
भारतीय संविधान के मूल्य विश्व के लिए भी बेहद उपयोगी
अर्जुनराम मेघवाल
केंद्रीय संस्कृत
और संसदीय कार्य राज्य मंत्री
मानव सभ्यता का एक लंबा इतिहास रहा है। इस दौरान अब तक असंख्य उपलब्धियां दर्ज हुई हैं। एकजुटता की भावना, नैतिक निर्णय लेने की क्षमता, सत्ता समीकरणों की संतुलित स्थिति, क्षेत्रीय और सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण और प्रसार प्राचीन काल से लेकर अब तक चिंतन के महत्त्वपूर्ण क्षेत्र रहे हैं। इंसान ने सामाजिक जीव होने के नाते अपनी व्यक्तिगत स्वतंत्रता को अभिव्यक्त करने के लिए इस दिशा में हमेशा से प्रयास किए हैं। दूसरी ओर विश्व के संविधानों ने आकांक्षाओं, संबंधित लक्ष्यों, वैयक्तिक और सामूहिक सामाजिक प्रगति को सुनिश्चित करने के लिए महत्त्वपूर्ण मार्गदर्शकों की हैसयित से कार्य किया है। भारत लोकतंत्र की जननी है और यहां सांस्कृतिक विरासत की लंबी परंपरा रही है। 26 नवम्बर को मनाया जाने वाला संविधान दिवस अमृत काल में मनाए जाने के कारण विशेष महत्त्व रखता है।
मोदी सरकार ने 2015 में 26 नवंबर को संविधान दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की थी। इस दिवस के माध्यम से हम उन पूर्वजों को पूरी तरह से सम्मान देने का प्रयास कर रहे हैं, जिन्होंने संबंधित मूल्यों को अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए अपने प्राणों की आहुति दी थी। इसके आधार पर संविधान निर्माताओं को भावी पीढ़ी की आकांक्षाओं को पूरा करने में मदद मिली थी। उनकी दूरदर्शिता का ही परिणाम है कि आज कई देशों के संविधान विविध हितों और असंतुलित शक्ति समीकरण के आगे नतमस्तक हो गए हैं। तथापि, भारतीय संविधान समय की कसौटी पर पूरी तरह खरा उतरा है। यह पवित्र, सारगर्भित और जीवंत दस्तावेज भारत के लिए एक महान मार्गदर्शक है। सामाजिक आवश्यकताओं के अनुसार परिवर्तन को अंगीकार करने के लिए इसमें निहित लचीलेपन की विशेषता एक सर्वोत्तम एवं आदर्श संवैधानिक आधार में परिणत हो गई है। संविधान के भीतर यह वाक्यांश कि 'हम भारत के नागरिक' से यह सुस्पष्ट रूप से विदित होता है कि हमारे संविधान में नागरिकों के प्रति एक सतत केन्द्रीयता को प्रस्तावित पारिस्थितिकी के रूप में निर्धारित किया गया है। यह विकसित संस्थानों, शासन व्यवस्था और न्यायपालिका, विधायी व्यवस्था, कार्यपालिका, परिसंघवाद, स्थानीय सरकार और अन्य स्वतंत्र संस्थाओं की परिभाषित भूमिका से मिलता-जुलता है जिसके तहत व्यक्ति की निजता पर सामूहिक रूप से ध्यान केन्द्रित किया गया है। नागरिकों के अधिकारों और कत्र्तव्यों का सम्मिश्रण एक ही सिक्कों के दो पहलू हैं, जिनकी अभिव्यक्ति व्यापक राष्ट्र-निर्माण के लक्ष्य के तहत की गई है। संविधान की प्रारूप समिति के अध्यक्ष डॉ. बी. आर. आंबेडकर ने 25 नवंबर 1949 को समापन बहस के दौरान असमानता के बारे में चेतावनी दी थी, जिसमें सामाजिक और आर्थिक जीवन को भी दृष्टिगत रखा गया।
'सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास' के परिप्रेक्ष्य में सरकार की पहल यह है कि राष्ट्र्र निर्माण संबंधी गतिविधियों में किसी को पीछे न रखा जाए और उसके माध्यम से ऐसी सारगर्भित एवं सुदृढ़ व्यवस्था को सामने रखा जाए, जिनमें संवैधानिक मूल्यों का विशेष समावेश हो। व्यक्तिगत क्षमता को पहचानने के लिए स्वास्थ्य सेवा, आवास, ऊर्जा, शिक्षा, उद्योग, अंतरिक्ष और संस्कृति से लेकर बहुआयामी तरीके से हर क्षेत्र में कल्याणकारी कार्य किए जा रहे हैं। नीति और निष्पादन से जुड़ी कार्य पद्धति लोकतांत्रिक तरीके से समाज की प्रगति का मार्ग प्रशस्त करती है। क्षेत्र-विशिष्ट योजनाओं पर आधारित दृष्टिकोणों का सामंजस्य और क्रियान्वयन जनता के जीवन को सहज बना रहा है। लोगों पर अनुपालन बोझ को कम करना, संतृप्ति स्तर के कार्यान्वयन लक्ष्यों के लिए प्रभावी योजना तैयार करना और परिणामस्वरूप मोदी सरकार के शासन में बेहतरी को प्रदर्शित करना इनका लक्ष्य है। एक बहुसांस्कृतिक समाज होने के नाते, भारत की 'विविधता में एकता' को अपनाने की स्वाभाविक क्षमता और अनोखा सामथ्र्य अंतरराष्ट्रीय मंच पर विविध और परस्पर विरोधी विचारों पर आम सहमति कायम करने में सक्षम है। संवैधानिक मूल्यों के प्रति हमारी प्रतिबद्धता में वैश्विक विमर्श को आकार देने और आने वाली पीढिय़ों के लिए बेहतर एवं संवहनीय भविष्य के लिए लोकतांत्रिक बुनियादी बातों के आधार पर मजबूत संस्थानों का निर्माण करने की क्षमता मौजूद है।
संविधान दिवस हमारे विचारों, दृष्टि और कार्यों में संवैधानिक मूल्यों को समाहित करने और उत्प्रेरक प्रभाव उत्पन्न करने के लिए एक उपयुक्त अवसर है। यह हम पर अमिट प्रभाव छोड़ता है कि संविधान से निकलने वाले प्रभावशाली मूल्य और ज्ञान न केवल भारत के लिए, बल्कि पूरी मानवता के लिए मूल्यवान है। हमें उन मूल्यों की गंभीरता, ग्रंथों के भाव को समझना चाहिए, उन्हें आत्मसात करना चाहिए और उन्हें और अधिक बोधगम्य बनाने की दिशा में निरंतर कार्य करना चाहिए। आइए, उन विस्मृत और यशवंचित वीरों से जुड़ी अतुल्य विरासत को कायम रखने का संकल्प लें।
Updated on:
25 Nov 2022 04:40 pm
Published on:
24 Nov 2022 06:20 pm
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