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सामयिक : नीति-निर्माताओं को पूर्ण रोजगार की प्रतिबद्धता पर कायम रहना चाहिए

कंपनियों की ऑटोमेशन व आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस तकनीक के विस्तार में सफलता को पूर्ण रोजगार के लिए संघर्ष की शुरुआत माना जा सकता है

Jun 14, 2021 / 08:16 am

विकास गुप्ता

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कॉनर सेन, स्तम्भकार

श्रमबल की मौजूदा कमी थोड़े समय की हो सकती है क्योंकि श्रमिक अगले कुछ माह में काम पर लौट आएंगे, लेकिन मजदूरी की अनुदार प्रवृत्ति के चलते यह पहले जैसी नहीं रहेगी। यही वजह है कि पिछली बार की तुलना में इस बार का आर्थिक विस्तार अलग होगा। सीमित श्रमबल के साथ शुरू होने वाले इस आर्थिक विस्तार में ऑटोमेशन व ऑर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (एआइ) के इर्द-गिर्द व्यवसायों के निर्माण को प्रोत्साहन मिलेगा, बजाय ऐसी कंपनियों के, जो बड़ी संख्या में कम वेतन वाले श्रमिकों पर निर्भर होती हैं। इससे समाज के समक्ष जोखिम और अवसर दोनों प्रस्तुत होंगे, विशेषकर आय असमानता जैसी चुनौतियों के संदर्भ में।

जब कोई व्यवसाय मालिक या उद्यमी व्यापार की शुरुआत या उसका विस्तार करना चाहता है तो आर्थिक स्थिति मायने रखती है। वर्ष 2010 की शुरुआत में, जब बेरोजगारी अधिक और मजदूरी कम थी, तो उबर टेक्नोलॉजीज और लिफ्ट जैसी श्रम केंद्रित परिवहन कंपनियों को वातावरण अनुकूल लगा। वे इस अर्थ में टेक्नोलॉजी कंपनियां थीं कि उन्होंने अपने ग्राहकों को फोन पर एक बटन दबाकर वाहन मंगाने की अनुमति दी। यद्यपि हम मानते हैं कि 2010 का दशक प्रौद्योगिकी कंपनियों के प्रभुत्व वाला दशक था, पर यह उत्पादकता वृद्धि के दृष्टिकोण से निराशाजनक था। वजह, कम वेतन वाले कामगारों की बड़ी संख्या थी, इसलिए अक्सर लेबर-सेविंग टेक्नोलॉजी में निवेश के बजाय ज्यादा लोगों को काम पर रखना उचित समझा जाता था। ऐसे में कंपनियों को भविष्य की खातिर योजना बनाने की जरूरत भी नहीं थी। इससे आर्थिक विकास में रुकावट आई।

दूरदर्शी उद्यमी आज खुद को ऐसी स्थिति में नहीं पाते हैं। एक वर्ष पहले की तुलना में आज उबर या लिफ्ट की सेवाएं 40त्न तक महंगी हो गई हैं। चिपोटल मैक्सिकन ग्रिल, अमेजन डॉट कॉम और मैकडॉनल्ड्स जैसी कम्पनियां श्रमिकों को आकर्षित करने के लिए मजदूरी बढ़ा रही हैं। वर्ष 2020 में निर्मित १०० अरब डॉलर वाले व्यवसाय सस्ते श्रम पर निर्भर नहीं रहेंगे। वे या तो अन्य कंपनियों से ज्यादा वेतन पर कामगार लाएंगे या उनका रुझान श्रमबल पर निर्भरता को कम करने के प्रति बढ़ेगा। टेक्नोलॉजिस्ट्स वर्षों से ऑटोमेशन और एआइ आधारित अर्थव्यवस्था पर बात कर रहे हैं। बेहतर प्रौद्योगिकी से उबर या लिफ्ट ड्राइवरलैस हो जाएंगी तो पूर्व के ड्राइवर उच्चतर पारिश्रमिक का कोई दूसरा काम तलाश सकेंगे। जोखिम यह है कि कामगार कुछ वर्ष के लिए तब तक अधिक वेतन हासिल करने में सक्षम हो सकते हैं, जब तक कि कंपनियां लेबर-सेविंग तकनीक न अपना लें और पुन: छंटनी और वेतन में कटौती का रुख न करें, जिससे पुन: आय की असमानता और बढ़ेगी।

ये ऐसे परिदृश्य हैं जिन्हें हमें मौजूदा अप्रत्याशित दौर में ध्यान में रखना चाहिए। कंपनियों का ध्यान अभी भविष्य की योजनाओं के बजाय मौजूदा बाधाओं पर ही टिका है। जैसे ही व्यापारी और उद्यमी अगले हफ्ते के बजाए 2025 के लिए योजना बनाने की स्थिति में होंगे, उनका फोकस कामगारों को ज्यादा वेतन के बजाए ऑटोमेशन और लेबर-सेविंग के अन्य प्रारूपों पर रहेगा। स्पष्ट है कि नीति-निर्माताओं को पूर्ण रोजगार के प्रति अपनी प्रतिबद्धता पर कायम रहना चाहिए, क्योंकि वेतन-वृद्धि का हमेशा बने रहना संदेह के घेरे में है।

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