
पिछले वर्षों में समूची दुनिया जलवायु परिवर्तन के खतरों से जूझ रही है। वैश्विक तापमान में बढ़ोतरी के साथ-साथ कड़ाके की सर्दी व अतिवृष्टि जैसे हालात ने लोगों की सेहत के लिए खासी चुनौतियां पेश की हैं। लैंसेट की ताजा रिपोर्ट के चौंकाने वाले तथ्य ये हैं कि स्वास्थ्य जोखिमों को ट्रैक करने वाले 15 में से 10 संकेतक बीते वर्ष ही नए कीर्तिमान कायम कर चुके हैं। यह वर्ष अब तक का सबसे गर्म दिन भी देने वाला रहा है। जाहिर है जलवायु परिवर्तन के इस दौर में गर्मी जनित बीमारियां जानलेवा साबित हुई हैं। जलवायु में बदलाव ने ज्यादा खतरा 65 वर्ष से ज्यादा उम्र के लोगों के लिए पैदा किया है। गर्मी की वजह से हुई मौतों में इस आयुवर्ग के लोग वर्ष 1990 के दशक की तुलना में 167 फीसदी बढ़े हैं।
जलवायु परिवर्तन के कारण लगातार असामान्य मौसम की आशंका बनी रहती है। यानी कम समय में काफी ज्यादा बरसात, सामान्य से ज्यादा गर्मी या अत्यधिक सर्दी की स्थिति अब पहले से ज्यादा होने लगी है। देखा जाए तो दुनिया के हर हिस्से में जलवायु परिवर्तन के कारण उन तमाम कारकों को नुकसान पहुंच रहा है जो बेहतर स्वास्थ्य के लिए जरूरी हैं। साफ-सुथरी हवा, स्वच्छ पेयजल व पौष्टिक खाद्य पदार्थों की आवश्यकता भी इससे प्रभावित हो रही है। ऐसा भी नहीं है कि जलवायु परिवर्तन से जुड़े खतरों से अनजान रहते हुए इनसे निपटने के उपाय नहीं किए गए हों। पर हकीकत यह है कि जितना किया जाना चाहिए वह पर्याप्त नहीं है। मानसून चक्र में बदलाव, बढ़ता तापमान, बाढ़, सूखा तथा भूजल स्तर में गिरावट आम बातें हो गई हैं। बदलती जलवायु संक्रामक रोगों के तीव्र प्रसार की वाहक भी बनती है। जाहिर है बुजुर्गों पर इन बीमारियों की मार ज्यादा पडऩे वाली है। भारत भी जलवायु परिवर्तन के कारण संक्रामक रोगों के प्रसार के खतरों का सामना कर रहा है। मौसम में बदलाव आपदा में बदलने लगे तो काबू पाना काफी मुश्किलों भरा होता है। वैश्विक तापमान क्यों बढ़ रहा है और मौसम चक्र में तेजी से बदलाव क्यों होने लगा है, यह भी किसी से छिपा नहीं है।
बुजुर्गों की सेहत को लेेकर जताई जा रही चिंता वाकई में गंभीर है। ऐसा भी नहीं कि सेहत को लेकर यह खतरा सिर्फ बुजुर्गों के लिए ही है। बदलती जलवायु के कारण भविष्य को लेकर जोखिमों और आशंकाओं के बीच यह एक सुखद संकेत जरूर हो सकता है कि कोयला जलाने में कमी के कारण वायु प्रदूषण से होने वाली मौतों में कमी आई है। पर यह भी है कि ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने के ठोस प्रयास नहीं हुए तो हालात गंभीर होते जाएंगे। इसके लिए वैश्विक स्तर पर साझा प्रयास करने ही होंगे।
Published on:
30 Oct 2024 10:08 pm
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