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Opinion : सामाजिक जिम्मेदारी का भी बड़ा दिन है मकर संक्रांति

मकर संक्रांति, जो सूर्य के उत्तरायण में प्रवेश का प्रतीक है, दान और पुण्य का पर्व माने जाने के बावजूद हर साल अपने पीछे कई दर्दनाक कहानियां छोड़ जाता है। यह पर्व हमें जीवन में प्रकाश, ऊर्जा और दान की महत्ता का संदेश देता है, लेकिन क्या हम वास्तव में इसके मूल संदेश को समझ […]

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मकर संक्रांति, जो सूर्य के उत्तरायण में प्रवेश का प्रतीक है, दान और पुण्य का पर्व माने जाने के बावजूद हर साल अपने पीछे कई दर्दनाक कहानियां छोड़ जाता है। यह पर्व हमें जीवन में प्रकाश, ऊर्जा और दान की महत्ता का संदेश देता है, लेकिन क्या हम वास्तव में इसके मूल संदेश को समझ रहे हैं? शायद नहीं, क्योंकि दान के इस पावन दिन, जाने-अनजाने हम पाप का भी बोझ उठा लेते हैं। जयपुर, सूरत, इंदौर और अहमदाबाद ही नहीं बल्कि पतंगबाजी के लिए मशहूर दूसरे कई शहरों में मकर संक्रांति के काफी पहले व बाद तक पतंगबाजी के जुनून में हर साल कई मासूमों की जान चली जाती है। कोई हाईटेंशन लाइन की चपेट में आता है, तो कोई सड़क पर पतंग लूटते समय वाहन दुर्घटना का शिकार बनता है। सबसे खतरनाक है चाइनीज मांझा, जो अब 'यमदूत' के समान मंडराता है। इस जानलेवा धागे से गले कटने और पक्षियों की मौत की खबरें आम हो गई हैं। चाइनीज मांझे पर प्रतिबंध तो लगा है, लेकिन बाजार में इसकी उपलब्धता हमारी प्रशासनिक कमजोरी और समाज की उदासीनता का कड़वा सच है। यह मांझा केवल इंसानों के लिए नहीं, बल्कि हमारे पर्यावरण और पक्षियों के लिए भी घातक है। पतंगबाजी के दौरान न जाने कितने पक्षी घायल होते हैं या दम तोड़ देते हैं। क्या हम अपने उत्साह के लिए इन बेबस प्राणियों की जान लेने का अधिकार रखते हैं?
सच तो यह है कि मकर संक्रांति का पवित्र दिन एक सामाजिक जिम्मेदारी का भी दिन है। सुबह-शाम, जब पक्षी अपने घोंसलों से निकलते या लौटते हैं, पतंग उड़ाने से बचना हमारी नैतिक जिम्मेदारी है। हमारी लापरवाही से यदि एक भी जान जाती है, तो यह हमारे पुण्य के सारे मायने मिटा देती है। बच्चों की सुरक्षा भी उतनी ही जरूरी है। अक्सर बच्चे पतंग लूटने के चक्कर में ट्रैफिक में दौड़ पड़ते हैं, जिससे कई बार दुर्घटनाएं हो जाती हैं। इसके अलावा, बिना मुंडेर की छतों से गिरने की घटनाएं भी हर साल होती हैं। अभिभावकों की यह जिम्मेदारी बनती है कि वे बच्चों को सुरक्षित स्थानों पर पतंगबाजी के लिए न केवल प्रेरित करें बल्कि उन पर लगातार नजर भी रखें। कोई भी पर्व यह सीख नहीं देगा कि अपनी खुशियों के लिए दूसरों की जान जोखिम में डालें? हमें केवल पतंग उड़ाने और मौज-मस्ती तक सीमित नहीं रहते हुए यह भी देखना चाहिए कि हमारी गतिविधियों से किसी की जान को खतरा न हो। यह पर्व केवल तिल-गुड़ की मिठास तक सीमित नहीं है, बल्कि समाज, पर्यावरण और प्राणी मात्र के प्रति हमारे दायित्व की याद भी दिलाता है।