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Patrika Opinion: ब्रांड वैल्यू से ज्यादा होना चाहिए मानवीय मूल्य

समझना होगा कि विकास के सोपान मूल्यहीन धारणाओं पर आधारित होने चाहिए या उच्च मूल्यों वाले। प्रोडक्ट का मूल्यवान होना ही काफी होगा या उसे बनाने वाले और इस्तेमाल करने वाले हाथों का भी कोई मूल्य बचेगा?

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जयपुर

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Nitin Kumar

Jun 27, 2024

भेदभाव से मुक्त समाज की रचना का लक्ष्य पाने के लिए जितनी शिद्दत से कोशिश होनी चाहिए वह हो नहीं रही है। कई मौकों पर भेदभाव जानबूझकर किया जाता है तो कहीं अनजाने में ऐसा होता रहता है। भेदभाव का ताजा उदाहरण दुनिया की नामचीन मोबाइल फोन निर्माता कंपनी के लिए भारत में उत्पाद को तैयार करने वाली कंपनी के प्लांट का है। यहां विवाहित महिलाओं को सिर्फ इसलिए नौकरी पर रखने से मना किया जा रहा है कि ऐसा करने में ‘रिस्क फैक्टर’ है। कंपनी का मानना है कि विवाहित महिलाओं को नौकरी देने पर उनकी पारिवरिक जिम्मेदारियों और संभावित गर्भधारण की वजह से काम प्रभावित होने का जोखिम है।

हैरत की बात यह है कि कंपनी के पूर्व अधिकारी इस तथ्य को स्वीकार करते हैं, लेकिन वर्तमान अधिकारी नहीं। इस भेदभाव की शिकार महिलाओं के सामने आने और शिकायतों के बाद केंद्र सरकार ने तमिलनाडु सरकार से इसकी पूरी रिपोर्ट मांगी है। भारत में स्थित प्लांट में नामचीन कंपनी के सबसे मूल्यवान ब्रांड की असेंबलिंग का काम होता है, लेकिन मानव संसाधन के इस्तेमाल में न्यूनतम मूल्यों का पालन करना भी वहां शायद जरूरी नहीं समझा जाता। आमतौर पर प्रभावित महिलाएं इसे संघर्ष का मुद्दा बनाने की बजाय कहीं और नौकरी की तलाश में लग जाती हैं। इसलिए छोटी-बड़ी हर तरह की कंपनियों में ऐसे भेदभाव चलते रहते हैं। लागत कम करने और अधिक से अधिक मुनाफा कमाने की होड़ में लगी कंपनियां मानव संसाधन को मशीन से बदलने की ओर उद्दत हैं। इसकी बड़ी वजह यही है कि अक्सर मानवीय जरूरतें उत्पादन को प्रभावित करती प्रतीत होती हैं। मशीन के इस्तेमाल में नैतिक और सामाजिक मूल्यों की बाधा नहीं आती। न तो वर्किंग ऑवर की चिंता रहती है और न ही कर्मचारियों के अनुपस्थित होने की। आर्टिफिशियल इंजेलिजेंस (एआइ) की ओर बढ़ता रुझान मशीन पर पूरी निर्भरता की ओर ले जा रहा है। इसका असर आने वाले समय में जीडीपी में बढ़ोतरी के रूप में दिख सकता है और देश विकास के नए सोपान भी गढ़ सकता है। लेकिन समझना होगा कि विकास के सोपान मूल्यहीन धारणाओं पर आधारित होने चाहिए या उच्च मूल्यों वाले। प्रोडक्ट का मूल्यवान होना ही काफी होगा या उसे बनाने वाले और इस्तेमाल करने वाले हाथों का भी कोई मूल्य बचेगा?

प्रकृति भेदभाव नहीं करती, लेकिन हमारे भेदभाव का शिकार वह जरूर होती है। मनुष्य को यह भी समझना होगा कि धरती सिर्फ उसी के लिए नहीं है। इस समझ की शुरुआत स्त्री-पुरुष में भेदभावपूर्ण व्यवस्थाओं को मिटाकर ही हो सकती है। धरती पर टिकाऊ जीवन के लिए यह जरूरी शर्त है।