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संपादकीय: मानवता को कलंकित करते आतंक के चेहरे

ऑस्ट्रेलिया ही इससे पहले इस तरह की भयावह त्रासदी भोग चुका है। उस समय 39 लोग मारे गए थे, जबकि अभी 16 मौतें हुई हैं।

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ऑस्ट्रेलिया के सिडनी में हनुक्का त्योहार मना रहे यहूदी समुदाय के लोगों पर हुआ आतंकी हमला उस सामाजिक विकृति की ओर संकेत करता है, जिसमें जाति, धर्म-समुदाय और नस्ल के आधार पर निर्दोष लोगों को निशाना बनाने के मामले बढऩे लगे हैैं। चिंता इस बात की भी है कि दुनिया में एक ओर जहां तमाम तरह की सीमाएं व बंधन टूटते जा रहे हैं वहीं दूसरी तरफ आतंक के ये चेहरे मानवता को कलंकित करते नजर आते हैं। दुनियाभर में ऐसी घटनाओं का सिलसिला पिछले कुछ समय से ज्यादा ही बढ़ गया है। ऑस्ट्रेलिया ही इससे पहले इस तरह की भयावह त्रासदी भोग चुका है। उस समय 39 लोग मारे गए थे, जबकि अभी 16 मौतें हुई हैं।


ऑस्ट्रेलिया ही नहीं, अमरीका, कनाडा और न्यूजीलैंड भी इस तरह की घटनाओं की पीड़ा भोग चुके हैं। कभी कोई चर्च में गोली चला देता है तो कभी किसी कॉन्सर्ट को निशाना बनाकर लोगों की जान ले लेता है। भारत भी ऐसी हिंसक घटनाओं से अछूता नहीं रहा। फर्क इतना जरूर है कि भारत में अब तक जो भी गोलियां चली हैं, वे बंदूकें अवैध तौर पर इस्तेमाल की गईं। जबकि दूसरे देशों की अधिकांश घटनाएं लाइसेंसशुदा हथियारों से घटित हुई हैं। सिडनी में गोलीबारी करने वाले आतंकी के पास वहां की सरकार की ओर से कानूनी रूप में उपलब्ध करवाई गई छह लाइसेंसशुदा बंदूकें थीं, जिनका इस्तेमाल उसने इस कू्ररता भरी हरकत में किया। दरअसल, ऑस्ट्रेलिया, अमरीका, कनाडा, न्यूजीलैंड जैसे देश हथियारों को आम उपभोग जैसी वस्तुओं की तरह लेते आ रहे हैं। वहां अवैध हथियारों की समस्या भले ही नहीं पनप पाई हो, पर सरकारों द्वारा खिलौनों की तरह हथियारों के लाइसेंस देेने का काम खूब होता आया है। यही वजह है कि आतंक की राह पकडऩे वालों की पहचान तक करना आसान नहीं होता। हालांकि सरकारें हथियार लाइसेंस को लोगों का मूलभूत अधिकार मानते हुए किसी तरह का बंधन नहीं रखना चाहतीं। यह मानते हुए कि लाइसेंस मांगने वाले लोग अपना भला-बुरा अच्छी तरह जानते हैं। ऑस्ट्रेलिया में एक साल में सौ से ज्यादा और अमरीका में 380 से ज्यादा सामूहिक गोलीबारी की घटनाएं साबित करती हैं कि ये देश कितने भ्रम में जी रहे हैं। पर अब समय आ गया है कि वे अपनी नीतियों पर पुनर्विचार करें और व्यवस्था में कालांतर में आ चुकी विसंगतियों व कमियों को दूर करें।

लगातार हो रही घटनाएं यह भी दर्शाती हैं कि इन देशों में कानून व्यवस्था की स्थिति, सुरक्षा और इंटेलिजेंस सिस्टम उतने पुख्ता नहीं रहे हैं। इन देशों को इसे परख कर ये सारे सिस्टम अपडेट करने होंगे।सिडनी की घटना के कुछ राजनीतिक मायने भी सामने आ रहे हैं। इजराइल के प्रधानमंत्री ने इसके लिए ऑस्ट्रेलिया की नीतियों को जिम्मेदार ठहराया है। ऐसे मामलों में संयुक्त राष्ट्र को भी दखल देना चाहिए, ताकि न सिर्फ ऑस्ट्रेलिया बल्कि पूरे विश्व में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो।