
बढ़ते शहरीकरण का सर्वाधिक दुष्प्रभाव वन्य प्राणियों और पर्यावरणीय संतुलन पर पड़ा है। विकास और उपभोक्तावादी संस्कृति की अंधी दौड़ ने मानवता को स्वच्छ वायु तक के लिए लाचार बना दिया है। प्रकृति भी ईश्वर के समतुल्य है।
बढ़ते शहरीकरण का सर्वाधिक दुष्प्रभाव वन्य प्राणियों और पर्यावरणीय संतुलन पर पड़ा है। विकास और उपभोक्तावादी संस्कृति की अंधी दौड़ ने मानवता को स्वच्छ वायु तक के लिए लाचार बना दिया है। प्रकृति भी ईश्वर के समतुल्य है।
विनायक गोयल, रतलाम
शहरों में सीमित क्षेत्रफल और साधनों से बड़ी जनसंख्या की आवश्यकताओं की पूर्ति संभव नहीं है। परिणामस्वरूप, शहरों में चोरी, अपराध की घटनाएं, बेरोजगारी, वाहनों की भीड़ ने ट्रैफिक जाम, सड़क दुर्घटनाओं और प्रदूषण की समस्या को बढ़ाया है। शिक्षा, स्वास्थ्य और स्वच्छता संबंधी सुविधाओं में बेहतर तालमेल रखना भी कठिन हुआ है। पानी और बिजली की समस्या भी बढ़ी है।
-गजानन पांडेय, हैदराबाद
बढ़ते शहरीकरण से कई नुकसान हो रहे हैं, जैसे वायु, जल और ध्वनि प्रदूषण में अकल्पनीय वृद्धि हो रही है, जो जनमानस के स्वास्थ्य के लिए अति कष्टदायक सिद्ध हो रही है। जल संकट बढ़ रहा है, भूमि की कमी हो रही है, जो कृषि और वनस्पति के लिए आवश्यक है। आवास की समस्या पैदा हो रही है, फलस्वरूप गरीब और मध्यम वर्ग को आवास प्राप्त करना मुश्किल हो रहा है। यातायात की समस्या गंभीर होकर आवागमन को कठिन बना रही है। अपराध, बेरोजगारी और सामाजिक असमानता बढ़ रही हैं। बढ़ता वायु प्रदूषण असंख्य बीमारियों को जन्म दे रहा है। बढ़ते शहरीकरण के कारण जल और ऊर्जा की कमी हो रही है और उनका अत्यधिक दोहन हो रहा है। कचरा प्रबंधन एक बड़ी समस्या बनकर पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहा है। सांस्कृतिक विरासत समाप्त होती दिखाई दे रही है। वन्य जीव घरों को छोड़ अस्तित्व की तलाश में शहरों में विचरण कर रहे हैं, जिससे इंसानों को हानि पहुंच रही है।
-संजय निघोजकर, धार (मप्र)
आजादी के बाद भारत में शहरीकरण बहुत तेजी से बढ़ रहा है, जिसके कारण पानी, पर्यावरण, हिंसा और स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं बहुत अधिक हो रही हैं। बढ़ती आबादी के कारण हरे-भरे पेड़ों को काटा जा रहा है, जिससे हरियाली की कमी हो रही है और तापमान में वृद्धि हो रही है। प्रदूषण और वायु गुणवत्ता में गिरावट आने के कारण स्वास्थ्य समस्याएं बढ़ गई हैं। वाहन उद्योग और निर्माण कार्यों से हवा में प्रदूषण फैल रहा है। भूजल का अत्यधिक दोहन हो रहा है, जिससे जल स्तर गिर रहा है। सड़कों, परिवहन, पानी और बिजली की मांग बढ़ रही है। अधिक शोर, भीड़-भाड़ और प्रदूषण के कारण मानसिक तनाव और श्वसन संबंधी बीमारियां बढ़ गई हैं।
मोदिता सनाढ्य, उदयपुर
तेज़ी से बढ़ते शहरीकरण से पर्यावरण असंतुलन बढ़ रहा है, जिससे जैव विविधता का ह्रास हो रहा है। जल, जंगल और ज़मीन से जुड़ी विभिन्न विसंगतियां प्रदूषण को बढ़ा रही हैं, जो ग्लोबल वार्मिंग को जन्म दे रही हैं। इनके समाधान और संतुलन के लिए एक वैश्विक नीति की आवश्यकता है, जो बढ़ते पर्यावरण असंतुलन को दूर कर सके।
-रूपसिंह ठाकुर, इंदौर
शहरीकरण के लाभ हैं, तो नुकसान भी कम नहीं। जब भी शहरों में कोई नई कॉलोनी विकसित होती है, तो हमें यह स्वीकारना ही होगा कि किसी न किसी गांव की कुर्बानी हुई है। शहरों में गांवों की तुलना में अधिक साधन, सुविधाएं, रोजगार, स्वास्थ्य और शिक्षा होती हैं। यह भी सच है कि ये सुविधाएं सभी को नसीब नहीं होतीं। रोजगार के लिए गांवों से शहरों में आने वाले बहुत से लोगों को कच्ची बस्तियों में रहने को बाध्य होना पड़ता है। शहरीकरण के कारण प्राकृतिक जल स्रोत समाप्त हो जाते हैं, जिससे पानी के संग्रहण के रास्ते बंद हो जाते हैं। शहरों में प्रदूषण, वायु और पानी की समस्या, सड़कों पर ट्रैफिक जाम, नई बीमारियों का प्रकोप और अपशिष्टों का निस्तारण एक विकट समस्या बन चुका है।
कपिल पेसवानी
शहरों की ओर पलायन करने से वहां की आबादी काफी बढ़ जाती है, जिससे शहरों की दुनिया छोटे कमरों में सिमट कर रह जाती है। बढ़ती आबादी के कारण प्रदूषण, स्वास्थ्य और भुखमरी जैसी समस्याएं जन्म ले रही हैं।
बढ़ते शहरीकरण के कारण स्वास्थ्य, पर्यावरण और रहवासी समस्याओं पर गंभीर प्रभाव पड़ता है। इससे न केवल स्थानीय प्रशासन पर आर्थिक बोझ बढ़ा है, बल्कि रोजगार योजनाओं को भी मूर्त रूप देने में सफलता नहीं मिल रही है। बेहतर होगा कि अब इससे निपटने के लिए ग्रामीण विकास को प्राथमिकता दी जाए।
-हरिप्रसाद चौरसिया, देवास
तेजी से बढ़ते शहरीकरण के कारण जनता को पर्याप्त मात्रा में मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध नहीं हो पा रही हैं और रोजगार के नाम पर कामगारों का आर्थिक व मानसिक शोषण हो रहा है। वही दूसरी ओर, जमीन की कीमतें बढ़ रही हैं और कृषि भूमि व जंगल घट रहे हैं, जिससे खतरनाक जानवरों का भय बढ़ता जा रहा है।
-सुनील कुमार माथुर, जोधपुर
बढ़ते शहरीकरण ने देश के प्रमुख शहरों की आबोहवा ही बदल दी है। लोगों का विशाल समूह रोजगार के अवसरों की प्राप्ति हेतु गांवों से शहरों की ओर पलायन करता है, जिससे शहरों पर दबाव बढ़ रहा है। जनसंख्या वृद्धि, संसाधनों का असमान वितरण, भीड़, प्रदूषण और अपराध बढ़ते शहरीकरण के परिणाम हैं।
डॉ. गोविंद कुमार मीना, सवाई माधोपुर
Published on:
09 Jan 2025 01:48 pm
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