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भारत की चिंता को उजागर करता अग्रलेख

कोरोना के विविध पहलुओं, इनके प्रभाव विशेषकर भारतीय लोगों पर असर तथा इनसे निपटने के उपायों को व्यक्त करते पत्रिका के प्रधान सम्पादक गुलाब कोठारी के 18 अप्रैल के अग्रलेख ‘नए भारत का निर्माण’ पर पाठकों ने सक्रियता से प्रतिक्रियाएं दी हैं। पाठकों ने आलेख को आगामी चुनौतियों के प्रति सचेत करने वाला तो बताया ही है, साथ ही उन्होंने इसे लोगों को साहसपूर्वक इनका सामना करने का रास्ता दिखाने वाला भी बताया है। प्रस्तुत है पाठकों की प्रतिक्रियाएं-

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Sacrifice and life

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भारत की चिंता की अभिव्यक्ति

गुलाब कोठारी का अग्रलेख भारत की चिंता को उजागर करता है। अथक प्रयासों से जो स्वतंत्रता हासिल की, जिस स्वतंत्रता को प्राप्त करने के लिए जीवन का अर्पण किया, वही भारत खंड-खंड हो रहा है। भारत विकासशील देशों की श्रेणी में अग्रसर था, वहीं इस कोरोना महामारी ने देश को आर्थिक स्तर पर बहुत पीछे कर दिया है और बेरोजगारी की समस्या फिर मुंह बाएं खड़ी है। देश की अर्थव्यवस्था चरमरा गई है। आज लॉकडाउन बनाम चक्काजाम की भयावह स्थिति से निकलने के लिए युद्ध स्तर पर विकसित देशों की तरह तपना होगा। कोठारी का सरकार पर तंज यथार्थ है कि वही स्थिति होगी कि’ घर में नहीं है दाने और अम्मा चली भुनाने।’ कानूनों पर पुनर्विचार हेतु समिति बनानी होगी। तभी इस इस भीषण समस्या से छुटकारा मिल सकता है। यह अग्रलेख सरकार, समाज और राष्ट्र के लिए एक दिशा निर्देश है।
डॉ चंचला दवे, वरिष्ठ साहित्यकार, सागर

सही समय पर सही मुद्दा
यह सही है कि कोरोना महामारी ने सरकारों की कमर तोड़ दी है। आर्थिक सेहत खराब हो रही है। आने वाला समय और ज्यादा खराब होने की आशंका है। गुलाब कोठारी ने सही समय पर सही मुद्दा उठाया है, लेकिन यह भी विचार होना चाहिए कि उस आम आदमी का क्या होगा जो रोज कमाता है, रोज खाता है। वर्क टू होम कल्चर शुरू हो गया है, लेकिन इस कल्चर में हर कोई नहीं ढला है। जाहिर है जो कदमताल नहीं कर पाएगा, वह बाहर होगा। इससे खासकर नौजवानों को चिंता सताने लगी है क्योंकि उसे डर है कि यह कोरोना कहीं उनकी नौकरी, उनका रोजगार न छीन ले। सरकार को इस पर गंभीरता से विचार करना होगा कि लोगों का रोजगार न छिने और चौथे स्तंभ की भी यही जिम्मेदारी है कि यदि ऐसा होता है तो वह उस बहुसंख्यक बेरोजगारों के साथ खड़ा हो।
इंजीनियर दीपक कुमार, भोपाल

पांच साल का कार्यक्रम जरूरी
कोरोना के कारण विश्व की अर्थव्यवस्था चौपट होगी। ऐसे समय में आम नागरिकों, सरकारों, औद्योगिक घरानों और निजी कम्पनियों को अगले पांच साल का एक कार्यक्रम बनाना पड़ेगा, ताकि हम जमींदोज होने वाली अर्थव्यवस्था को सुधार सकें। अराजकता की स्थिति न बने, क्योंकि स्थितियां बेहद प्रतिकूल आने वाली हैं। अग्रलेख में कोठारी की चिंता जायज है।
ओमप्रकाश यादव, सामाजिक कार्यकर्ता, छिंदवाड़ा

भारत की संस्कृति भारत की मूल पहचान है। हम सर्वहित की बात सोचते हैं। सब के कल्याण की कामना करते हैं और इस दृष्टि से भारत के सामने जो कोरोना की चुनौती आई, उसमें भारत जैसे विकासशील देश में बहुत बड़ी संख्या वंचित परिवारों की है जिनके पास भोजन नहीं है। सरकार ने इसके लिए प्रयास किए हैं और योजनाओं के माध्यम से उनके खातों में राशि पहुंचाने के अलावा निशुल्क अनाज के वितरण का काम भी चल रहा है। स्वयंसेवी संगठन और समाज के प्रत्येक वर्ग अपनी ओर से उन वंचितों को भोजन कराने में और उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए लगे हुए हैं। एक तरफ तो चुनौती गरीब परिवारों की है, जिनकी रोजी-रोटी छिन रही है और दूसरी ओर निम्न मध्यमवर्गीय परिवार हैं, जिनके पास किसी प्रकार की सरकारी सुविधा या राशन नहीं है और छोटे-मोटे व्यवसाय कारोबार करके अपना परिवार चलाते हैं। उनके लिए समय और भी चुनौती भरा है क्योंकि गरीब परिवारों को राशन, पका हुआ खाना तो शासकीय योजनाओं के माध्यम से और स्वयंसेवी संगठनों से पहुंच जाता है, लेकिन यह परिवार स्वाभिमान की वजह से बहुत बड़े अभावों का सामना कर रहे हैं। ऐसे में इनके व्यापार और काम धंधे को शासकीय सहयोग की आवश्यकता है और कोरोना के बाद जो स्थिति उत्पन्न होगी उसमें विशेष देखरेख की आवश्यकता है। कोरोना जैसी बीमारी का आज तक कोई इलाज नहीं निकला। सिर्फ घर में लॉकडाउन हो करके ही इससे बचा जा सकता है और सामाजिक दूरी बनाए रखना भी जरूरी है। भारत में स्वास्थ्य सुविधाएं अमेरिका और पश्चिमी देशों की तुलना में बहुत कम हैं। ऐसे में यह बीमारी महामारी का रूप ना ले, इसलिए लॉकडाउन होना भी जरूरी है। भारत ने हमेशा बड़ी-बड़ी चुनौतियों का सामना किया है और हमारे देशवासियों की इच्छाशक्ति से हम इस परेशानी पर भी विजय पा लेंगे। ऐसे में गुलाब कोठारी का लेख समग्र रूप से हर विषय पर चिंतन करने का अवसर प्रदान करता है।
शशांक श्रीवास्तव, निवर्तमान महापौर, कटनी