
गोवा के एक नाइट क्लब में आग की त्रासदी और इसमें 25 जानें चली जाने की घटना ने एक बार फिर इस बहस को जन्म दिया है कि देश में नियम-कायदों की अनदेखी क्यों होती रहती है? नाइट क्लब बैकवाटर क्षेत्र में चल रहा था, इसमें प्रवेश और निकास के द्वार अत्यंत संकरे थे, वेंटीलेशन बहुत खराब था और आग बुझाने के साधनों का सर्वथा अभाव था। जिस जगह बना था, वहां फायर ब्रिगेड का पहुंचना ही संभव न हो सका। सवाल उठता है कि जब सुरक्षा और सुविधा की बुनियादी जरूरतें ही पूरी नहीं हो रही थीं, तो इसके संचालन की अनुमति कैसे प्रदान कर दी गई?
साफ है कि अधिकारी इस घटना के दोषी हैं, लेकिन सरकार भी कम जिम्मेदार नहीं। ऐसा कैसे हो सकता है कि गोवा में कुछ गलत हो रहा है और उसे इसका पता ही न हो। गोवा देश का प्रमुख पर्यटन राज्य है। देश-विदेश से सबसे ज्यादा पर्यटक गोवा में ही आते हैं। ऐसे में सरकार की जिम्मेदारी खुद-ब-खुद बढ़ जाती है। अभी तो एक नाइट क्लब में अव्यवस्था और अनदेखी सामने आई है। वहां तो ऐसे हजारों क्लब हैं। उनका क्या? केवल मजिस्ट्रियल जांच बिठाने और कुछ अधिकारियों पर गाज गिराने से सरकार की जिम्मेदारी पूरी नहीं होती। सरकार को इसके लिए पूरी ईमानदारी और जवाबदेही के साथ आगे आना होगा। राज्य में सभी क्लबों और होटलों का सुरक्षा और सुविधाओं के सभी पैमानों पर ऑडिट करते हुए स्थायी तौर पर पुख्ता व्यवस्था करनी होगी, ताकि ऐसी घटना की पुनरावृत्ति न हो। भविष्य के लिए भी व्यवस्था करनी होगी कि मापदंडों को अच्छी तरह देखने-परखने के बाद ही अनुमति जारी हो। ऐसा सबक देश के अन्य राज्यों की सरकारों और जिलों के प्रशासन को भी लेना होगा। इसकी जरूरत इसलिए है कि आए दिन सामने आने वाले भीषण अग्निकांड और उनसे होने वाली जन-धन की हानि साफ बताती है कि न तो आग से बचाव उपायों की तरफ गंभीरता बरती जा रही है और न ही अग्निकांड के बाद राहत कार्यों में तत्परता की तरफ ज्यादा ध्यान दिया जा रहा।
सुरक्षा उपायों का समुचित बंदोबस्त न होना तो ऐसी घटनाओं को बढ़ाने वाला होता ही है, इन्हें रोकने से जुड़ी जागरूकता का अभाव भी कम जिम्मेदार नहीं है। रही-सही कसर आपदा प्रबंधन की कमजोरी से पूरी हो जाती है। इमारतों में इस्तेमाल होने वाली कई ज्वलनशील वस्तुओं की मौजूदगी बिजली के मामूली शॉट सर्किट से भी आग को विकराल रूप लेने देती है। पिछले वर्षों में भीषण अग्निकांड जितने भी हुए हैं वहां बड़ी वजह यही सामने आती रही है। दरअसल आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक उपकरण जुटाने के जितने प्रयास इमारतों को सजाने-संवारने में होते हैं उसके आधे भी आग लगने से रोकने में नहीं होते। इसके लिए देश की अदालतों से अनगिनत बार फटकार लग चुकी है, लेकिन कोई सबक लेने को तैयार नहीं है। अब जरूरत बड़ी और कड़ी कार्रवाई की है, अन्यथा ऐसी त्रासदियों का सिलसिला नहीं रुकेगा।
Published on:
08 Dec 2025 02:28 pm
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