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नौकरशाहों की मानसिकता के साथ प्रशिक्षण में बदलाव का वक्त

शासन-प्रशासन: स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने के बाद वीके पांडियन बने ओडिशा में कैबिनेट मंत्री

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Nitin Kumar

Oct 30, 2023

Odisha 5T Secretary V K Pandian

Odisha 5T Secretary V K Pandian

प्रेमपाल शर्मा
शिक्षाविद और पूर्व संयुक्त सचिव, भारत सरकार
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स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने के एक दिन बाद ही ओडिशा काडर के आइएएस अधिकारी वी.के. पांडियन को नवीन पटनायक के मंत्रिमंडल में कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिए जाने की खबर ने पूरे देश का ध्यान खींचा है। लोकतंत्र का विकास लोक के हित के साथ जुड़ा हुआ है। समस्याओं का समाधान होना चाहिए। यह काम कोई नौकरशाह करे या राजनीतिज्ञ, उसकी तारीफ की जानी चाहिए।

क्या यह लगातार चलने वाली वंशवादी जातिवादी धर्मवादी राजनीति का अच्छा विकल्प नहीं है? क्या यह राष्ट्रीय एकता का प्रतीक नहीं है, जब तमिलनाडु में पैदा हुआ और फिजियोलॉजी में एमएससी नौजवान ओडिशा के लोगों के बीच इतना लोकप्रिय हो जाता है कि वह विकास का नया मॉडल लेकर सामने आता है। पांडियन की खूबियां पूरी नौकरशाही के लिए भी उदाहरण हंै। उनकी पत्नी सुजाता कार्तिकेय भी उनके ही बैच की आइएएस अधिकारी हैं, लेकिन इस दंपती पर न सत्ता के दुरुपयोग का आरोप लगा और न ही जनता से दूरी का। यूपीएससी से चुने हुए अधिकारियों के बारे में कहा जाता है कि निश्चित रूप से वे सर्वश्रेष्ठ हैं, लेकिन सत्ता उनकी प्रतिभा का ठीक तरह से उपयोग नहीं कर पाती। इसीलिए वेे धीरे-धीरे आराम तलब जीवन और भ्रष्टाचार की तरफ बढ़ते जाते हैं। 70 के दशक में भारत में अमरीकी राजदूत गेलब्रेथ से लेकर अनेक विद्वानों ने भारतीय नौकरशाही को दुनिया की भ्रष्टतम व्यवस्था बताया था। कई कमेटियों और प्रशासनिक सुधार आयोगों ने भी इन कर्मियों की खामियों पर उंगली रखी है, लेकिन सुधार की तरफ अभी कदम उठाना बाकी है। चिंताजनक बात यह है कि पिछले कुछ दशकों में इस वर्ग में और भी ज्यादा गिरावट आई है। आजादी के तुरंत बाद ब्रिटिश काल के आइसीएस का जो मजबूत स्टील फ्रेम मिला था, वह 1970 तक आते-आते छीजने लगा। मिली-जुली सरकारों और जन प्रतिनिधियों का अनैतिक दबाव भी इसके लिए जिम्मेदार है। आइएएस-आइपीएस अधिकारियों के तबादले और शिकायतों के लिए ही वे अपनी ताकत का प्रदर्शन करते रहे। याद कीजिए बिहार में डीएम जी. कृष्णैया की हत्या को। कृष्णैया बेहद ईमानदार थे, लेकिन उनकी हत्या कर दी गई। उत्तर भारत में तो नौकरशाहों के भ्रष्टाचार के किस्से उतने ही प्रचलित हैं जितने राजनेताओं के। इसके लिए वे नेता भी जिम्मेदार हंै, जो उन पर अंकुश लगाने की बजाय उनसे सांठगांठ करके सत्ता में बने रहना चाहते हैं।

प्रश्न उठता है प्रतिवर्ष लगभग 1000 चुने हुए अधिकारियों में से पांडियन जैसे अधिकारियों की संख्या लगातार कम क्यों हो रही है? इसका मुख्य कारण प्रशिक्षण और राजनीतिक व्यवस्था लगता है। प्रशिक्षण के दौरान ही उनकी मानसिकता ‘हाकम’ जैसी बना दी जाती है। कई रिपोर्टें बताती हैं कि प्रशासनिक सेवा में आने के 2-4 महीने के अंदर ही उनका मिजाज बदल जाता है। वे जनता से दूरी बनाने लगते हैं। अंग्रेजी उनके दंभ में और इजाफा करती है। इसीलिए वर्ष 2019 में प्रधानमंत्री ने संसद में यह स्वीकार किया था कि नौकरशाही में सुधर बाकी है। उन्होंने तो इस बात पर भी आश्चर्य जताया था कि कैसे एक अधिकारी तेल मंत्रालय में भी सर्वोच्च पद पर पहुंच जाता है और चिकित्सा मंत्रालय में भी। उनका जोर इस बात पर भी था कि अधिकारी जनता के सेवक के रूप में काम करें।

प्रतिवर्ष 21 अप्रेल को ऐसे सभी अच्छे अधिकारियों को सिविल सेवा पुरस्कार भी दिया जाता है। पुरस्कार और तमगे बांटने से ज्यादा जरूरी है, इनकी संपूर्ण प्रशिक्षण प्रक्रिया में बदलाव। विशेष कर उनको भारतीय परिवेश की पूरी जानकारी होनी चाहिए। तकनीकी ज्ञान ही पर्याप्त नहीं है, भारतीय कला और संस्कृति को जानना भी आवश्यक है।