
आपकी बात, धार्मिक कार्यक्रमों में दिखावे की प्रवृत्ति बढ़ने का क्या असर हो रहा है?
धार्मिक कार्यक्रम सादगी से हों
धार्मिक कार्यक्रमों में दिखावा होने से अंधविश्वास और खर्चा बढ़ जाता है। सभी धर्म संतोष व त्याग की सीख देते हैं किंतु आज धर्म बेहद दिखावा हो गया है। यह कहना दो राय नहीं होगा कि धर्म भी रोजगार के साधन बन गए हैं। धर्म मनुष्य को आध्यात्मिक, त्यागी, संतोषी बनाता है अत: हमें धार्मिक कार्यक्रमों में दिखावे से बचना चाहिए और सादगी से धार्मिक कार्यक्रम करने चाहिए।
—आजाद पूरण सिंह राजावत, जयपुर
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अपनों की उपेक्षा
समय के साथ बदलते समाज में दिखावे की प्रवृत्ति तेज़ी से बढ़ रही है। आजकल ज्य़ादातर लोग दूसरों के सामने अपनी नकली छवि पेश करते हैं। जीवन में अब पहले जैसी सहजता नहीं रही।चाहे बात हो धार्मिक आयोजनों की या शादी समारोह की, लोग दूसरों को दिखाने के किए अंधाधुंध खर्च करते हैं। इसे लोगों ने सामाजिक प्रतिष्ठा का विषय बना लिया है। जैसे नवरात्र के दिनों में घर की माता का खयाल नहीं है, लेकिन ठाट—बाट से मंदिर की माता के पास जरूर जाना होता है।
—डॉ.अजिता शर्मा, उदयपुर
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अंधविश्वास में बढ़ोतरी
धार्मिक कार्यक्रमों में दिखावे की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है। ऐसे कार्यक्रमों में दिखावे की प्रवृत्ति के दम पर अंधविश्वास फैला जनसैलाब को अपनी ओर आकर्षित कर उनका उपयोग अपने हित साधने मे किया जा रहा है। धार्मिक कार्यक्रमों का उद्देश्य नैतिक मूल्य मजबूत करना होना चाहिए, संकीर्णता और अंधविश्वास फैलाना नहीं।
कमल सिंह रघुवंशी, रतलाम, मप्र
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धन का हो रहा दुरुपयोग
आजकल धार्मिक कार्यक्रमों में धर्म को दिखावे के रूप मे पेश किया जाने लगा है। दिखावे की प्रवृत्ति के चलते, धार्मिक कार्यक्रमों में करोड़ों रुपए व्यर्थ में खर्च करने की परंपराएं शुरू हो गई हैं। धर्म के नाम पर होने वाले दिखावे के कार्यक्रमों में, फिल्मी गीत - संगीत पर नाचने वालों का सहारा लिया जाने लगा है, जो धर्म प्रेमी श्रद्धालुओं को नहीं रास आ रहा है। धार्मिक कार्यक्रमों के आयोजक, यदि दिखावा न करते हुए इस राशि का सदुपयोग करें, तो अनेक परिवार अपना जीवन यापन भली भांति कर सकते हैं। हजारों बेघर - अभावग्रस्त लोग उचित सहारा पा सकते हैं।
—नरेश कानूनगो, देवास, मध्यप्रदेश
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नेताओं की सक्रियता
धार्मिक कार्यक्रमों में जनता को भगवान के करीब लाने का प्रयास किया जाता था,
वर्तमान में मात्र नेताओं के करीब लाने का प्रयोग और प्रयास किया जा रहा है।
फज़़ल अकबर ज़ई, भोपाल
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जरूरी है धार्मिक सहिष्णुता
धार्मिक कार्यक्रमों में दिखावा बढ़ रहा है। लोग सर्वधर्म समभाव की संस्कृति को भूलते हुए केवल कट्टरता की ओर बढ़ रहे हैं। लोकतांत्रिक व धर्मनिरपेक्ष भारत में धार्मिक सहिष्णुता पर जोर दिया जाना चाहिए।
—सी. आर. प्रजापति, जोधपुर
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बढ़ने लगा है अंधविश्वास
धार्मिक कार्यक्रमों में दिखावे की प्रवृत्ति के कारण अंधविश्वास बढ़ने लगा है। लोग इसके कारण ठगी का शिकार अधिक होने लगे हैं।
—प्रियव्रत चारण, जोधपुर
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बढ़ रही है कट्टरता
अपने को अन्य की अपेक्षा कहीं अधिक श्रेष्ठ समझने की प्रवृत्ति के कारण कई तरह की समस्याएं बढ़ रही हैं। सच्चा धार्मिक बनने की होड़ कहीं नहीं है। धर्म के प्रति निष्ठा की बजाय कट्टरता बढ़ रही है।
- प्रहलाद यादव, महू, म.प्र.
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दिखावे की जगह नहीं
धर्म तो सादा जीवन और उच्च विचार और जीवन के उच्चतम नैतिक मूल्यों की बात करता है।उसमें दिखावे का कोई स्थान नहीं है। धर्म में दिखावा तो मात्र फैशन बन कर रह गया है।
—माधव सिंह, श्रीमाधोपुर सीकर
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बढ़ता है उन्माद
भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष देश में हर धर्म का बराबर आदर और सम्मान है। अपने अपने धर्म के अनुसार लोग यहां अपने धार्मिक कार्यक्रम में सक्रिय दिखाई देते हैं, यह उनकी धार्मिक स्वतंत्रता भी है। धार्मिक कार्यक्रमों में दिखावे की प्रवृत्ति से आस्था पर चोट पहुंचती हैं एवं इससे धार्मिक उन्माद पैदा होता है। भारत की संप्रभुता को बनाए रखते हुए धार्मिक कार्यक्रम आयोजित किए जाना चाहिए। पूर्ण निष्ठा एवं पवित्र मन से आयोजित किए जाने वाले धार्मिक कार्यक्रमों से समरसता का विकास होता है। धार्मिक कार्यों में दिखावे की प्रवृत्ति नहीं होनी चाहिए।
—सतीश उपाध्याय, मनेंद्रगढ़, छत्तीसगढ़
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Published on:
02 Mar 2023 04:47 pm
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