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Patrika Opinion: समस्या का समाधान नहीं है जीवन से पलायन

हर व्यक्ति के जीवन में संकट आते हैं, इन संकटों का प्रकार अलग-अलग हो सकता है, लेकिन इसका मतलब यह कतई नहीं है कि मौत को ही गले लगा लिया जाए।

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Nitin Kumar

Oct 29, 2023

Patrika Opinion: समस्या का समाधान नहीं है जीवन से पलायन

Patrika Opinion: समस्या का समाधान नहीं है जीवन से पलायन

आत्महत्या के मामलों पर लगाम लगाने के लिए वैश्विक स्तर पर प्रयास किए जा रहे हैं। भारत में भी लोगों को विभिन्न स्तरों पर इस संबंध में जागरूक करने की कोशिश हो रही है, लेकिन देश में कहीं न कहीं से आत्महत्या के दिल-दहलाने वाले मामले सामने आ ही जाते हैं। इसी तरह का एक मामला गुजरात के सूरत शहर में हुआ। एक व्यापारी ने पहले तो अपने माता-पिता, पत्नी और तीन बच्चों को जहर दिया। इसके बाद खुद भी जहर पीकर आत्महत्या कर ली। आत्महत्या का कारण आर्थिक तंगी माना जा रहा है।

इंटीरियर डिजाइन और फर्नीचर का काम करने वाले व्यवसायी के परिवार की बाहरी चकाचौंध को देखते हुए कोई यह अनुमान नहीं लगा सकता था कि वह किसी गंभीर आर्थिक संकट में फंसा हुआ है और ऐसा खौफनाक कदम भी उठा सकता है। खुदकुशी करने से पहले अपने परिजनों की जान लेने का यह पहला मामला नहीं है। ऐसी घटनाएं अक्सर सामने आती रहती हैं। यह विडंबना ही है कि परिजनों की सुरक्षा की चिंता ही उनकी मौत का कारण बन जाती है। सब जानते हैं आत्महत्या किसी भी समस्या का समाधान नहीं होती, लेकिन आत्महत्या करने वाले को लगता है कि जीवन से पलायन ही समाधान है। हर व्यक्ति के जीवन में संकट आते हैं, इन संकटों का प्रकार अलग-अलग हो सकता है, लेकिन इसका मतलब यह कतई नहीं है कि मौत को ही गले लगा लिया जाए।

कोरोना के बाद आर्थिक संकट के कारण आत्महत्या के मामलों में बढ़ोतरी हुई है। एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2021 में भारत में एक लाख 64 हजार से ज्यादा लोगों ने आत्महत्या की थी। आत्महत्या करने वाले लोगों में एक बड़ा वर्ग उन लोगों का था जिनका खुद का रोजगार था। इस वर्ग में कुल 20,231 लोगों ने आत्महत्याएं कीं। एक तरफ इस विचार को आगे बढ़ाया जा रहा है कि नौकरी मांगने वाले नहीं, देने वाले बनो, दूसरी तरफ व्यापारी वर्ग और छोटे स्वरोजगार से जुड़े लोगों में आत्महत्या के बढ़ते मामले चिंता जताने वाले हैं। आत्महत्या चाहे जिस भी वर्ग का व्यक्ति करे, उसे रोकने के प्रयास हर स्तर पर आवश्यक हैं। सरकार, समाज और परिवार के स्तर पर इस समस्या पर गंभीर चिंतन होना चाहिए। समय रहते ऐसे लोगों को पहचान कर उनकी सही तरीके से काउंसलिंग की जाए, तो संभव है वे निराशा की सुरंग से निकल कर आशा रूपी उजाले को महसूस करें और आत्महत्या करने का विचार ही त्याग दें।