लहर के मुकाबले दोगुना तेजी से संक्रमण की आशंका है। यह भी आशंका है कि इस बार करीब दस फीसदी बच्चे इसकी चपेट में आ सकते हैं। टास्क फोर्स को आशंका है कि सिर्फ महाराष्ट्र में ही आठ लाख सक्रिय मरीज हो सकते हैं, जो दोनों लहर की तुलना में काफी ज्यादा होंगे। राज्य में पहली लहर में 19 लाख लोग संक्रमित हुए थे और दूसरी लहर में करीब 40 लाख। देश में महाराष्ट्र सबसे ज्यादा कोरोना प्रभावित राज्य है।

यदि आशंका सच साबित हुई तो तीसरी लहर में 80 लाख से ज्यादा लोग सिर्फ महाराष्ट्र में ही संक्रमित हो सकते हैं। संक्रमण फैलने पर यह सिर्फ महाराष्ट्र तक सीमित नहीं रहेगा। लॉकडाउन में छूट के बाद पिछले दो-तीन दिनों में जिस तरह बाजारों और सड़कों पर भीड़ दिख रही है, उसने टास्क फोर्स की चिंता बढ़ा दी है। महाराष्ट्र में तीसरी लहर की आशंका के मद्देनजर तैयारी तेज कर दी गई है, लेकिन अन्य राज्यों में अभी तक कोई खास इंतजाम होते नहीं दिख रहे हैं। डराने वाली बात यह भी है कि आर्थिक तौर पर बदहाल हो चुके लोग पैसा कमाने के लिए ऐसे हथकंडे अपनाने लगे हैं, जिनसे इंसानियत शर्मसार हो जाए। महामारी के बाद प्राय: अपराध में बढ़ोतरी होती है। महामारी का लंबा खिंचना नैतिक मूल्यों के पतन का बड़ा कारण बन सकता है, जो पूरे समाज को खोखला कर सकता है।

मुंबई की हीरानंदानी हाउसिंग सोसाइटी में टीका लगाने के नाम पर की गई धोखाधड़ी ने हमें यह सोचने पर विवश कर दिया कि आखिर वे कौन हैं जो चंद रुपयों के लिए बड़ी संख्या में लोगों को मौत के मुंह में धकेलने से भी बाज नहीं आए? फर्जी टीकाकरण के इस मामले के बाद धोखाधड़ी के और भी मामले सामने आने लगे हैं। बीमारी से तो हम निबट ही लेंगे, पर नैतिक मूल्यों के पतन से कैसे निबटेंगे?