ओलंपिक खेलों के आयोजन की मेजबानी भारत को मिलेगी अथवा नहीं, यह तय होने में अभी वक्त है। लेकिन यह भी सच है कि इन खेलों का आयोजन करने वाले देश में अत्याधुनिक खेल सुविधाओं और दूसरी आधारभूत सुविधाओं का व्यापक विस्तार हो जाता है। दुनिया को भी ओलंपिक आयोजन की मेजबानी के माध्यम से बड़ा संदेश जाता है सो अलग। इसके बावजूद ओलंपिक आयोजन का दावा पेश करने के दौर में ही टारगेट ओलंपिक पोडियम स्कीम से हाथ खींचने की खेल मंत्रालय की मंशा को सर्वथा विपरीत कदम ही कहा जा सकता है।
पेरिस ओलंपिक की बात करें तो पोडियम स्कीम का फंड महज 470 करोड़ रुपए था। जबकि पेरिस ओलंपिक के आयोजन पर फ्रांस का खर्च लगभग 81 हजार करोड़ रुपए था। वर्ष 2036 के ओलंपिक आयोजन में खर्चों का अनुमान लगाया जाए तो यह आज से दो से तीन गुणा ज्यादा ही होगा। खिलाडिय़ों के फंड में कटौती होगी, तो उनकी ट्रेनिंग और प्रैक्टिस पर भी असर पडऩा तय है। ऐसा हुआ तो आने वाले ओलंपिक आयोजनों में खिलाडिय़ों के पदक जीतने की संभावनाओं पर भी असर पडऩा तय है। और फिर, यदि हमारे यहां ओलंपिक का आयोजन हो तब खिलाडिय़ों का प्रदर्शन कमजोर दिखे यह तो कतई स्वीकार नहीं होना चाहिए। ‘टॉप्स’ के तहत पदक जीतने की संभावनाओं वाले करीब तीन सौ खिलाडिय़ों को विशेष प्रशिक्षण दिया जाता है। हैरत की बात है कि नए नियम बनाकर इस संख्या व राशि में कटौती करने की तैयारी है।
यह सच है कि पिछली बार के 7 के मुकाबले इस बार भारत को ओलंपिक में 6 पदक ही मिले। इस कारण वह पदक तालिका में पिछली बार के 48वें स्थान से खिसक कर 71वें स्थान पर आ गया। लेकिन और मजबूती से उभर कर आने के लिए कटौती का विचार छोडक़र खिलाडिय़ों पर खर्च का अनुपात बढ़ाना ही चाहिए। तब ही हमारे खिलाड़ी बेहतर प्रदर्शन कर पाएंगे।