
यूपी के वायरल वीडियो में भाई-बहन को पुलिस ने रोका (फोटो सोशल मीडिया)
यह सवाल इसलिए खड़ा हुआ है, क्योंकि एक वायरल वीडियो ने पूरी व्यवस्था पर सवाल खड़े कर दिए हैं। एक पुलिस अधिकारी का भाई-बहन को प्रेमी समझना, उनके साथ घूमने पर सवाल उठाना और माता-पिता को हर पल उनके साथ रहने की हिदायत देना, पुलिस की सोच, समझ और कार्यप्रणाली पर गंभीर प्रश्नचिन्ह लगाता है। पुलिस का सवाल पूछना गलत नहीं है, लेकिन किससे और कैसे सवाल पूछने हैं यह मायने रखता है। दो बच्चियां अपने बड़े भाई के साथ मंदिर घूमने आईं और पुलिस उन्हें प्रेमी-प्रेमिका समझने लगी। उनकी दलीलों को अनसुना कर दिया, घरवालों से बात कराने का दबाव डाला गया।
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क्या अब भाई-बहन मंदिर जैसी पवित्र जगह भी अकेले जाने का साहस जुटा पाएंगे? जनता की सुरक्षा के नाम पर पुलिसिया प्रताड़ना नई नहीं है, लेकिन योगी राज में इस तरह की घटनाएं ज्यादा विचलित करती हैं। योगी संवेदनशील हैं, सख्त हैं और धार्मिक भी। वह दूसरों का दुख समझते हैं, गलती पर सख्ती बरतते हैं और जनता में धार्मिक संवेदनाओं के संचार के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं। ऐसे मुखिया की पुलिस जब कुछ गलत करती है, तो उसकी गूंज दूर तक सुनाई देती है, जैसा कि इस मामले में हो रहा है। सोशल मीडिया पर यूपी पुलिस आलोचनाओं के केंद्र में है। भले ही भाई-बहन को प्रेमी समझने वाली महिला अधिकारी को हटा दिया गया हो, लेकिन सवालों की धार इतनी जल्दी कुंद होने वाली नहीं है। और होनी भी नहीं चाहिए।
पुलिस सुरक्षित रहने का तरीका बता सकती है, सुरक्षा का अहसास दिला सकती है, लेकिन यह नहीं बता सकती कि कौन, किसके साथ घूमने जाएगा। भारतीय परिवारों में बड़े भाई को पिता का दर्जा दिया जाता है, लेकिन मऊ की महिला थाना प्रभारी मंजू सिंह यह भी भूल गईं। उनकी नजर में गार्जियन केवल माता-पिता ही हो सकते हैं और उनका बच्चों के साथ हर पल होना अनिवार्य है। फिर भले ही भगवान के दर्शन क्यों न करने हों। मंजू सिंह जैसे पुलिसकर्मियों के नाजायज सवाल बेकसूरों को अपराधी जैसा अहसास दिलाते हैं और यह अहसास क्षणिक मात्र नहीं रहता, ताउम्र चलता है। वायरल वीडियो उन्हें कुछ भी भूलने नहीं देते, सामाजिक ताने उनकी जिंदगी का हिस्सा बन जाते हैं। इसलिए ऐसी घटनाओं पर कड़ी प्रतिक्रिया और कड़ी कार्रवाई आवश्यक है।
बात केवल भाई-बहन की ही नहीं है, वयस्क युवा भी यदि साथ बैठे हैं तो किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए। उनका एक-दूसरे का हाथ पकड़ना या एक साथ घूमना, न अपराध है और न ही अश्लीलता। अपने रिश्ते को वह परिवार के साथ साझा करते हैं या नहीं, यह उनका नितांत निजी मामला है। कोई उन पर घरवालों से बात कराने का दबाव नहीं डाल सकता और इस ‘कोई’ में पुलिस भी शामिल है। एक सभ्य, खुशहाल समाज में एक-दूसरे के फैसलों का सम्मान करना जरूरी है और पुलिस को यह सीखना होगा।
यूपी जैसे राज्य में अगर मंदिर जा रहे भाई-बहनों को रोककर उनसे रिश्ते का सर्टिफिकेट मांगा जाएगा, तो यह बेहद दुख की बात है। उम्मीद की जानी चाहिए कि उत्तर प्रदेश पुलिस ‘मोरल पुलिसिंग’ छोड़कर अपने काम पर ध्यान देगी, वही काम जिसके लिए उसे वेतन दिया जाता है।
Updated on:
16 Dec 2025 07:10 pm
Published on:
16 Dec 2025 07:00 pm
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