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सर्वे भवंतु सुखिन: को साकार करने वाले शासक

महाराजा अग्रसेन ने सुखी समाज की स्थापना की। महाराजा अग्रसेन ने एक नई व्यवस्था को जन्म दिया और वैदिक सनातन आर्य संस्कृति की मान्यताओं को और विस्तार दिया तथा सर्वे भवन्तु सुखिन: को साकार किया। राज्य के विकास के लिए व्यापार, कृषि एवं उद्योग को बल दिया तथा आर्थिक समाजवाद को मूल मंत्र बनाया।

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Patrika Desk

Sep 26, 2022

सर्वे भवंतु सुखिन: को साकार करने वाले शासक

सर्वे भवंतु सुखिन: को साकार करने वाले शासक


विजय गर्ग
अखिल भारतीय अग्रवाल संगठन के राष्ट्रीय महामंत्री व आर्थिक मामलों के जानकार

कर्मयोगी एवं कुशल शासकों की कीर्ति किसी एक कालखण्ड तक सीमित नहीं रहती है। अपने लोकहितकारी कालजयी चिंतन के कारण ऐसे शासक युग युगान्तर तक समाज का मार्गदर्शन करते हैं। उनकी कीर्ति समय के साथ और अधिक विस्तार पाती जाती है। ऐसे ही कालजयी चिंतन वाले शासक थे महाराजा अग्रसेन। उन्होंने शासक का प्रथम कत्र्तव्य समाज के हित और मानवता को माना। अग्रोदय गणराज्य के महाराजा अग्रसेन एक युग पुरुष महादानी और समाजवाद के प्रथम प्रवर्तक थे। समाजवाद का पहला बीज अग्रशिरोमणी महाराजा अग्रसेन ने ही बोया था। समाजवाद की अवधारणा ने लोगों में एकता एवं सहयोग की भावना को विकसित किया, जिसने न सिर्फ राज्य का विकास किया, बल्कि सभी लोगों के जीवन स्तर में भी इससे सुधार हुआ। समाजवाद के अग्रदूत महाराजा अग्रसेन ने सच्चे समाजवाद की स्थापना के लिए एक नियम बनाया- 'एक रुपया- एक ईंटÓ, जिसके अनुसार उनके नगर में बाहर से आकर बसने वाले व्यक्ति की सहायता के लिए नगर का प्रत्येक परिवार एक रुपया एवं एक ईंट देगा। इससे वह नवागन्तुक परिवार अपने व्यापार एवं घर का प्रबन्ध कर सकेगा। इस प्रकार एक रुपया एक ईंट का सिद्धांत नव एवं कमजोर परिवारों को आर्थिक एवं सामाजिक सुरक्षा प्रदान करता था। यही वजह थी कि राज्य में खुशहाली थी।
इस तरह महाराजा अग्रसेन ने सुखी समाज की स्थापना की। महाराजा अग्रसेन ने एक नई व्यवस्था को जन्म दिया और वैदिक सनातन आर्य संस्कृति की मान्यताओं को और विस्तार दिया तथा सर्वे भवन्तु सुखिन: को साकार किया। राज्य के विकास के लिए व्यापार, कृषि एवं उद्योग को बल दिया तथा आर्थिक समाजवाद को मूल मंत्र बनाया।
महाराजा अग्रसेन संतुलित एवं समाजवादी व्यवस्था के निर्माता, कर्मयोगी और लोकनायक थे। वे गणतंत्र के संस्थापक और समाजवाद के प्रणेता एवं अहिंसा के सच्चे पुजारी थे। वे अत्यन्त दूरदर्शी, प्रजा वत्सल एवं सच्चे समाजसेवी थे। उन्होनें अपनी प्रजा में ऊंच-नीच के भेद को मिटाकर समानता का सूत्रपात किया और सबको समान अधिकार दिए। महाराजा अग्रसेन के शासनकाल में राम राज्य जैसी सुख-समृद्धि थी। ना सिर्फ मनुष्य, बल्कि मूक पशुओं के प्रति भी उनमें दया का भाव सहज था। यही कारण रहा कि उन्होंने अपने राज्य में पशुबलि पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया। उनकी दण्ड नीति एवं न्याय नीति आज भी आदर्श है। उन्होंने नैतिक बल एवं धर्मनीति को ही सर्वोच्च माना। नए युग के निर्माण में इस महामानव ने धर्म को जीवन की सर्वोच्च प्राथमिकता दी। उनके आदर्श जीवन ने न सिर्फ वैश्य समाज को, बल्कि सम्पूर्ण मानव समाज को महानता और सेवा का मार्ग दिखाया है। समाजवाद के इस सच्चे दूत की ख्याति युग-युगान्तर तक बनी रहेगी।