
jaipur foot master ramchandra sharma
- राजेन्द्र बोड़ा, वरिष्ठ पत्रकार
जयपुर फुट की दुनिया भर में पहचान है। हादसों में अपने पांव गंवा चुके लोगों के लिए यह वरदान के रूप में प्रतिष्ठित है। यह कृत्रिम अंग जयपुर नगर के नाम को ही आभा नहीं देता, भारतीय मेधा को भी दर्शाता है। यह पूरी तरह से देशी परिस्थितियों के अनुरूप स्थानीय तकनीक से बना है। जयपुर फुट के जनक जाने-माने अस्थि रोग विशेषज्ञ डॉ. पी. के. सेठी थे तो उनकी सोच को मूर्त रूप देने का काम जिस कारीगर ने किया वे थे मास्टर रामचन्द्र शर्मा।
इस जमीन से जुड़े हाथ के हुनर के कारीगर के पास कोई बड़ी डिग्री नहीं थी पर उसके हुनर और डॉ. सेठी की सोच ने जयपुर फुट विकसित करने का करिश्मा कर दिखाया। सोमवार को इस हुनरमंद कारीगर का जयपुर में निधन हो गया। पहले विदेशों में विकसित जो कृत्रिम पांव आते थे वे इतने महंगे, भारी एवं जटिल होते थे कि उनको लगाने के बजाय लोग बैसाखियों के सहारे चलना अधिक पसंद करते थे। डॉ. सेठी इसे भारतीय परिस्थितियों के अनुकूल ढालना चाहते थे। उनके कहने पर मास्टर रामचन्द्र ने रबड़, चमड़े और लकड़ी का प्रयोग शुरू किया। फिर विचार आया कि मोटर वाहनों के टायर जिस रबड़ से बने होते हैं वह अधिक टिकाऊ होता है। मास्टर रामचन्द्र टायर री-ट्रेडिंग करने वाली दुकान पर गए। वहां से सैम्पल लाकर कुछ बना कर दिखाया और बात बन गयी। इस तरह वेलकेनाइज्ड रबर के उपयोग से इस जोड़ी ने भारतीय परिस्थितियों के अनुकूल पांव बना दिया।
इसे पहन कर नंगे पांव कीचड़ में काम किया जा सकता है, पालथी मार कर बैठा जा सकता है और इसे पहन कर दौड़ा ही नहीं, पेड़ पर भी चढ़ा जा सकता है। डॉ. सेठी और मास्टर रामचन्द्र की जोड़ी ने यह साबित कर दिखाया कि विकासशील देशों की समस्याओं के हल स्थानीय संसाधनों से खोजे जा सकते हैं। यह भी कि यदि प्रशिक्षित और डिग्रीधारी मस्तिष्क अपने आभामंडल से बाहर आकर मास्टर रामचन्द्र जैसे हुनर वाले हाथों के साथ मिल कर काम करें तो हम अपनी समस्याएं हल करने की स्थानीय तकनीक खूब खोज सकते हैं। जयपुर फुट इसका उदाहरण है।
डॉ. सेठी को इसके लिए वर्ष 1981 में रमोन मैग्सेसाय पुरस्कार मिला और और उसी साल भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया। उनके साथ जमीनी स्तर पर काम करने वाले मास्टर रामचन्द्र को लोगों का प्यार तो भरपूर मिला, मगर वह मान सम्मान नहीं मिला जिसके वे हकदार थे। जयपुर फुट का जब भी इतिहास लिखा जाएगा तब इस हुनरवान कारीगर का नाम लिए बिना कृत्रिम पांव के इस आविष्कार की कहानी पूरी बयान नहीं होगी।

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