जयपुरPublished: Oct 14, 2023 02:39:08 pm
Gulab Kothari
व्यक्ति पहले स्वयं से झूठ बोलता है, फिर वही झूठ दूसरों से बोलता है। यही बात महिला सशक्तीकरण पर अक्षरश: लागू होती है। महिला, सशक्तीकरण चाहती है-अपने पुरुष के आगे खड़ी होने को-दूसरे पुरुष से? क्या पुरुष-प्रकृति का सम्बन्ध इतना सरल है।
गुलाब कोठारी
व्यक्ति पहले स्वयं से झूठ बोलता है, फिर वही झूठ दूसरों से बोलता है। यही बात महिला सशक्तीकरण पर अक्षरश: लागू होती है। महिला, सशक्तीकरण चाहती है-अपने पुरुष के आगे खड़ी होने को-दूसरे पुरुष से? क्या पुरुष-प्रकृति का सम्बन्ध इतना सरल है। क्या अज्ञानता इसका कारण है अथवा निर्धनता है? इसका पहला कारण तो अहंकार ही है-पुरुष का। आजादी के 75 वर्षों बाद भी आदिवासी-दलित महिला वहीं खड़ी है। आरक्षण भी उनका रक्षण कहां कर पाया! आज तो संसद में एक तिहाई सीटों को महिला आरक्षण में लाने की बात हो रही है। क्या इन महिलाओं की विधायक/सांसद के रूप में भूमिकाएं देश को नई सदी की ओर ले जा सकेंगी!
अभी तो महिला अपने पति की सांकलों से ही मुक्त नहीं हो पा रही है। कानून में उसे आरक्षण तो है, आरक्षित पद पर कार्य करने की गारण्टी नहीं है। चुनी वह जाती है। पर अकसर काम परिजन करते हैं। मतदाता इस बात से बेखबर है कि उसके वोट से महिला चुनी जाएगी या पुरुष। कानून की पालना में सीटें स्थायी रूप से तय कर दीं। यह दूसरा अन्याय है। होना तो यह चाहिए कि आपकी सूची में एक तिहाई महिला प्रत्याशी हों, कहीं से भी, किसी के सामने भी चुनाव लड़ें। कानून अंधा होता है। उसे देशहित से पहले सबूतों की चिन्ता होती है। ऐसे में महिला को उचित अधिकार कैसे मिलेगा। तब महिला का शोषण क्यों नहीं होगा! बल्कि कहना चाहिए कि लोकतंत्र का तमाशा क्यों नहीं होगा? इस व्यवस्था का प्रभाव यह हुआ कि महिला के सशक्त होने की आवश्यकता ही नहीं रही। उसका महिला होना ही पर्याप्त है। अब तो नए पद ‘सृजित’ हो गए-सरपंच पति, मेयर पति, विधायक पति...। मैं पिछले दिनों तीनों प्रान्तों राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ का चुनावी माहौल देखने निकला तो ऐसे पीठासीन (पत्नियों की पीठ पर लदे) लोगों से अच्छा परिचय हुआ। ज्यादातर से तो मैंने बात करने तक से मना कर दिया। जीन्स-टीशर्ट में मूंछों पर ताव देते ये सरपंच पति-अध्यक्ष पति क्या लोकतंत्र के लिए नासूर नहीं हैं? जनता ने इन पतियों को तो नहीं चुना, फिर इनको सहन कैसे कर लेती है?