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सामाजिक एकता और एकेश्वरवाद हैं गुरु ग्रंथ साहिब के मूलभूत सिद्धांत

श्री गुरु ग्रंथ साहिब के प्रकाश पर्व पर विशेष: एकमात्र ऐसा धर्म ग्रंथ, जिसकी वाणी विभिन्न शास्त्रीय रागों में रची गई

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जयपुर

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Nitin Kumar

Sep 04, 2024

Guru Nanak Jayanti 2023: सजे दीवान, देश-परदेश से आए रागी जत्थे कर रहे शबद गायन, 4200 किलो खाद्य सामग्री से बना लंगर प्रसाद, 350 सेवादार जुटे

Guru Nanak Jayanti 2023: सजे दीवान, देश-परदेश से आए रागी जत्थे कर रहे शबद गायन, 4200 किलो खाद्य सामग्री से बना लंगर प्रसाद, 350 सेवादार जुटे

जसपाल कौर
गुरुवाणी चिंतक और शिक्षक
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गुरु के मुंह से निकली पवित्र वाणी को ही हम गुरु वाणी या गुरबाणी कहते हैं। गुरु वाणी मनुष्य मात्र की सेवा करने की प्रेरणा देती है जो व्यक्ति के अशांत, चंचल, दुखी तथा उदास मन को शीतलता, शांति और एकाग्रता प्रदान करती है, हृदय में ज्ञान का प्रकाश और अज्ञान का विनाश कर आत्मा की अमरता का संदेश देती है। गुरु वाणी में संगत और पंगत का महत्त्व बताया गया है। संगत यानी सर्वजन का गुरुद्वारे में प्रवेश और बैठकर कीर्तन सुनना, गुरु उपदेशों की व्याख्या को आत्मसात करना, पंगत यानी गुरुद्वारे में लंगर वाले स्थान पर ऊंच-नीच, जात-पात, अमीर-गरीब का भेद किए बिना एक ही पंक्ति में बैठकर प्रेम और श्रद्धा भाव से लंगर छकना। गुरु वाणी में साधु जनों की संगत पर विशेष महत्त्व दिया गया है। गुरु वाणी में कहा गया है, ‘जिना सासि गिरासि न विसरै हरि नामां मनि मंतु। धंनु सि सेई नानका पूरनु सोई संतु॥’ अर्थात जो लोग सांस लेते और खाते हुए कभी भी ईश्वर को नहीं भूलते, जिनके मन में परमात्मा का नाम-रूप मंत्र बसा हुआ है, वे ही मनुष्य पूर्ण संत हैं।

गुरु ग्रंथ साहिब संपूर्ण मानव जाति का सर्व साझा ग्रंथ है। इसका संकलन करते समय पांचवें गुरु अर्जुन देव ने धार्मिक एकता और समन्वय के उद्देश्य के लिए अपने पूर्ववर्ती चार सिख गुरुओं नानक देव, अंगद देव, अमरदास और राम दास की अलौकिक वाणी और स्वयं की वाणी के साथ-साथ नौवें गुरु तेग बहादुर और अपने समकालीन हिंदू-मुस्लिम धर्म ग्रंथों, संतों और भक्तों शेख फरीद, जयदेव, कबीर, नामदेव, त्रिलोचन, परमानंद, रामानंद, रविदास, धन्ना आदि की वाणी को भी समान सम्मान और स्थान दिया - ‘सभ महि जोति जोति है सोइ। तिस दै चानणि सभ महि चानणु होइ॥’ अर्थात सारे जीवों में एक ही परमात्मा की ज्योति है। उस ज्योति के प्रकाश से सारे जीवों में प्रकाश (सूझ-बूझ) है। इसके साथ ‘एक पिता एकस के हम बारिक’ (गुरु ग्रंथ साहिब, पृष्ठ 730) का संदेश किसी के प्रति दुर्भावना रखने की गुंजाइश ही नहीं रहने देता।

