
लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला
लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने पिछले दिनों नई दिल्ली में पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी के लिखे ग्रंथ 'गीता विज्ञान उपनिषद' के विमोचन समारोह की अध्यक्षता की। इस अवसर पर बिरला ने भगवान कृष्ण के गीता में दिए गए उपदेशों और निष्काम कर्म योग के महत्त्व की चर्चा की। उनके उद्बोधन के प्रमुख अंश:
जीवन में जब भी कुछ क्षण फुर्सत के मिलें तो हमें गीता जरूर पढ़नी चाहिए। पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी का लिखा ग्रंथ 'गीता विज्ञान उपनिषद' हमारी पुरातन संस्कृति व उत्कृष्ट धर्म की झलक तो है ही, व्यक्ति को जीने की राह बताने वाला ग्रंथ भी है। यह कृति जीवन मूल्यों की स्थापना को नई दिशा देती है। वेद विज्ञान को सरल भाषा में सामने लाने का काम राजस्थान पत्रिका के संस्थापक श्रद्धेय कर्पूर चन्द्र कुलिश ने किया और उस काम को गुलाब जी आगे बढ़ा रहे हैं।
जब हम गीता की बात करते हैं तो श्रीकृष्ण के निष्काम कर्मयोग की बात जरूर होती है। जब हम निष्काम कर्मयोग को पढ़ते हैं तो लगता है कि जब व्यक्ति बिना फल की इच्छा के कर्म करेगा तो न तो कभी व्यथित होगा और न ही जीवन में भटकेगा। हम बिना फल की कामना से कर्म करें, यह हमारा दायित्व भी है और कत्र्तव्य भी। यह काम मुझे करना ही है, चाहे मुझे इसका परिणाम मिले या नहीं मिले। इस मनुष्य जीवन में मुझे बुद्धि-ज्ञान मिला है तो उसका उपयोग करते हुए कर्म कर मैं खुद का भी और समाज का जीवन भी बदल सकता हूं। ऐसा सोचकर कर्म होगा तो शायद फल नहीं मिलने के बाद भी व्यक्ति कभी विचलित नहीं होगा। उसका धैर्य कभी टूटेगा नहीं। लेकिन, कई बार जब निष्काम कर्म की चर्चा करते हैं तो लोग सवाल करते हैं कि जब फल ही नहीं तो कर्म क्यों? इसकी एक लंबी डिबेट है। लेकिन, जब निष्काम कर्म को पढ़ते हैं, तो हमें लगता है कि सही रास्ता तो यही है। सही रास्ते को अपनाना, यह गीता के ज्ञान का ही अनुभव है। इसलिए जो निष्काम कर्म करेगा, निश्चित रूप से उसको सफलता मिलेगी। और, यदि असफलता मिले भी, तो यह सोचें कि यह मेरा कर्म था, इसलिए मैंने किया। फल मिला या नहीं मिला, वो अलग बात है।
गीता हमें सन्मार्ग दिखाती है। इसीलिए व्यक्ति गीता के जरिए जीवन में जितना अपने आप को जानने की कोशिश करेगा उतना ही आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त होगा। वह कभी तनाव व विचलन की ओर नहीं जाएगा। गीता के अलग-अलग दृष्टिकोण को इस ग्रंथ में बताया गया है। इसे पढ़ेंगे तो लगेगा कि प्राणी के अंदर शरीर, मन, बुद्धि और आत्मा, ये चार घटक हैं, जिनसे मिलकरमानव बना है। हमें जब मनुष्य जीवन मिला है तो निश्चित रूप से इसे पढ़कर हमारे जीवन में एक नई चेतना आएगी। नई ऊर्जा का संचार होगा।
