ध्यान की बात की जाए, तो आध्यात्मिक अवधारणा के रूप में, इसका अभ्यास दो तरह से किया जा सकता है: सचेतन ध्यान यानी माइंडफुल ध्यान (चिंतन और प्रतिबिंब) और दृष्टिगत ध्यान यानी मेडिटेटिव ध्यान (चिंतनशीलता और स्थिरता)। माइंडफुल ध्यान एक व्यक्ति को स्वयं का विश्लेषण करने और समझने, विचारों व भावनाओं को व्यवस्थित करने और प्रक्रियाओं और शक्ति संरचनाओं से ग्रसित होने के बजाय प्रभावशीलता और उद्देश्य पर ध्यान केंद्रित करने के लिए, नैतिक व रणनीतिक क्षमता सुधारने व समायोजित करने में सहयोग देता है। मेडिटेटिव ध्यान व्यक्ति को अपने स्वभाव को बेहतर ढंग से समझने और व्यक्तित्व के छिपे हुए पहलुओं की खोज करने में सहायता करता है।
दोनों अवधारणाएं एक-दूसरे के विपरीत प्रतीत हो सकती हैं, लेकिन एक व्यक्ति को दर्शन और ध्यान दोनों का अभ्यास करना चाहिए, क्योंकि वे एक साथ एक व्यक्ति को खुद को और दुनिया को समझने के लिए सशक्त बनाते हैं। दर्शन दूसरों द्वारा दुनिया के अद्वितीय प्रतिबिंबों का निरीक्षण करने में सक्षम बनाता है, जबकि ध्यान बाहरी दुनिया के अर्थ को समझने के लिए उन अवलोकनों को संसाधित करने में मदद करता है, और दुनिया का एक विस्तृत दृष्टिकोण प्राप्त करने के साथ आंतरिक दुनिया संग सह-अस्तित्व में रहने में सहायक होता है। दर्शन और ध्यान एक लीडर के रोजमर्रा के और आने वाले सभी निर्णयों के लिए एक आधार बनाते हैं।