
आपकी बात, महिलाओं से जुड़े अपराधों में कमी क्यों नहीं हो पा रही ?
पितृसत्तात्मक मानसिकता
इसके पीछे पितृसत्तात्मक मानसिकता है। इस सत्ता को चुनौती देने वाली महिलाओं की आवाज कुचल दी जाती है। स्त्रियों को मात्र भोग की वस्तु माना जाता है। आधुनिक कहलाने वाले पुरुषों की स्त्रियों के प्रति सोच दूषित है। सोशल मीडिया के द्वारा बढ़ती अश्लीलता भी इसके प्रति उत्तरदायी है। -डॉ. अजिता शर्मा, उदयपुर
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अपराधियों में सजा का भय नहीं
इसका मूल कारण अपराधियों में सजा का भय नहीं होना है। पुलिस की कमजोर विवेचना, मुकदमों में लम्बा समय लगना। सजा मिलने के बाद भी कोर्ट में अपीलें चलती रहती हैं। - हरिप्रसाद चौरसिया, देवास, मध्यप्रदेश
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बदनामी के डर से सहती हैं दर्द
महिलाएं स्वयं दर्द सहती रहती हैं, लेकिन किसी को बताने से डरती हैं। उन्हें लगता है कि स्वयं के प्रति अपराध को बताया तो परिवार की बदनामी हो जाएगी।इससे अपराधियों में साहस बढ़ता जाता है। -प्रियव्रत चारण लव, जोधपुर
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सोशल मीडिया पर बने कानून
सोशल मीडिया को लेकर सरकार को सख्त कानून बनाना चाहिए। इससे ही महिलाओं के प्रति अपराध बढ़ रहे हैंं। -विकास कुमार, भिलाई, छत्तीसगढ
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महिलाओं को सताता है सामाजिक बदनामी का भय
महिलाओं की सुरक्षा कई कानून हैं,लेकिन सामाजिक बदनामी के डर से महिलाओं की रिपोर्ट नही कराना,सबूत के अभाव में दोषियों को देर से पकड़ने की वजह से न्याय में देरी होना,अपराधियों को सजा का डर न होना और पुरुष प्रधान मानसिकता इसके प्रमुख कारणों में से हैं।
निर्मला देवी वशिष्ठ, राजगढ़ अलवर
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अश्लील साहित्य से बढ रही विकृत मानसिकता
सोशल मीडिया में अश्लील साहित्य लोगों के दिमाग को विकृत कर रहा है। यही अश्लीलता महिलाओं के प्रति अपराध को बढ़ावा देने के लिए आग में घी का काम कर रही है। महिलाओं को भी बुद्धि विवेक एवं समझदारी से काम लेना चाहिए ।
सतीश उपाध्याय, मनेंद्रगढ़ छत्तीसगढ़
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सोशल मीडिया है इसका जिम्मेदार
देश मे महिलाओं के प्रति अपराध मे कमी नहीं आने का बड़ा कारण सोशल मीडिया पर अधिक समय बिताना है। यहां इतनी अभद्र व अश्लील सामग्री उपलब्ध हैं कि उसे देखकर लोगों की मानसिकता बदल जाती हे और वे अपराध करने पर उतारू हो जाते हैं।
लता अग्रवाल चित्तौड़गढ़
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कानूनों का हो कठोरता से हो पालन
कानूनों का कठोरता से पालन न होना, महिला साक्षरता में कमी, समाज में अनेक कुप्रथाएं, सोशल मीडिया के दुष्परिणाम आदि जिम्मेदार हैं । आशा है कि भविष्य में सरकार और समाज मिलकर इन अपराधों को नगण्य कर देगी।
महेन्द्र दादरवाल, अजमेर, राजस्थान
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लोगों की संकीर्ण मानसिकता
लोगों का मानना है कि महिलाएं केवल भोग और विलासिता की वस्तु है। इस संकीर्ण सोच को बदलने की शुरुआत हमें अपने घर से करनी चाहिए, हमें अपने बच्चों को महिलाओं का सम्मान और आदर करना बचपन से ही सिखाना चाहिए। हम बदलेंगे तो देश बदलेगा।
संदीप कुमावत, जयपुर
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Published on:
16 Jan 2024 05:16 pm
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