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आर्ट एंड कल्चर : चांद की रोशनी में रंगे शब्द

- चांद की धवल रोशनी मन को विरल भावों से नहलाती है, नया सृजित करने को उकसाती है

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आर्ट एंड कल्चर : चांद की रोशनी में रंगे शब्द

आर्ट एंड कल्चर : चांद की रोशनी में रंगे शब्द

डॉ. राजेश कुमार व्यास, कला समीक्षक

शब्द दरवेश हैं। दरवेश माने फकीर। वह जो दर-दर जाता है, गीत गाता है, लोगों को जगाता है। फिल्मी गीतों में बहुतेरे शब्द दरवेश रूप में सौंदर्य बिखेरते हैं। वैसे ही, जैसे चांद अपनी रोशनी से लुभाता मन में नया कुछ बुनने को प्रेरित करता है। गुलजार की शायरी में चांद का उपयोग बार-बार हुआ है। उनके लिखे और लता के गाये 'रोज अकेली आए, रोज अकेली जाए, चांद कटोरा लिए भिखारन रात' सुनते हुए शमशेर के शब्द औचक याद आए।

बचपन में अज्ञेय के साथ शमशेर को भी सर्वाधिक पढ़ा। शायद इसीलिए उनकी 1937 में लिखी एक कविता 'स्थिर है शव-सी बात' में 'आधा चांद कटोरा कांसे का-सा' पंक्ति पढ़ कर याद आया, गुलजार ने 'चांद कटोरा' व्यंजना यहां से ली है। इस गीत में आता है 'चांद कटोरा लिए भिखारन रात'। यहां 'भिखारन रात' व्यंजना बंगाल में रात को भीख के लिए जाने वाले जोगी समूह, जिन्हें 'रात भिखारी' कहा जाता है, से प्रेरित है। गुलजार ने यह गीत शमशेर की कविता पंक्ति 'चांद कटोरा' और बंगाल की 'रात भिखारी' परम्परा से प्रेरित होकर लिखा। गुलजार के लेखन में पढऩा, प्रकृति-परिवेश से जुड़े रहना ही नहीं, अनुभूतियों का अन्वेषण है। गुलजार इस से पूरे गुलजार हैं।

बहरहाल, इस बार पूर्णमासी के दिन छत पर भरा-पूरा, खिला चांद देखा तो और भी बहुत कुछ याद आता रहा। चांद की धवल रोशनी मन को विरल भावों से नहलाती है, प्राय: नया कुछ सृजित करने को उकसाती भी रही है। मजरूह का लिखा 'आज तो जूनली रात मा धरती पर है आसमा, कोई रे बनके चांदनी उतरा मन के आंगना' भी पूर्ण चांद की रात को मन में गूंजता रहा। मजरूह ने इसमें 'जूनली रात' शब्द नेपाली भाषा से लिया। अर्थ है, पूनम का चांद। गीतों में बहुतेरी बार किसी शब्द की अपनी लय बन जाती है। अर्थ तब भले समझ नहीं आए, पर सौंदर्य मन में गहरे से उतरता है। शंकर जयकिशन की धुन में पिरोया 'रमैया वस्तावैया, मैंने दिल तुझको दिया' ऐसा ही गीत है। हिंदीभाषी ऐसे कम ही होंगे जो 'रमैया वस्तावैया' का अर्थ जानते हों, पर यह गीत आज भी कितना लोकप्रिय है, सब जानते हैं। 'रमैया वस्तावैया' शब्द तेलुगु भाषा के है। रमैया माने "राम या रामा" और वस्तावैया का अर्थ है "क्या तुम वापस आओगे"। कहते हैं, जयकिशन ने शंकर को बुलाते हुए यह शब्द बोले थे। मजरूह ने सुना तो उन्हें यह जँच गए और उन्होंने इनके आगे 'मैंने दिल तुझको दिया...' से पूरा गाना लिख दिया।