हिंसक घटनाओं में 2010 के मुकाबले 2022 में 77 प्रतिशत की कमी आई है। अगर नक्सल समस्या की मौजूदा स्थिति को देखें तो लगता यही है कि इसे खत्म करने की दिशा में सरकारों के प्रयासों को आशातीत सफलता मिली है।
केंद्र व राज्यों की सरकारों के साझा प्रयासों और लोगों की जागरूकता के कारण नक्सल समस्या कम हुई है। संभवत: इसी को आधार बनाते हुए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने हाल ही समीक्षा बैठक में भरोसा जताया कि दो वर्ष में देश से नक्सल समस्या पूरी तरह से खत्म हो जाएगी। उनका दावा है कि चार दशक में 2022 के दौरान नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में हिंसा और उससे जुड़ी मौतें सबसे कम हुई हैं। हिंसक घटनाओं में 2010 के मुकाबले 2022 में 77 प्रतिशत की कमी आई है। अगर नक्सल समस्या की मौजूदा स्थिति को देखें तो लगता यही है कि इसे खत्म करने की दिशा में सरकारों के प्रयासों को आशातीत सफलता मिली है।
यह सच है कि देश में नक्सल से प्रभावित क्षेत्र सिकुड़ रहे हैं। यह समस्या वर्तमान में महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, झारखंड, ओडिशा, बिहार, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में सीमित क्षेत्र तक सिमट गई है। नक्सल प्रभावित क्षेत्रों की स्थिति को देखा जाए तो कुछ साल में सुरक्षा स्थिति में महत्त्वपूर्ण सुधार हुआ है। केंद्र ने नक्सलियों से निपटने के लिए प्रभावित क्षेत्रों में सुरक्षा बढ़ाई है। हाल ही प्रभावित क्षेत्रों में केंद्रीय सशस्त्र बलों के 195 नए शिविर स्थापित किए गए हैं, जबकि 44 और नए शिविर स्थापित किए जाने हैं। नक्सल समस्या खत्म करने को लेकर सरकार के अपने दावे हो सकते हैं, लेकिन इसके जमीनी सफाए के लिए नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में विकास की रफ्तार को बढ़ाने की जरूरत है। प्रभावित क्षेत्रों को विकास के मामले में अन्य क्षेत्रों के बराबर लाकर काफी हद तक नक्सल समस्या पर काबू पाया जा सकता है। नक्सलियों के विरोध के कारण प्रभावित क्षेत्र विकास से वंचित रहे हैं। जब भी शिक्षा, चिकित्सा और सडक़ जैसी बुनियादी सुविधाओं को लेकर निर्माण गतिविधियां शुरू की जाती हैं, तब-तब हिंसा के जरिए नक्सली उन्हें रोकने को मजबूर कर देते हैं। प्रभावित क्षेत्रों में विकास नहीं होना नक्सलियों के लिए अच्छा माना जाता रहा है।
अधिकतर नक्सल प्रभावित क्षेत्र आदिवासी बहुल हैं, ऐसे में यह भी देखना होगा कि विकास का मौजूदा ढर्रा कहीं आदिवासियों की संस्कृति, पहचान, जंगल और वनोपज आधारित उनके रोजगार को कहीं छीन नहीं ले। नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में विकास आदिवासियों की जरूरत के अनुरूप होना चाहिए। इसके लिए केंद्र और प्रभावित राज्यों को जमीनी रणनीति पर काम करना होगा। साथ ही इस बात का भी ध्यान रखना होगा कि नक्सली कुछ समय तक शांत रहने के बाद पूरी ताकत से बड़ा हमला करते हैं। नक्सलियों की इस रणनीति को ध्यान में रखते हुए सतर्क रहना भी आवश्यक है।