
अहिंसा और करुणा का मार्ग बदल सकता है दुनिया
डॉ. विनोद यादव
लेखक और
इतिहासकार
महात्मा बुद्ध ने आध्यात्मिक-ज्ञान का एक नया मार्ग अन्वेषित किया- 'अप्प दीपो भव'। यानी अपना दीपक खुद बनो, अपनी बुद्धि-विवेक और प्रज्ञाशक्ति का इस्तेमाल करके जीवन को सार्थक बनाओ। निस्संदेह इस नए मार्ग में स्वर्ग के प्रलोभन व नर्क के भय की कोई गुंजाइश नहीं थी। इसमें तो सबके लिए आत्मोत्थान की अपार संभावनाएं थीं। और खासतौर से उनकेे लिए जो सदियों से शोषित, वंचित, तिरस्कृत और बहिष्कृत थे। यह अकारण नहीं था कि समाज की मुख्यधारा से अलग-थलग हाशिए पर पड़े हुए समुदायों को बौद्ध धर्म में अपने लिए सकारात्मक संभावनाएं दिख रही थीं, बल्कि उन्हें सम्मानपूर्वक जीवन जीने का अवसर भी दिखाई दे रहा था। बुद्ध अतिवादी भी नहीं थे, उनका व्यक्तित्व बहुत सहज था और उनके उपदेश बेहद सरल एवं व्यवहारिक हैं। बुद्ध का धम्म जाति-पांति, छुआ-छूत, अमीर-गरीब तथा ऊंच-नीच आदि तमाम तरह के बंधनों से मुक्त है, बुद्ध के धम्म में पतित को भी पावन करने की सामथ्र्य है।
अंधविश्वास, आडंबर व रूढि़वादी परंपराओं से बिल्कुल अलग विशुद्ध ज्ञान पर आधारित आध्यात्मिक-क्रांति के यथार्थ दृष्टा हैं बुद्ध। बुद्ध का दर्शन अनुभव, अनुभूति और तर्क पर आधारित है। बुद्ध कहते हैं कि खुशी का संबंध इससे नहीं है कि हमारे पास अथाह धन-संपदा है या नहीं है, बल्कि इसका संबंध हमारे अंतर्मन की स्थिति से है। बुद्ध की करुणा और अहिंसा केवल सैद्धांतिक एवं धर्मग्रंथों तक सीमित नहीं है , बल्कि बेहद पारदर्शी है। इसलिए तो वैशाली की नगरवधू आम्रपाली से लेकर श्रावस्ती के वनों में रहने वाले अंगुलिमाल डाकू तक भी नतमस्तक होकर बुद्ध से अनुरोध करने लगते हैं-बुद्धं शरणं गच्छामि। बहरहाल, बुद्ध का दर्शन कोई चमत्कारी विधा नहीं है। बुद्ध द्वारा प्रतिपादित मानवीयता का सिद्धांत भारतीय संस्कृति के कण-कण में लोक-कल्याण की भावना बनकर गहराई तक समाया हुआ है। इसका जीवंत चित्रण कोरोना महामारी से उपजे संकट के दौरान देखने को मिला। विकट परिस्थिति में बड़ी संख्या में संवेदनशील और दयालु लोग जोखिम उठाकर अपने-अपने तरीकों से अपनी सामथ्र्य के अनुसार पीडि़तों और जरूरतमंदों की मदद कर रहे थे। असलियत में जिनका हृदय करुणा से लबरेज है, वे भला दूसरों को कष्ट में बिलबिलाते कैसे देख सकते हैं।
बुद्ध हठधर्मी नहीं थे, उनका मानना था कि भरपूर तरीके से जीवन जीना एक कला है। बुद्ध अपने प्रिय शिष्य आनंद से कहते हैं कि जीवन वीणा की तरह है। वीणा के तार यदि अत्यधिक कस दिए जाएं, तो वे टूट जाएंगे और यदि उन्हें ढीला छोड़ दिया जाए, तो उनसे मधुर संगीत पैदा नहीं हो सकता। छह वर्ष की कठोर तपस्या के दौरान उन्हें इंद्रिय-दमन की निस्सारता का अहसास हुआ। इसके बाद उन्होंने आमजनों को जीवन में 'मध्यम मार्गÓ पर चलने की बात कही। बुद्ध कहते हैं कि प्रायोगिक बनो, परंपरागत प्रथाओं को अपनाने से पहले विवेकशील बनकर खुद का विश्लेषण करो। कर्मकांड पर आधारित शास्त्रों में बंधा हुआ धर्म सदियों से लोगों के भीतर लोभ-लालच, लालसा और तृष्णा को बढ़ावा दे रहा था। ऐसे समय में बुद्ध के मार्ग ने लोगों को प्रभावित किया।
दुनिया में जो तमाम तरह के दुख-दर्द व्याप्त हैं, उनकी प्रमुख वजह लोगों की तृष्णा ही है। तृष्णा पर लगाम कसने का जो मार्ग है, वही मुक्ति का मार्ग है। भगवान बुद्ध ने इस मार्ग के आठ अंग बताए हैं-सम्यक दृष्टि, सम्यक संकल्प, सम्यक वचन, सम्यक कर्म, सम्यक आजीविका, सम्यक व्यायाम, सम्यक स्मृति और सम्यक समाधि। भगवान बुद्ध का अष्टांगिक मार्ग अध्यात्म को सही में देखने और महसूस करने का मौका देता है। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में हिंसा और आतंकवाद के अलावा रूस-यूक्रेन युद्ध की विभीषिका झेल रहे दुनिया के लोगों के लिए गौतम बुद्ध का बताया 'अष्टांगिक मार्गÓ बेहद प्रासंगिक और सार्थक है। बुद्ध कहते हैं कि अहिंसक और करुणा से भरे होने का मतलब है, स्वयं के साथ-साथ चराचर जगत के प्रत्येक प्राणी के प्रति मंगल-मैत्री का भाव रखना।
Published on:
05 May 2023 08:34 pm
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