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केसरिया चश्मा

इस चक्कर में अकादमियों में भी पद नहीं भरे जा रहे। कौन जाने यहां भी ऐसा ही हुड़दंग हो जाए। अब सारे अच्छे लोग कहां से लाएं।

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Moti ram

Jul 16, 2015

बेचारा! बड़ी परेशानी में है। क्या करे क्या न करे। त्रिशंकु सरीखी हालत हो गई है। त्रिशंकु को तो आप जानते ही हैं जिसे महर्षि विश्वामित्र ने सशरीर स्वर्ग भेजने की ठानी थी। लेकिन देवता भी कम नहीं थे, धक्का दे दिया।

नीचे गिरने लगा तो ऋ षि ने अपने रास्ते में ही रोक दिया। तब से उल्टा लटका पड़ा है। युधिष्ठिर को सरकार ने एफटीआईआई का चेयरमैन क्या बना दिया लड़कों ने हड़ताल कर दी। कहने लगे युधिष्ठिर नहीं चलेगा। उसे कुछ आता ही नहीं। युधिष्ठिर बोला- क्यों नहीं आता। डेढ़ सौ फिल्मों में काम किया है। लड़के बोले- सारी की सारी 'सीÓ ग्रेड थीं।

युधिष्ठिर ने तर्क दिया- 'एÓ ग्रेड फिल्मों में कामुक दृश्य नहीं होते? बड़े करें सो लीला, छोटे करें तो हों बदनाम। यह नहीं चलेगा। मुझे सरकार ने बनाया है तो अब इसे मैं ही चलाऊंगा। लड़कों ने कहा- हमें तुम्हारे नाम से प्रेरणा नहीं मिलती। बताइए युधिष्ठिर करे तो करे क्या। युधिष्ठिर ने तर्क दिया- सौ फिल्मों के बराबर मेरी एक 'महाभारतÓ है।

लड़कों ने कहा- महाभारत पुरानी चीज है। हमें कुछ नया चाहिए। युधिष्ठिर के पक्ष में 'भीष्मÓ आ गए। कहने लगे- अरे युधिष्ठिर को कुछ करने तो दो। आजमाओ तो सही। क्या पता कुछ अच्छा कर दे। बगैर किए किसी का मूल्यांकन कैसे कर सकते हो? 'भीष्मÓ ने आगे कहा- अरे पढ़ने से कोई फिल्म नहीं बना सकता। फिल्म बनाने के लिए फील्ड का एक्सपीरियंस चाहिए।

अगर पढ़-पढ़ कर ही फिल्में बनने लग जाती तो पूना के सारे छात्र सत्यजीत रे होते। सरकार को लग रहा है कि युधिष्ठिर को चार्ज देकर फंस गए सो मंत्रीजी बोले- देखो भई दस नियुक्तियों में एक गलत भी हो जाती है लेकिन हमने एक बार बना दिया तो बना दिया। आज युधिष्ठिर को हटा दिया तो कल को कहोगे धृतराष्ट्र भी हटाओ। दुर्योधन को भी अलग करो। गलत मिसाल पड़ जाएगी।

हम नहीं चाहते कि बिल्ली रास्ता देख ले। आज तुम एक संस्था के चेयरमैन को हटाने की बात कर रहे हो कल राज्यों के हाकिमों को हटाने पर उतारू हो जाओगे। कमाल का 'युद्धÓ चल रहा है। इधर युधिष्ठिर हैरान है। भीष्म ने सोचा कि युधिष्ठिर के बाद अब हमारा नम्बर है। पर यहां तो युधिष्ठिर के मामले में ही बात अटक गई यानी सिर मुंडाते ही ओले पड़ गए।

इस चक्कर में सूबे की अकादमियों में भी पद नहीं भरे जा रहे। कौन जाने यहां भी ऐसा ही हुड़दंग हो जाए। अब सारे अच्छे लोग कहां से लाएं। यहां तो सबकी आंखों पर केसरिया चश्मा चढ़ा है। सोचा तो अकबर को 'इतिहासÓ से विदा कर देंगे। नेहरू को खानदानी बिजातीय सिद्ध कर देंगे।

गांधी को राष्ट्र विभाजन के लिए जिम्मेदार ठहरा देंगे लेकिन यहां तो युधिष्ठिर ने ही गले में फांस अटका दी। देखते हैं आगे क्या होगा। वैसे भी यह देश राम भरोसे ही था और अब भी है। भांड गाते रहेंगे, पाहुणे जीमते रहेंगे। बेचारा युधिष्ठिर सोच रहा है काश ऐसी-वैसी फिल्में न की होती तो ठीक रहता।

- राही