कर्नाटक राज्य में स्थानीय होने का तात्पर्य उस व्यक्ति से है जिसका जन्म कर्नाटक राज्य में हुआ है और वह उस राज्य का 15 वर्षों से निवासी है तथा उसने स्थानीय भाषा कन्नड़ (एक विषय के रूप में) में कक्षा 10 उत्तीर्ण की है या उसने कन्नड़ भाषा से संबंधित कोई योग्यता अर्जित कर रखी है। हरियाणा और आंधप्रदेश राज्य में इस प्रकार के विधेयक क्रमश: वर्ष 2020 एवं 2019 में पारित हुए थे। इन दो राज्यों में स्थानीय लोगों के लिए निजी क्षेत्र में 75 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान रखा गया था एवं राज्य का निवासी होना ही एक मात्र मानदंड था। इन राज्यों में स्थानीय भाषा में प्रवीणता होना आवश्यक नहीं था।
जहां एक ओर हरियाणा के इस विधेयक को पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने निरस्त कर दिया था वहीं दूसरी ओर आंधप्रदेश का प्रकरण वहां के उच्च न्यायालय में विचाराधीन है। झारखण्ड राज्य में भी विधेयक अभी तक लागू नहीं हो पाया हैं। वहां तृतीय एवं चतुर्थ क्षेणी के राजकीय सेवा के पदों की नियुक्तियों में शत-प्रतिशत स्थानीय लोगों के लिए आरक्षण का प्रावधान करने की अनुशंसा की गई है।
यह उल्लेखनीय है कि ये विधेयक कई प्रकार से भारतीय संविधान की मूल भावना के विपरीत होते हैं। भारतीय संविधान के अनुच्छेद-16(1) के अनुसार राज्याधीन नौकरियों अथवा पदों पर नियुक्ति के संबंध में सभी नागरिकों के लिए समान अवसर की अनुशंसा की गई है। साथ ही अनुच्छेद-16(2) के अनुसार मात्र धर्म, मूल वंश, जाति, लिंग, जन्म-स्थान, निवास, उद्भव अथवा इनमें से किसी के आधार पर किसी नागरिक के लिए राज्याधीन किसी नौकरी या पद के विषय में अपात्रता न होगी और न ही विभेद किया जाएगा। यद्यपि अनुच्छेद-16(3) निवास-स्थान के आधार पर नियोजन या नियुक्ति हेतु आरक्षण का प्रावधान करता है किन्तु इस आरक्षण का प्रावधान मात्र सरकारी क्षेत्र की नियुक्तियों पर ही लागू होता है एवं इस हेतु आवश्यक कानून बनाने का अधिकार मात्र संसद को है। राज्य की विधानसभाएं इस कानून को बनाने के लिए सक्षम नहीं हैं। चूंकि यह कानून कर्नाटक, आंधप्रदेश व हरियाणा राज्यों की सरकारों ने अपने स्तर पर ही और वह भी निजी क्षेत्र की नियुक्तियों के लिए किया था, अत: संवैधानिक दृष्टि से इनका टिक पाना कठिन प्रतीत होता है।
पहले भी वर्ष 2002 में इसी प्रकार का राजस्थान राज्य में क्षेत्र विशेष में निवास करने वाले लोगों को शिक्षा के क्षेत्र में नियोजित करने वाला कानून न्यायालय द्वारा अमान्य करार दिया गया था। यहां यह रेखांकित करना उचित होगा कि निजी क्षेत्रों को बाध्य करने वाले इस प्रकार के विधेयक एवं अनुशंसाएं भारतीय संविधान के अनुच्छेद-19(1)(जी) का भी उल्लंघन करते हैं जिसके अनुसार राष्ट्र के नागरिक कोई भी पेशा, व्यवसाय, व्यापार या कारोबार करने को स्वंतत्र हैं। इस प्रकार के विधेयक भारतीय संविधान के अनुच्छेद-19(1)(डी) एवं अनुच्छेद-19(1)(ई) के भी प्रतिकूल हैं जो प्रत्येक नागरिक को भारत के किसी भी क्षेत्र में स्वंतत्रापूर्वक विचरण, निवास और बसने को अधिकृत करता है। चूंकि कर्नाटक में राज्य सरकार की ओर से प्रस्तावित किया गया विधेयक वहां के स्थानीय निवासियों एवं बाहर से आए व्यक्तियों में तथा स्थानीय भाषा कन्नड़ में प्रवीणता रखने वाले व्यक्तियों में भेद करता है, अत: यह विधेयक संविधान के अनुच्छेद-14 का भी उल्लंघन है जिसके तहत राज्य भारत के राज्यक्षेत्र में किसी व्यक्ति को कानून के समक्ष समानता से या समान संरक्षण से वचिंत नहीं कर सकता है।
नेशनल एसोसिएशन ऑफ सॉफ्टवेयर एंड सर्विस कंपनी (नैसकॉम) ने इस दिशा में कर्नाटक सरकार को चेताया है कि इस प्रकार के कदम निजी क्षेत्रों को हतोत्साहित करते हैं एवं इससे व्यापारिक गतिविधियों के अन्य राज्यों में पलायन करने की सभांवनाएं रहती हैं।
अत: श्रेयस्कर होगा कि राज्य सरकारों को दूरदृष्टि रखते हुए उप-राष्ट्रवाद एवं लोकलुभावनवाद की भावना को त्याग कर निजी क्षेत्र में स्थानीय निवासियों की नौकरी के लिए बलपूर्वक आरक्षण के प्रावधान करने की बजाय उन्हें उचित कौशल एवं शिक्षा के प्रचुर अवसर उपलब्ध कराने चाहिए और उन्हें सशक्त बनाना चाहिए। केंद्र सरकार के हाल ही के बजट में इसके लिए कई प्रावधान भी किए गए हैं जैसे कि 1000 औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान विकसित करना, शीर्ष 500 औद्योगिक प्रतिष्ठानों में प्रशिक्षण के लिए युवाओं को स्टाइपेंड उपलब्ध करवाना आदि। राज्य सरकारें यदि ऐसी योजनाओं को अपने राज्यों में सफलतापूर्वक क्रियान्वित करें तो स्थानीय एवं बाहरी कार्यबल के मध्य भेद मिटाकर नागरिकों में राष्ट्रवाद की भावना को प्रबल कर सकती हैं।