
डॉ. एन.के.सोमानी, अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के भारत दौरे ने इस बात की तस्दीक कर दी है कि भारत-रूस संबंध पूर्व सोवियत संघ-भारत संबंधों की छाया में आगे बढ़ रहे हैं। अत्यंत व्यस्त दौरे के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति पुतिन के बीच गर्मजोशी दिखी। इसने उन आशंकाओं पर भी विराम लगा दिया है, जिनके चलते वैश्विक ऊर्जा संकट, भू-राजनीतिक तनाव और बदलते अंतरराष्ट्रीय समीकरणों के बीच भारत-रूस संबंधों को नया आयाम देने की जरूरत महसूस की जा रही थी। हैदराबाद हाउस में प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति पुतिन के बीच द्विपक्षीय बातचीत के बाद संयुक्त बयान में दोनों देशों ने ट्रेड, माइग्रेशन सहयोग, हेल्थकेयर, फूड सेफ्टी और पोलर शिपिंग जैसे क्षेत्रों में अहम समझौते किए हैं।
रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद पुतिन पहली बार भारत के दौरे पर आए। इससे पहले वह 2021 में भारत-रूस वार्षिक शिखर सम्मेलन के लिए भारत आए थे। कहने को तो वह इस बार भी इस फोरम की बैठक में हिस्सा लेने के लिए भारत आए हैं। लेकिन इस बीच दो ऐसी घटनाएं हुई, जिसके आलोक में भारत-रूस संबंधों को रेखांकित किया जा सकता है।
प्रथम, लंबे समय से हाशिए पर पड़े भारत-चीन संबंधों को पटरी पर लाने के लिए रूसी शहर कजान में पीएम नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच उच्चस्तरीय बैठक हुई। गलवान घाटी में चीनी सैनिकों के साथ हिंसक झड़प के बाद यह पहला अवसर था, जब भारत-चीन संबंधों में गर्मजोशी देखी गई। द्वितीय, यूक्रेन पर हमले के बाद पश्चिमी देशों ने रूस को वैश्विक बिरादरी से अलग-थलग करने के लिए भारत पर इस बात का दबाव डाला कि भारत रूस से कच्चे तेल की खरीद बंद कर दे। अमरीका ने भारत पर यूक्रेन युद्ध को वित्तपोषित करने का आरोप भी लगाया।
चीन-भारत-रूस संबंधों का मजबूत त्रिकोण न केवल मास्को के लिए, बल्कि नई दिल्ली के हित में भी है। भारत-रूस संबंधों में तेल का खेल वैश्विक राजनीति में कूटनीतिक पहेली बनकर उभरा है। वर्तमान में भारत अपनी जरूरत का 40 प्रतिशत से अधिक तेल रूस से आयात करता है। जबकि यूक्रेन युद्ध से पहले यह दो प्रतिशत से भी कम था। यह अलग बात है कि इसमें भारत का निर्यात मात्र 5 प्रतिशत के आसपास है। ट्रेड डेफिसिट कम करने व अमरीकी प्रतिबंधों के चलते भारत रूस से तेल आयात में कटौती कर सकता है। मोदी-पुतिन शिखर बैठक के दौरान दोनों देशों ने द्विपक्षीय व्यापार को विस्तार देने के लिए इंटरनेशनल नॉर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर को विस्तार देने व रूस-बेलारूस से हिंद महासागर तक नया लॉजिस्टिक नेटवर्क स्थापित करने पर सहमति दी है। भारत-रूस संबंध समय, राजनीति और वैश्विक दबावों की हर कसौटी पर खरे उतरे है, पर पुतिन के दौरे के बाद जिस तरह से वाशिंगटन की खीज बढ़ती दिख रही है, उसमें नई दिल्ली की बड़ी चिंता अमरीकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के पलटवार को लेकर है।
ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि ट्रंप के दबाव के चलते भारत-रूस संबंधों में शीत युद्ध कालीन ऊष्मा बनाए रखने को पुतिन कितनी प्राथमिकता देते हैं। दूसरा रूस से तेल की खरीद पर धमकी देने वाले ट्रंप भारत पर दबाव बनाने के लिए क्या हथकंडा अपनाते हैं। सच तो यह है कि पुतिन की भारत यात्रा मास्को और वाशिंगटन के साथ संबंधों को संतुलित करने के नई दिल्ली के प्रयासों की परीक्षा लेते दिखेगी।
Published on:
09 Dec 2025 01:23 pm
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