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विरासत के संरक्षण का मतलब उनकी सूरत बदलना नहीं होता

ब्रांडिंग एक अनूठी पहचान बनाने का नाम है न कि अपनी पहचान खोने का

3 min read
Jul 27, 2023
विरासत के संरक्षण का मतलब उनकी सूरत बदलना नहीं होता

तृप्ति पांडेय
पर्यटन और संस्कृति विशेषज्ञ
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पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए अक्सर नई-नई योजनाओं में बजाय ऐतिहासिक इमारतों के इर्द-गिर्द पसरी गंदगी, वहां पहुंचने वाले रास्तों और उन पर ट्रैफिक की बदइंतजामी आदि जैसे विषयों पर ध्यान दिए जाने के वे काम प्राथमिकता में आ जाते हैं जिन पर लाखों-करोड़ों रातोंरात खर्च हो सकते हैं पर जो पर्यटकों के मन में बड़ा सवाल खड़ा करते हैं - ‘आखिर ये क्यों किया?’

भारतीय पर्यटन में विदेशी और देशी पर्यटकों के लिए राजस्थान सबसे बड़ा आकर्षण है और बाकी राज्य कहीं न कहीं राजस्थान की तर्ज पर चलना चाहते हैं पर अब तो राजस्थान ही कुछ नया करने के चक्कर में ऐसे काम करने लगा है जिनसे उसे खुद ही कदम पीछे हटाने पड़ रहे हैं। ऐसा ही एक उदाहरण है जलमहल झील पर लगने वाले रात्रि बाजार का। पर्यटन जगत उसके विरोध में बोलता रहा पर कोई सुनवाई नहीं हुई। अब महीनों बाद जाकर उसे जी-20 सम्मेलन को देखते हुए बंद किया गया है क्योंकि विदेशी प्रतिनिधि आ रहे हैं और बाजार के लिए लगी दुकानों के कारण उन्हें जलमहल दिखेगा नहीं। तो सवाल उठता है कि सालभर जयपुर आने वाले बाकी पर्यटकों ने क्या गुनाह किया है? अब जरूरत इस बात की है कि कम से कम इस रात्रि बाजार से पर्यटन को बचाया जाए और सुनिश्चित किया जाए कि यह दोबारा न लगे।

हाल ही के कुछ और खयाल हैं जो लोगों का दिल बहलाने के लिए तो अच्छे लगते हैं पर वे खयाली पुलाव बन जाते हैं। जैसे कि हेलिकॉप्टर से जैसलमेर के रेगिस्तान और जयपुर शहर दिखाने के खयाल! रेतीले टीलों के सन्नाटे का अपना खिंचाव होता है। फिर हेलिकॉप्टर की उड़ान के साथ वे टीले भी उड़ेंगे, क्या किसी ने सोचा? जयपुर शहर के शोर-शराबे में उड़ान के शोर का क्या असर होगा, क्या इस ओर ध्यान गया? खैर चूंकि वे योजनाएं जुनून में तय की गईं नतीजतन शुरू होने से पहले ही खत्म हो गईं। पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए बार-बार रोप-वे और केबल कार और उन इमारतों को प्रकाशित करने का खयाल ही क्यों आता है, जिनकी पहली जरूरतें रखरखाव और वहां पहुंच रहे पर्यटकों की सुविधाओं से जुड़ी हैं!

बड़ी हैरत होती है जब पुरानी बेशकीमती विरासत को हर रोज नई सोच के साथ खूबसूरत बनाने की कोशिश में उसकी शक्ल ही बिगाड़ दी जाती है। बस एक शब्द हाथ में आ गया है ‘ब्रांडिंग’! एक नया ब्रांड तैयार करना है पर क्यों करना है ये नहीं पता है चाहे वे नेता हों या अधिकारी! किसने उन्हें बताया कि पर्यटकों को लुभाने के लिए बने बनाए पुराने गेट या भवनों पर नए रंग-ढंग से पेंटिंग करना बड़ा कामयाब तरीका है, जैसा कि इन दिनों सवाईमाधोपुर के ध्रुव दरवाजे पर किया जा रहा है? पर्यटक तो विरासत को उसके मूल रूप में देखना चाहता है जिसे पूरी तरह से संजोया गया हो न कि नया बना दिया गया हो। विरासत खंडहर भी हो तो भी बोलती है। बस, उसे उसके इतिहास के साथ जब सामने लाया जाता है तो वह इटली के प्राचीन शहर पोम्पेई और ग्रीस के प्राचीन ओलम्पिया जैसे बड़े आकर्षण बन जाते हैं जहां सिर्फ खंडहर गुजरे दिनों की दास्तान सुनाते हैं। यहां पोम्पेई का खासतौर से जिक्र करना चाहूंगी जो 79 ईस्वी में भयंकर ज्वालामुखी के लावे और राख के नीचे दफन हो गया था। रोमन सभ्यता के उस संपन्न नगर के वैभव और अवशेषों को पुरातत्व विशेषज्ञ सालों खुदाई कर दुनिया के सामने लाए। हाल ही मैंने उस पर बनी पुरानी फीचर फिल्म भी देखी, और वहां खुदाई में निकले खूबसूरत फर्श को भी देखा। इन सभी जगहों पर कोई रंग-रोगन नहीं हुआ है। सिर्फ बहुत करीने से बिना छेड़छाड़ के खंडहरों को उनके इतिहास के साथ इस तरह से सामने लाया गया है कि दुनिया भर से पर्यटक वहां पहुंचते हैं और घंटों बिताते हैं। यही नहीं, कंबोडिया के अंकोरवाट को ही लें जहां के खंडहर अपनी भव्यता को जीते हैं, जहां का गाइड तक यह कहता है कि विश्व विरासत का दर्जा मिलने के बाद तो वहां का पत्थर भी इधर से उधर नहीं किया जाता जब तक कि विशेषज्ञ उसकी जरूरत न समझें। अंकोरवाट में विरासत संजोने के काम में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण सहयोग कर रहा है पर वहां कोई यह नहीं सुझाता कि सब दीवारों को रंग डालो। यही नहीं, जैसलमेर के वीरान कुलधरा गांव में जब पहली बार खंडहरों के बीच मैंने कार्यक्रम की परिकल्पना की और उसे प्रस्तुत किया तो ऐसा लगा कि उन खंडहरों ने माहौल में एक नया रंग भर दिया जो कि दर्शकों को सराबोर कर गया था। अब वहां न जाने क्या सोच कर एक गेट बना दिया गया जिसने एक तरह से खंडहरों की आत्मा को छीन लिया है।
बस कुछ नया करने के जोश में ब्रांडिंग के नाम पर कैसे लोग उस विरासत के साथ छेड़छाड़ कर जाते हैं यह सोच कर दुख होता है। ब्रांडिंग एक अनूठी पहचान बनाने का नाम है न कि अपनी पहचान खोने का।

Published on:
27 Jul 2023 05:53 pm
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