नवरात्र: मां दुर्गा के 9 रूपों की पूजा का उत्सव
अजहर हाशमी
प्रसिद्ध कवि और गीतकार
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नवरात्र की प्रासंगिकता स्वयंसिद्ध है। क्या हैं नवरात्र? मां दुर्गा अर्थात् शक्ति के प्रवाह में भक्ति का निर्वाह है नवरात्र। अविश्वास के अंत और विश्वास के वसंत का नाम है नवदुर्गा। पवित्रता की परात में साधना की सौगात हैं नवरात्र। सच्चे भक्त की नवदुर्गा से सीधी बात हैं नवरात्र। पावनता का पर्याय हैं नवरात्र। अध्यात्म का अध्याय हैं नवरात्र। मातृशक्ति नवदुर्गा के देवीकवच (दुर्गा सप्तशती) में नौ रूप बताए गए हैं द्ग शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चन्द्रघण्टा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री। ये सब सौम्य स्वरूप हैं।
सौम्य स्वरूप वाली ‘शांतिरूपेण संस्थिता’ नवदुर्गा सकारात्मकता की संदेशवाहक हैं। शैलपुत्री रूप में विनम्रता, ब्रह्मचारिणी रूप में एकाग्रता, चन्द्रघण्टा रूप में शीतलता, कूष्मांडा रूप में मंद-मंद मुस्कान की मृदुता, स्कंदमाता रूप में वत्सलता, कात्यायनी रूप में निर्मलता, कालरात्रि रूप में कर्मशीलता, महागौरी रूप में उज्ज्वलता, सिद्धिदात्री रूप में भक्त के मनोरथ की सफलता का प्रतीक हैं। नवदुर्गा अपनी ऊर्जा के संदर्भ में युवाओं के लिए प्रेरणा स्रोत भी हैं और कर्म का संदेश भी। यही नवदुर्गा दुष्टों को दंडित करने के लिए शक्तियों का विस्तार करते हुए उग्र रूप में क्रमश: महाकाली, महालक्ष्मी, महासरस्वती (चामुण्डा), योगमाया, देवीरक्तदंतिका, शाकम्भरी, देवी दुर्गा, भ्रामरी और चंडिका हो जाती हैं। सौम्यस्वरूपा मातृशक्ति नवदुर्गा का अपने भक्तों की रक्षा के लिए दुष्टों को दंडित करने हेतु उग्ररूप धारण करके महाकाली से चंडिका तक का यह शक्ति विस्तार ‘शठं शाठ्यम् समाचरेत’ का प्रतीक है। इसकी मैं, शोधपरक व्याख्या संवैधानिक शब्दावली में इस तरह करता हूं कि नवदुर्गा अपने सौम्य स्वरूप में भक्तों की रक्षा के लिए विधि-निर्मात्री यानी ‘विधायिका’, शांतिरूपेण संस्थिता के रूप में ‘कार्यपालिका’ किन्तु दोषसिद्ध अपराधियों को दंडित करने के लिए ‘सर्वोच्च न्यायपालिका’ हैं। इस प्रकार नवदुर्गा महिला-सशक्तीकरण का प्रतीक हैं। इस दृष्टि से नवरात्र नारी में निहित शक्तियों को चिह्नित करने, चेतना को रेखांकित करने, प्रज्ञा को प्रतिष्ठापित करने का आध्यात्मिक अभियान है।
मां सदेव संतान की हितकारिणी होती है। कोई उसकी संतान को अगर हानि पहुंचाना चाहे तो मां अपनी संतान की रक्षा के लिए बहुत बड़े खतरे से भी सामना कर लेगी। जैसे कि गाय अपने बछड़े की रक्षा के लिए शेर से भी भिड़ जाती है। मां दुर्गा का सौम्य स्वरूप जितना कोमल है, उनका भक्तों की रक्षा के लिए दैत्यों/असुरों/दुष्टों का विनाश करने वाला रूप उतना ही कठोर है। मां दुर्गा ने जब भी अपनी शक्तियों का विस्तार करके उग्र रूप में चण्ड-मुण्ड, शुंभ-निशुंभ, धूम्रलोचन अथवा अरुणासुर का विनाश किया तो सिर्फ इसलिए कि इन असुरों के अत्याचार और अहंकार से सभी त्रस्त थे। इससे यही ध्वनि निकलती है कि नारी अपनी शक्ति को पहचान ले तो संगठित होकर अन्याय और आतंक का खात्मा कर सकती है। यही बात नवदुर्गा के शाकम्भरी रूप के संदर्भ में भी कही जा सकती है। कई वर्षों तक अकाल पडऩे पर देवी ने ‘शाक से परिपूर्ण’ रूप लिया ताकि भक्तों को शाक-सब्जी से भोजन भी मिल सके और उनकी प्यास भी बुझ सके।