
save water campaign
- अर्चना डालमिया, टिप्पणीकार
हाल ही जारी की गई एक रिपोर्ट के अनुसार नीति आयोग ने आशंका जताई है कि दिल्ली, बेंगलूरु और हैदराबाद सहित देश के 21 शहरों में वर्ष 2020 तक भूमिगत जल खत्म हो जाएगा। दूसरी ओर हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वच्छ भारत अभियान का लक्ष्य 120 लाख शौचालयों का निर्माण कर भारत को 2 अक्टूबर 2019 तक खुले में शौचमुक्त बनाना है। अव्वल तो यह लक्ष्य निर्धारित समय सीमा में पूरा हो पाएगा इसमें ही संदेह है। दूसरा, देश में पानी की कमी को देखते हुए इनमें से कई शौचालय साफ ही नहीं हो पाएंगे।
पानी के बिना इन शौचालयों की साफ-सफाई नहीं होगी। ये अनुपयोगी रह जाएंगे और जनता एक बार फिर खुले में शौच के लिए जाने को मजबूर होगी। देखा जाए तो हमें वर्षा जल व बाढ़ के पानी की संग्रहण इकाइयों की भी आवश्यकता है, जिनके पानी का इस्तेमाल शौचालय की सफाई के लिए किया जा सके। देश के उन इलाकों में शुष्क शौचालयों के निर्माण की व्यवस्था की जा सकती है, जहां पानी की कमी है। बारिश का पानी तो आसानी से हर एक कार्य के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। बस इसके लिए संग्रहण इकाइयों की आवश्यकता है। एक बात तो तय है कि पिछले सालों में वर्षा जल संरक्षण के प्रयासों को वांछित सफलता मिली ही नहीं।
पहली समस्या तो इसकी आपूर्ति की ही है। देश के अधिकांश इलाकों में इतना भी वर्षा जल नहीं आया कि भूमिगत जल स्तर बना रहे। दूसरा, जो पानी उपलब्ध है वह पानी साफ नहीं है। सर्वविदित है कि दूषित पानी ज्यादातर जलजनित बीमारियों का कारण बनता है। जनता के पैसे से बनाई गई एटीएम जैसी मशीनें जिनमें तीन रुपए में एक बोतल आरओ पानी भरा जा सकता है, वे अधिकतर खराब ही रहती हैं। इन मशीनों को लगाने पर इतना पैसा खर्च करने के बाद भी हालात चिंताजनक है।
ज्यादातर सूखा व अकाल की परिस्थितियां मानव निर्मित ही हैं। बड़े पैमाने पर वनों की कटाई, जल संसाधनों के साथ छेड़छाड़, शहरी प्रदूषण और कमजोर आधारभूत ढांचा देश भर में पानी की कमी के लिए जिम्मेदार है। जहां बड़ी कंपनियां सीधे हिमालय से बर्फ पिघलाकर साफ-सुथरा पानी लाने का दावा कर रही हैं, वहीं लोगों को पीने के लिए साफ पानी उपलब्ध नहीं है। जल संकट से निपटने के लिए सबसे बड़ी जरूरत चौपट होती जा रही हरियाली को बचाने की है। इसके लिए हमें सघन वनीकरण पर काम करना होगा।

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