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बारिश का पानी वरदान, इसे अभिशाप न बनाएं

देश में निर्धारित समय से पूर्व आए मानसून ने देश के विभिन्न शहरों में बारिश से निपटने के लिए किए गए बंदोबस्त की पोल खोल कर रख दी है। चिंताजनक बात यह है कि जलवायु परिवर्तन के चलते सभी मौसम अपना विकराल रूप दिखाने लगे हैं। यही वजह है कि शुरुआत में ही बारिश ने […]

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देश में निर्धारित समय से पूर्व आए मानसून ने देश के विभिन्न शहरों में बारिश से निपटने के लिए किए गए बंदोबस्त की पोल खोल कर रख दी है। चिंताजनक बात यह है कि जलवायु परिवर्तन के चलते सभी मौसम अपना विकराल रूप दिखाने लगे हैं। यही वजह है कि शुरुआत में ही बारिश ने रेकॉर्ड तोडऩे शुरू कर दिए हैं। मौसम विभाग ने इस बार पहले ही औसत से अधिक बारिश का अनुमान लगाया था। महाराष्ट्र ही नहीं केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक और पूर्वोत्तर राज्यों में बारिश का जो रूप नजर आ रहा है, उससे मौसम विभाग की भविष्यवाणी सही साबित हो रही है। लेकिन सरकारें और नगर निकाय बारिश को संभालने की अपनी तैयारी में फिर फिसड्डी साबित हो रहे हैं। देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में पहली ही बारिश में जिस तरह के हालात नजर आए, उससे साफ है कि मुंबई महानगर पालिका ने पिछले वर्षों से कोई सबक नहीं सीखा। यही वजह है कि सड़कें दरिया बन गईं। ट्रेनों की आवाजाही भी प्रभावित हुई, हाईवे पानी में डूब गए।

मुंबई और महाराष्ट्र के दूसरे शहरों ही नहीं, कर्नाटक, तमिलनाडु और केरल में भी बारिश के पानी ने तबाही मचाई है। ज्यों-ज्यों मानसून दूसरे राज्यों में फैल रहा है, त्यों-त्यों इसी तरह के हालात की आशंका बनी हुई है, क्योंकि एक तो बारिश की तीव्रता ज्यादा है, दूसरा बारिश के पानी की निकासी की व्यवस्था की घोर उपेक्षा की गई है। बारिश के दौरान मुंबई, चेन्नई, बेंगलूरू और दिल्ली जैसे शहरों में रहने वाले लोग भी पानी के बंधक बन कर रह जाते हैं। राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों के प्रमुख शहरों में भी ऐसे ही हालात बन जाते हैं। देश में शहरों के विस्तार और आधुनिकीकरण पर तो जोर दिया जा रहा है, लेकिन बुनियादी ढांचे के निर्माण-विकास पर खास ध्यान नहीं दिया जा रहा। अपर्याप्त और पुराने ड्रेनेज सिस्टम की वजह से ठीक तरह से पानी की निकासी नहीं हो पाती। नदी-नालों में अतिक्रमण और प्रदूषण के चलते पानी पूरे वेग से आगे नहीं बढ़ पाता। यह पानी आबादी क्षेत्र और सड़कों पर इकट्ठा होकर तबाही का कारण बन जाता है।

बारिश के पानी को संभालने में सरकारों और नगर निकायों की विफलता का दोहरा नुकसान हो रहा है। यह पानी जान-माल का नुकसान तो करता ही है, इसका सही उपयोग भी नहीं हो पाता। इससे जल संकट बना रहता है और लोगों को पेयजल के लिए भी मशक्कत करनी पड़ती है। बुनियादी ढांचे की उपेक्षा करके स्थाई विकास का लक्ष्य नहीं पाया जा सकता। यह तो रेत पर महल खड़े करने की तरह ही है, जो एक झटके में धराशायी हो जाते हैं। ऐसे विकास कोई मतलब नहीं है। जनता को सरकारों और स्थानीय निकायों पर दबाव बनाना होगा, ताकि वे बुनियादी ढांचे की उपेक्षा न करें। वरदान के रूप में प्रकृति हमें बारिश के जरिए भरपूर पानी दे रही है। उसे संभालने की बजाय उसे अभिशाप में तब्दील करना तो विवेकसम्मत नहीं है। विकास की दौड़ में विवेक का ध्यान रखना अनिवार्य है।