नई दिल्लीPublished: May 11, 2021 07:29:25 am
विकास गुप्ता
भारत में कोरोना टीकाकरण की शुरुआत 16 जनवरी से हुई, 15-16 मार्च से कोरोना के मरीजों की संख्या बढऩे लगी और उसके साथ ही टीकाकरण की मांग भी। ऐसा प्रतीत होता है कि कोरोना टीकाकरण में बढ़ोतरी सरकारी या गैर सरकारी जागरूकता अभियानों से ज्यादा भय की वजह से हुई।
डॉ. नीतू पुरोहित
कोरोना के टीकाकरण केंद्रों पर लम्बी कतार इस बात की पुष्टि करती है कि जागरूकता से कहीं अधिक सक्षम भय है। वह भय जो कि अनुभव किया गया हो, अपने निकट परिवेश में देखा या सुना गया हो। आज हम सब कोरोना का भयानक चेहरा देख रहे हैं, जो स्वास्थ्य प्रणाली की असमर्थता के चलते और भी वीभत्स हो गया है। पिछले साल इन्हीं महीनों में हमें कोरोना के इलाज के बारे में खास जानकारी नहीं थी। इस बार इलाज की कुछ जानकारी तो है, किन्तु इतने अधिक मरीज हैं कि उन सबके लिए दवाई, इंजेक्शन और ऑक्सीजन की आपूर्ति नहीं हो पा रही है। इससे लोगों में एक भय व्याप्त हो गया है और टीकाकरण को आशा से देखा जा रहा है। जैसे-जैसे कोरोना के मरीज बढ़े हैं, उसी के अनुरूप टीकाकरण की मांग भी बढ़ी है। भारत में कोरोना टीकाकरण की शुरुआत 16 जनवरी से हुई, 15-16 मार्च से कोरोना के मरीजों की संख्या बढऩे लगी और उसके साथ ही टीकाकरण की मांग भी। ऐसा प्रतीत होता है कि कोरोना टीकाकरण में बढ़ोतरी सरकारी या गैर सरकारी जागरूकता अभियानों से ज्यादा भय की वजह से हुई।