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राम के नाम की महिमा अपरंपार, यह है महामंत्र

श्रीराम ने जीवन की हर परिस्थिति में आत्म-संयम और धैर्य बनाए रखा। उनके जीवन मूल्यों को अगर हम अपने जीवन में आत्मसात करें तो निस्संदेह हम आध्यात्मिकता और सफलता की नई ऊंचाइयां प्राप्त कर सकते हैं।

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जयपुर

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VIKAS MATHUR

Apr 05, 2025

अद्भुत रूप, सौंदर्य, पराक्रमी, ज्ञान, आदर्श और संस्कार के प्रतिमान हैं मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम। जहां राम हैं, वहां पर सत्य है, धर्म है, मंगल है और विजय है। 'राम राम रामेति रमे रामे मनोरमे। सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने।' शास्त्रों के अनुसार राम का नाम भगवान विष्णु के हजार नामों के बराबर महान है, यह महिमा है प्रभु श्री राम के नाम की। 'राम भरोसो राम बल, राम नाम बिस्वास। सुमिरत सुभ मंगल कुसल, मांगत तुलसीदास ॥' तुलसीदास जी यही कामना करते हैं कि उनका राम के नाम पर ही भरोसा रहे, राम के बल की ही प्राप्ति हो क्योंकि राम नाम के स्मरण मात्र से ही समस्त मंगल, शुभ और कुशल की प्राप्ति होती है।

कल रामनवमी है, प्रभु श्रीराम का आविर्भाव दिवस। रामनवमी का त्योहार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाया जाता है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस के बालकाण्ड में श्रीराम जन्म का बहुत ही सुन्दर वर्णन किया है- भये प्रगट कृपाला दीनदयाला कौसल्या हितकारी। हरषित महतारी मुनि मन हारी अद्भुत रूप बिचारी॥ राम के नाम की महिमा अनंत है, उनका नाम स्वयं में एक महामंत्र है और उनके नाम जाप से ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति स्वत: ही हो जाती है। राम के नाम में अलौकिक शक्ति है, जो जीवन की सारी नकारात्मकता और दुखों का अंत कर देती है। राम का जीवन एक आदर्श है, उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम कहा जाता है, उन्होंने कभी अपने जीवन में मर्यादाओं का उल्लंघन नहीं किया। राम तो स्वयं भगवान थे। फिर भी सदैव उन्होंने अपने माता-पिता और गुरु की आज्ञा का पालन किया। जो भी आज्ञा उन्हें मिली, उसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार किया और कभी भी कोई सवाल नहीं किया। जब बात आई चौदह वर्ष के वनवास की, तो वे भी सियावर राम ने मुस्कुराकर अपनी माता की आज्ञा मानकर स्वीकार किया, यह उनकी महानता का ही सूचक है।

प्रभु श्रीराम ने मर्यादा का पालन करते हुए एक आदर्श जीवन जीया, उनके जीवन से प्रेरणा लेकर हम भी अपने जीवन को सार्थक बना सकते हैं। सर्वज्ञाता और सर्वव्यापी ईश्वर होते हुए भी उन्होंने अपने जीवन में अनेक कठिनाइयों का सामना किया, वे तो ईश्वर हैं पर जब मानव रूप लेकर वे इस धरा पर आए तो उन्होंने जीवन की उन सारी जटिलताओं का सामना किया जो एक आम मनुष्य अपने जीवन में करता है। श्रीराम परम योद्धा थे, रावण का वध करके उन्होंने त्रेता युग में धर्म की स्थापना की और यह दिखाया कि सदैव अधर्म पर धर्म की ही विजय होती है। प्रभु श्रीराम के जीवन से प्रेरणा लेकर हम भी अपने जीवन के जो रावण हैं जैसे काम, क्रोध, लोभ, मोह का वध कर सकते हैं। ये ऐसे दानव हैं, जो हमारे जीवन की प्रगति का रास्ता रोकते हैं, अगर हम अपने जीवन में आध्यात्मिक उन्नति करना चाहते हैं तो हमें सबसे पहले इन्हीं दानवों से युद्ध करना होगा और विजय प्राप्त करनी होगी।

राम के जीवन से हम एक और प्रेरणा ले सकते हैं, जो हमें निश्चित तौर पर सफलता देगी और आध्यात्मिक उन्नति की ओर ले जाएगी और वह है वचनबद्धता, 'रघुकुल रीत सदा चली आई, प्राण जाए पर वचन न जाई', उन्होंने अपने पिता के दिए हुए वचन के लिए राजपाट त्याग दिया और वनवास पर चले गए। राम एक आदर्श भाई और पति थे। जब भरत ने उनका राजपाट संभाला तो उन्होंने कभी उनसे कोई द्वेष नहीं रखा बल्कि हमेशा उन्हें आगे बढऩे की प्रेरणा देते रहे। कितनी भी कठिन परिस्थिति क्यों न रही हो, राम ने सदैव अपने जीवन में सत्य का साथ दिया। उन्होंने दूसरों के प्रति सम्मानजनक व्यवहार किया। श्रीराम ने अपने कत्र्तव्यों का पालन करते हुए अपनी प्रजा के साथ न्याय किया, तभी तो आज भी राम राज्य की ही कामना की जाती है। उन्होंने हर परिस्थिति में आत्म-संयम और धैर्य बनाए रखा। उनके जीवन मूल्यों को अगर हम अपने जीवन में आत्मसात करें तो निस्संदेह हम आध्यात्मिकता और सफलता की नई ऊंचाइयां प्राप्त कर सकते हैं।

— अमितासना दास, अध्यक्ष, गुप्त वृंदावन धाम, हरे कृष्णा मूवमेंट, जयपुर