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नए कानून, पुरानी पुलिस: सुधारों की दरकार

पुलिस सुधार के लिए कई आयोग बने और कई समितियां गठित हुई, परंतु उनकी अनुशंसाओं को लागू करने के लिए केंद्र और राज्यों के रवैया हमेशा पृथक-पृथक और उदासीन रहा।

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जयपुर

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Opinion Desk

Dec 17, 2025

- आर.के.विज, सेवानिवृत्त पुलिस महानिदेशक

हाल में रायपुर में सम्पन्न पुलिस महानिदेशकों की वार्षिक बैठक में प्रधानमंत्री ने कहा कि पुलिस को अपनी छवि बदलने की जरूरत है। पुलिस को लोगों की अपेक्षा के अनुसार जल्द मौके पर पहुंचना चाहिए और संवेदनशीलता से लोगों की समस्याएं हल करनी चाहिए। प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि एआइ का उपयोग भी पुलिस अपने कर्तव्यों के निर्वहन में करें अर्थात देश में बदलती हुई परिस्थितियों, विकास और बदलते क्राइम के स्वरूप के अनुरूप पुलिस को अपनी कार्यशैली बदलने की आवश्यकता है। दरअसल, पुलिस सुधारों की बात वर्षों से होती आ रही है। हर राज्य की पुलिस में कुछ-कुछ अंतर है क्योंकि पुलिस विषय संविधान की सातवीं अनुसूची की लिस्ट-2 के अंतर्गत राज्य की विधाई शक्तियों के अंतर्गत आता है परंतु आपराधिक कानून समवर्ती सूची में है और अधिकांश कानून केंद्र सरकार के होने से सभी राज्यों पर एक समान लागू होते हैं। पुलिस अधिनियम, 1861 अंग्रेजों द्वारा बनाया गया था। आजादी को मिले 80 वर्ष होने वाले हैं, इसमें सुधार की आवश्यकता है।

पुलिस सुधार के लिए कई आयोग बने और कई समितियां गठित हुई, परंतु उनकी अनुशंसाओं को लागू करने के लिए केंद्र और राज्यों के रवैया हमेशा पृथक-पृथक और उदासीन रहा। उदाहरण के तौर पर, नेशनल पुलिस कमीशन ने कहा कि पुलिस को थर्ड-डिग्री तरीके इस्तेमाल नहीं करने चाहिए और साइंटिफिक इन्वेस्टिगेशन की ओर ध्यान देना चाहिए। मालीमत कमेटी और पद्मनाभैया समिति ने अनुशंसा की कि पुलिस अनुसंधान इकाई को कानून-व्यवस्था इकाई से पृथक करना चाहिए ताकि पुलिस अनुसंधान की गुणवत्ता में सुधार हो सके। वरिष्ठ वकील सोली सोराबजी ने मॉडल पुलिस एक्ट का ड्राफ्ट बनाया, परंतु किसी भी राज्य और यूनियन टेरिटरी ने उसे नहीं अपनाया। वर्ष 2005 में गृह मंत्रालय ने पिछली सभी समितियों और आयोगों की अनुशंसाओं के आधार पर 49 रिफॉम्र्स की सूची बनाकर राज्यों को अग्रेषित की, परंतु पुलिस सुधारों का पहिया गतिशील नहीं हो सका।

2006 में सुप्रीम कोर्ट ने 'प्रकाश सिंह' प्रकरण में विगत अनुशंसाओं के आधार पर कुल 6 निर्देश जारी किए। इनमें से एक निर्देश यह था कि थाना प्रभारी, जिला पुलिस अधीक्षक और राज्य के पुलिस महानिदेशक की पदस्थापना की न्यूनतम अवधि 2 वर्ष हो। थाना प्रभारी व पुलिस अधीक्षकों के लिए तो यह निर्देश लागू नहीं हुए, पर पुलिस महानिदेशक के लिए कुछ हद तक इसे लागू किया गया। कोर्ट के मना करने के बाद भी कई राज्य पूर्णकालिक पुलिस महानिदेशक के स्थान पर कार्यवाहक पुलिस महानिदेशक को पदस्थ कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट की दूसरी मुख्य अनुशंसा यह थी कि अनुसंधान इकाई को कानून-व्यवस्था इकाई से बड़े शहरों में थाना स्तर पर पृथक किया जाए। राज्यों ने इस संबंध में नियम तो अवश्य बनाएं, परंतु पालन कम ही हुआ, क्योंकि इसे लागू करने के लिए अधिक अनुसंधान अधिकारियों की आवश्यकता थी, जिसे बजट की समस्या बताकर राज्यों ने स्वीकृति देने में आनाकानी की। तीसरी अनुशंसा में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पुलिस उप-अधीक्षक अर्थात डीएसपी पद तक, ट्रांसफर व पोस्टिंग, वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों की एक समिति करे। अधिकांश राज्यों में स्थापना बोर्ड जरूर बनाए गए, परंतु डीएसपी की पदस्थापना की शक्ति स्थापना बोर्ड को नहीं दी गई।

कुल मिलाकर, सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पालन भी आंशिक रूप से किया गया है। इस दौरान कई नियम कानून बदले गए ताकि पुलिस को जवाबदेह बनाया जा सके। गिरफ्तारी के नियम बदले गए और सुप्रीम कोर्ट ने भी अनावश्यक गिरफ्तारियां को रोकने के लिए अर्नेश कुमार प्रकरण में निर्देश जारी किए। पुलिस थर्ड-डिग्री का इस्तेमाल न करें, इसलिए अभिरक्षा में प्रताडऩा पर भी डीके बसु प्रकरण के बाद कानून बदल गया। गिरफ्तारियां के संबंध में कुछ सुधार अवश्य आया है, परंतु अभी पुलिस को लगातार सचेत रहने की आवश्यकता है। जुलाई 2024 से देश में नई आपराधिक संहिता लागू हुई है। हालांकि नए कानून, पुराने कानून से कुछ अधिक भिन्न नहीं है, परंतु कुछ बदलाव अवश्य प्रगतिशील है। लोगों की सुविधा के लिए इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से रिपोर्ट दर्ज करने का प्रावधान किया गया है। मौके की कार्यवाही की फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी को अनिवार्य कर समय-सीमा में मजिस्ट्रेट को भेजने का प्रावधान किया गया है। सात वर्ष से अधिक सजा वाले प्रकरणों में फोरेंसिक एक्सपर्ट को मौके पर पहुंचकर कार्यवाही करना जरूरी है। गृह मंत्रालय ने पुलिस आधुनिकरण बजट के साथ पुलिस सुधारों को लिंक कर राज्यों को अतिरिक्त बजट देने के लिए प्रोत्साहित करने का प्रयास भी किया। पुलिस आधुनिकरण बजट योजना अवश्य जारी है, परंतु इसका बजट लगातार कम हो रहा है।

नए कानूनों के क्रियान्वयन के लिए जरूरी है कि पुलिस आधुनिकरण बजट बढ़ाया जाए। पुलिस को अच्छे वाहन उपलब्ध कराए जाएं ताकि उनकी मोबिलिटी में वृद्धि हो और वे शीघ्र मौके पर पहुंच सके। पुलिस जवानों के लिए आवास गृहों की भी संख्या बढ़ानी चाहिए क्योंकि इसके स्थान पर दिए जाने वाला भत्ता बढ़ती महंगाई में पर्याप्त नहीं हो पाता। कुछ पुलिस सुधार बिना बजट के आंतरिक रूप से लागू किए जा सकते हैं, परंतु कुछ के लिए बजट की जरूरत जरूर होगी।