गुरु वाणी में पूरे संसार को एक विशाल फुलवारी कहा गया है, जिसमें सारे जीव फूल हैं और परमेश्वर इनका माली है। गुरु ग्रंथ साहिब की रचना करते समय गुरु अर्जुन देव ने दो सिद्धांतों को सामने रखा, जिनमें एक था सामाजिक एकता और दूसरा था एकेश्वरवाद। इस बहुभाषी ग्रंथ में अनेक उत्तर भारतीय भाषाओं की वाणी दर्ज है। सबसे प्राचीन वाणी जयदेव की है जबकि नवीनतम वाणी नौवें गुरु तेग बहादुर की है। 1705 में दमदमा साहिब में उनके साहिबजादे गुरु गोविंद सिंह ने गुरु तेग बहादुर के 116 शब्द जोडक़र गुरु ग्रंथ साहिब को पूर्ण किया था।

गुरु ग्रंथ साहिब एकमात्र ऐसा धर्म ग्रंथ है, जिसकी वाणी विभिन्न शास्त्रीय रागों में रची गई है। प्रत्येक पद के साथ पहले राग का नाम और बाद में महला संख्या लिखी हुई है। पहला महला यानी पहले गुरु की वाणी, दूसरा महला यानी दूसरे गुरु की वाणी। प्रत्येक गुरु की वाणी में एक से अधिक रागों का प्रयोग हुआ है। गुरु नानक देव की वाणी 19, गुरु अमरदास की वाणी 17, गुरु रामदास की वाणी 29, गुरु अर्जुन देव की वाणी 30 और गुरु तेग बहादुर की वाणी 15 रागों में गाई गई है। इसी प्रकार भक्त कबीर तथा भक्त नामदेव की वाणी 18 रागों में तथा भक्त रविदास की वाणी 16 रागों में गाई गई है। हर राग के साथ अभिव्यक्ति को भी दर्शाया गया है, जैसे हर्ष व उल्लास के लिए सूही, बिलावल, मल्हार, बसंत आदि रागों का इस्तेमाल किया गया है।

गुरु ग्रंथ साहिब की वाणी के शास्त्रीय संगीत में गायन को कीर्तन कहते हैं। कीर्तन के गायन और श्रवण के साथ-साथ उसमें निहित शिक्षाओं और उपदेशों पर मनन और अमल करने को कहा गया है। श्रवण, मनन और अमल तीनों क्रियाओं से दुखों का विनाश और चित्त में आनंद का वास होता है। कहा भी गया है, ‘गाविए सुनिए मन रखिए भाव, दुख परहर सुख घर ले जाई।’ जो व्यक्ति सच्चे मन से गुरु की शिक्षा को मन में बसा लेता है वह परमात्मा के अमूल्य गुण रूपी रत्न प्राप्त कर लेता है। गुरु अर्जुन देव ने इस पवित्र ग्रंथ के संकलन के बाद हरमंदिर साहिब स्वर्ण मंदिर में इस ग्रंथ का प्रथम प्रकाश किया। दृश्य रूप से सिख धर्म में दस गुरु हैं। सभी दस गुरुओं की अखंड-अलौकिक ज्योति गुरु ग्रंथ साहिब में ही विद्यमान है। यह ज्योति गुरु नानक देव की है जो उनके बाद के गुरुओं में प्रविष्ट और प्रदीप्त होती रही। व्यक्ति गुरु परम्परा 1469 में गुरु नानक देव के प्रकाश से शुरू होकर गुरु गोविंद सिंह तक अनवरत रूप से जारी रही। 1708 में परलोक गमन से पूर्व गुरु गोविंद सिंह ने इस ग्रंथ को शाश्वत स्थायी गुरु की पदवी प्रदान की और व्यक्ति गुरु की पुरानी परंपरा को समाप्त कर सिखों को स्पष्ट आदेश दिया, ‘आज्ञा भई अकाल की, तभी चलायो पंथ। सब सिक्खन को हुकम है गुरु मान्यो ग्रंथ।।’ 1430 पृष्ठ का आध्यात्मिक शबद गुरु संकलन अभूतपूर्व ग्रंथ है जो निरंतर ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की भावना का प्रसार करता आ रहा है और आगे भी करता रहेगा।