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कैंसर के कारण जिंदगी-मौत से जूझ रहे हैं डिंको सिंह, लॉकडाउन के कारण नहीं हो पा रहा इलाज

locationनई दिल्लीPublished: Apr 20, 2020 01:30:25 pm

Submitted by:

Mazkoor

Dingko Singh सिंह उन गिने-चुने बॉक्सरों में से एक हैं, जिन्होंने भारत में मुक्केबाजी को लोकप्रियता दिलाई। मैरी कॉम भी उन्हें अपना आदर्श मानती है।

dingko singh

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इम्फाल : 1998 में बैंकॉक एशियाड में देश को स्वर्ण दिलाने वाले बॉक्सर डिंको सिंह (Dingko Singh) लीवर के कैंसर से जूझ रहे हैं और ऐसे समय में वह लॉकडाउन में इंफाल में फंसे हैं। दिल्ली में उनका इलाज चल रहा था, लेकिन लॉकडाउन की वजह से वह अपने इलाज के लिए देश की राजधानी नहीं आ पा रहे हैं। 24 मार्च से लेकर 19 अप्रैल तक डिंको की पत्नी बबई डिंको सिंह के इलाज के लिए तीन बार दिल्ली के लिए हवाई जहाज का टिकट बुक करा चुकी हैं, लेकिन हर बार रद्द हो गया। बता दें कि डिंको सिंह उन गिने-चुने बॉक्सरों में से हैं, जिन्होंने भारत में मुक्केबाजी को लोकप्रियता दिलाई। पांच बार की विश्व विजेता मैरी कॉम (Mary Kom) भी उनकी प्रशंसक हैं।

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इलाज न मिलने से बढ़ गई है परेशानी

डिंको सिंह इलाज कराकर 10 मार्च को दिल्ली के लीवर संस्थान से इंफाल गए थे। उन्हें यहां दिखाने 25 मार्च को दोबारा आना था। इससे पहले लॉकडाउन हो गया। डिंको सिंह ने कहा कि उनकी पत्नी बबई उनके इलाज के लिए सड़क मार्ग से भी ले जाने को तैयार है, पर यह भी संभव नहीं हो पा रहा है। बीमारी के कारण डिंको सिंह का वजन 80 से 64 किलो रह गया है। उन्होंने बताया कि वह इंफाल में कई डॉक्टरों से बात चुके हैं, लेकिन जो इलाज चाहिए वह वहां नहीं है। इसके बावजूद उन्हें वहीं इलाज कराना पड़ रहा है। डिंको की पत्नी कहती हैं कि एयर एंबुलेंस से दिल्ली जाया जा सकता है, लेकिन ऐसा कैसे हो पाएगा, इसकी उन्हें कोई जानकारी नहीं है।

फोन पर दिल्ली के डॉक्टर कर रहे हैं मदद

दिल्ली में डिंको सिंह का ऑपरेशन करने वाले डॉ. विनेंद्र पामेचा का कहना है कि इम्फाल से डिंको सिंह का फोन आया था। उन्होंने उनसे कहा है कि वह इंफाल में किसी कैंसर विशेषज्ञ के पास जाएं और फोन पर उनसे उनकी बात करा दें। डॉक्टर विनय के अनुसार कोई कैंसर विशेषज्ञ ही उनकी कोमीथेरेपी कर सकता है।

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काफी परिश्रम से बनाया था मुकाम

डिंको सिंह का जन्म 1 जनवरी 1979 को मणिपुर के इंफाल ईस्ट जिले के एक गांव सेकता में हुआ। उनका परिवार काफी गरीब था। इस कारण उन्हें शुरुआत में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। उनकी परवरिश एक अनाथालय में हुई। इसके बावजूद उन्होंने गरीबी के आगे घुटने नहीं टेके और बॉक्सिंग में अपना एक अलग मुकाम बनाया। 1998 में बैंकाक एशियाड में वेंटमवेट वर्ग में उन्होंने स्वर्ण पदक जीता। इसके बाद उन्हें भारत सरकार ने उन्हें अर्जुन अवॉर्ड और फिर 2013 में पद्मश्री से भी सम्मानित किया। एक बार फिर उनकी स्थिति बेहद खराब है। अपने इलाज के लिए उन्हें अपना घर तक बेचना पड़ा है।

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