गीता को हम जितना पढ़ते हैं, हम सत्य की ओर बढ़ते हैं। हम धर्म की ओर बढ़ते हैं। जब कृष्ण भगवान ने अर्जुन को उपदेश दिया था, उस समय कहा था कि सत्य यही है कि जब कभी आवश्यकता पड़ती है, धर्म के लिए युद्ध करना पड़ता है ताकि अधर्म खत्म हो, असत्य खत्म हो। इसीलिए गीता हमारे जीवन में नैतिकता, सत्य और धर्म की ओर चलने की प्रेरणा देती है। मुझे लगता है कि गीता में इतना तो हम पढ़ें। चाहे भक्ति योग पढ़ें। चाहे ज्ञान योग पढ़ें। चाहे कर्म योग पढ़ें।
भक्ति हो तो कैसी हो? कितना समर्पण हो? भक्ति में जितना समर्पण होता है, उतनी ही व्यक्ति में शक्ति आती है। मनुष्य जीवन को हम अभी तक देखें, तो ज्ञान के कारण ही मनुष्य आज कहां तक पहुंच गया है। दुनिया के अंदर कई देशों ने भौतिक प्रगति तो बहुत कर ली होगी। ज्ञान की प्रगति भी बहुत कर ली। लेकिन इन देशों ने आध्यात्मिक और धर्म की प्रगति नहीं की। यही कारण है कि वहां पर तनाव और अवसाद है। उस तनाव और अवसाद को दूर करने के लिए भारत की धरती पर आते हैं। क्योंकि भारत की धरती में धर्म, संस्कृति व संस्कार हैं। इसलिए दुनिया के लोग यहां आते हैं। हम गर्व से कह सकते हैं कि दुनिया के अंदर भारत ने जहां भौतिक संसाधन, विज्ञान की तरक्की की है, वहीं हमने हमारी संस्कृति-संस्कारों को भी जीवंत रखा है।
यह बात सही है कि हमारी संस्कृति को विदेशी आक्रांताओं ने नष्ट करने की बहुत कोशिश की। हमारे पूर्वजों ने, हमारे साधु-संतों ने, हमारे वेद-विज्ञान- रामायण, गीता, महाभारत, इन सबको लिखने वालों ने समय-समय पर इस धरती पर हमारी संस्कृति को बचा कर रखा। हमारे धर्म को बचा कररखा। इन सबके कारण आज दुनिया के अंदर भारत, धर्म और संस्कृति में धनी है।
धर्म की व्याख्या करना बहुत मुश्किल है। लेकिन इतना समझना होगा कि धर्म किसी भी व्यक्ति को कष्ट पहुंचाने के लिए नहीं होता। हमारे कार्य से, हमारे व्यवहार से किसी को कष्ट नहीं पहुंचे। हर धर्म की यही दिशा है। इसलिए धर्म की जितनी व्याख्या की जाए, कम है। मैं वैज्ञानिक नहीं हूं। मैं विद्वान भी नहीं हूं। लेकिन, मैं कह सकता हूं कि जब संविधान निर्माताओं ने संविधान बनाया तो उन्होंने भी धर्म के आधार पर ही संविधान का निर्माण किया था। जब आप पार्लियामेंट में जाएंगे, तो वहां अंकित एक-एक श्लोक आज भी प्रेरणा देता है। संसद, अंग्रेजों के समय में बनी थी। लेकिन, उनको भी याद था कि अगर जीवन के अंदर कर्म करते हुए सत्य के मार्ग पर चलेंगे, तब ही हम लोगों का कल्याण कर सकते हैं। इन श्लोकों को देख कर आज भी संसद में हमें प्रेरणा मिलती है।
मैं सोचता हूं कि संविधान की रक्षा करना हमारा काम है। समारोह के मुख्य अतिथि माननीय प्रधान न्यायाधीश एनवी रमणा जी संविधान की रक्षा कर रहे हैं। संविधान आज भी हमारा मार्गदर्शक है। आज भी हमें शक्ति देता है। शक्ति से ज्यादा आज हमें कत्र्तव्य और ड्यूटी का बोध भी करवाता है। बोध इस बात का कि आजादी के 75 साल हो गए। हम सबकी ड्यूटी है कि हम अपने देश के लिए कुछ न कुछ जरूर करें। यह सब करने के लिए कहीं न कहीं गीता हमें सन्मार्ग और सही दिशा की ओर ले जाने का काम करती है।
Published on:
19 Aug 2022 05:36 pm
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