
आत्म-दर्शन : अध्यात्म और विज्ञान
स्वामी अवधेशानंद गिरी
अध्यात्म यदि प्राण है, तो विज्ञान उसी का शरीर है। ये दोनों इतने अभिन्न हैं कि इन्हें अलग नहीं किया जा सकता। शरीर की समस्त क्रियाविधि का विश्लेषणात्मक अध्ययन विज्ञान का विषय है और प्राण से संबंधित समस्त ज्ञान अध्यात्म का क्षेत्राधिकार है। जिस प्रकार विज्ञान ने समस्त जड़-पिण्डों की भांति शरीर का संपूर्ण ज्ञान प्रस्तुत किया गया है, उसी प्रकार अध्यात्म भी प्राण-तत्व के संबंध में सभी शंकाओं से रहित विश्लेषण प्रस्तुत करता है। इसी अध्यात्म के कारण सदियों से विश्व में भारत का विशेष स्थान है।
सापेक्षता सिद्धांत के जन्मदाता अल्बर्ट आइंसटीन के अनुसार संसार में ज्ञान और विश्वास दोनों हैं। जहां ज्ञान को विज्ञान कहेंगे, वहीं विश्वास को धर्म या अध्यात्म कहेंगे। वे कहते हैं, 'मैं ईश्वर को मानता हूं, क्योंकि इस सृष्टि के अद्भुत रहस्यों में ईश्वरीय शक्ति ही दिखाई देती है।' अब विज्ञान भी इस बात का समर्थन कर रहा है कि संपूर्ण सृष्टि का नियमन एक अदृश्य चेतना कर रही है। स्वामी विवेकानंद भी अध्यात्म और विज्ञान को एक-दूसरे का विरोधी नहीं मानते थे। उनका विचार था कि पाश्चात्य विज्ञान का भारतीय वेदांत के साथ समन्वय करके विश्व में सुख-समृद्धि व शांति उत्पन्न की जा सकती है।
Published on:
20 Jul 2021 12:22 pm
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