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सम्पादकीय : अनाथ बच्चों की शिक्षा को लेकर सार्थक पहल

चिंता की बात यह है कि सरकारी स्तर पर तमाम योजनाओं और कानूनी प्रावधानों के बावजूद बड़ी संख्या में बच्चे शिक्षा के मूलभूत अधिकार से वंचित हैं।

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निर्धनता व सामाजिक उपेक्षा का चक्र तोडऩे में शिक्षा की अहम भूमिका रहती आई है। इसीलिए बच्चों को शिक्षा से वंचित रखना एक तरह से अपराध ही है। चिंता की बात यह है कि सरकारी स्तर पर तमाम योजनाओं और कानूनी प्रावधानों के बावजूद बड़ी संख्या में बच्चे शिक्षा के मूलभूत अधिकार से वंचित हैं। खासतौर से वे बच्चे जिनके सिर से खेलने-कूदने की उम्र में माता-पिता दोनों का ही साया उठ गया। अधिकांश मामलों में रिश्तेदारों की ओर से भी उपेक्षापूर्ण रवैया इन्हें पढऩे का अवसर तक उपलब्ध नहीं करा पाता। कोरोना महामारी के दौर में अपने माता-पिता को खोने वाले बच्चे भी बड़ी संख्या में हैं। ऐसे बच्चों की शिक्षा लंबे समय से चिंता और चर्चा का विषय रही है।
सुप्रीम कोर्ट का ताजा आदेश इन बच्चों के हित की रक्षा करने वाला है। कोर्ट ने राज्यों को निर्देश दिए हैं कि शिक्षा के अधिकार कानून (आरटीइ) के तहत अनाथ बच्चों को भी निजी स्कूलों में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग और वंचित समूह के तहत दाखिले में आरक्षण दिया जाए। कोर्ट ने पहले ही अधिसूचना जारी कर देने वाले राज्यों को छोडक़र सभी राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों से कहा है कि वे चार सप्ताह में यह प्रक्र्रिया पूरी करे। साथ ही ये निर्देश भी दिए हैं कि शिक्षा पाने वाले और शिक्षा से वंचित बच्चों का सर्वे करें और इस दौरान ही वंचित बच्चों के निजी स्कूलों में दाखिले के प्रयास करें। कोर्ट का यह आदेश उस याचिका पर आया है जिसमें अनाथ बच्चों के लिए मानकीकृत शिक्षा, आरक्षण और उनकी गणना के लिए सर्वे की मांग की गई थी। कोर्ट के ये निर्देश न केवल बच्चों के संवैधानिक अधिकारों की पुष्टि करता है, बल्कि समाज में सबसे उपेक्षित समझे जाने वाले ऐसे बच्चों को बेहतर शिक्षा का अवसर भी प्रदान करता है। खास बात यह है कि कोर्ट ने निर्देश ही नहीं दिए बल्कि इनके क्रियान्वयन की निगरानी की बात भी कही है। राज्यों को यह भी कहा गया है कि वे सर्वे कर यह जानकारी दें कि कितने अनाथ बच्चों को दाखिला मिला और कितने अब भी वंचित हैं, साथ ही वंचित करने के कारण भी दर्ज किए जाएं। यह पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण पहल है।
सुप्रीम कोर्ट ने यह कदम उठाकर अपनी संवेदनशीलता का परिचय दिया है, लेकिन इसकी सफलता राज्य सरकारों की गंभीरता और इच्छाशक्ति पर निर्भर करती है। सरकारों के टालमटोल करने पर इसका वास्तविक लाभ उन बच्चों तक नहीं पहुंच पाएगा, जिनके लिए यह आदेश आया है। शिक्षा के अधिकार को लेकर कानून के प्रावधानों का धरातल पर क्रियान्वयन भी सुनिश्चित करना होगा। अनाथ बच्चों को शिक्षा देना हमारे हुक्मरानों की संवैधानिक जिम्मेदारी ही नहीं, बल्कि नैतिक कर्तव्य भी है। उम्मीद की जानी चाहिए कि इस फैसले से अनाथ बच्चों को बेहतर अवसर मिलेंगे।