
हमारे भारतीय बाजारो से दूसरे देशो का आर्थिक सशक्तिकरण बढ रहा है और हम पिछड रहे है विदेशी कम्पनीयो का जाल पूरे देश मे फैला हुआ है
आर्थिक उदारीकरण के नाम पर पूरा बाजार विदेशी वस्तुओ से भरा पडा है। गांधीजी ने पुर्वानुमान लगाकर दूरदर्शिता अपनाते हुए हम भारतवासियो को ’स्वदेशी अपनाओ का जो मूलमंत्र दिया था कपोल कल्पित नही था। पर हम उसे भूल चुके है। हमने एवं हमारी सरकार ने कभी उस पर अमल किया ही नही. केन्द्र सरकार ने वैश्विक उदारीकरण के नाम पर पूरा भारतीय बाजार विदेशी वस्तुओ के लिए ,खोल दिया हमारी भारतीय अर्थव्यवस्था विश्व की सबसे बडी छटी अर्थव्यस्था है।
हमारे भारतीय बाजारो से दूसरे देशो का आर्थिक सशक्तिकरण बढ रहा है और हम पिछड रहे है विदेशी कम्पनीयो का जाल पूरे देश मे फैला हुआ है आयात कि अधिकता कि वजह से रुपये के मूल्य मे निरन्तर गिरावट आ रही है विदेशी सामान सस्ते होते है परन्तु गुणवत्ता कि दृष्टी से स्तरहीन होते है पर हम भारतवासियो को विदेशी वस्तुओ से अत्यन्त मोह होता है हर भारतवासि विदेशी सामान घर मे लाकर अपने आप को गौरान्वित महसूस करता है लेकिन हमे हमारी मानसिकता बदलनी होगी अगर हम विदेशी वस्तुओ के मोह को छोड कर स्वदेशी अपनाएगे तो हमारे देश का धन एवं हमारे देश की प्रतिभा हमारे देश मे ही रहेगी दुसरी और सरकार को इस और सत्त प्रयास करना होगा , हमारे स्वदेशी सरकार को राजस्व के लालच मे इन पर इतने कर लगा देती है कि जिससे उन वस्तुओ के मूल्य बढ जाते है परिणाम स्वरुप विदेशी स्तरहीन वस्तुओ के आगे हमारे गुणवत्ता पूर्ण महंगे उत्पाद भारतीय बाजार मे टिक नही पाते है , इससे हमारे धरेलु व लघु उद्योग धन्धे चौपट होने कि कगार पर है देश मे बेरोजगारो कि संख्या भी निरन्तर बढ रही है।
सरकार को इन लघु व घरेलु उधोगो को प्रोत्साहन देना होंगा हमारे देश मे प्रतिभाओ कि कमी नही है पर उचित रोजगार के अभाव मे भारत को छोडकर विदेशो मे पलायन कर जाते है विदेश मे उनके काम की कद्र होती है एंव उनको उचित वेतन देकर उनकी प्रतिभा को अपनी कम्पनी मे उपयोग कर कम्पनी को उपर बढाया जाता है , इससे तो क्या यह बेहतर नही कि हमारी प्रतिभा एवं हमारे ही देश मे रहे व हम स्वदेशी अपनाऐ ।
लता अग्रवाल
Published on:
28 Aug 2018 04:32 pm
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