7 दिसंबर 2025,

रविवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

1957 में यहां प्रभात फेरी से शुरू हुआ था अग्रवाल जयंती महोत्सव, तब और क्या थी खास बात, जानिए पूरी खबर

अग्रसेन जयंती महोत्सव विशेष : घर से ले जाते थे खाना और एक साथ मिलकर करते थे भोजन

2 min read
Google source verification

पाली

image

Suresh Hemnani

Sep 28, 2019

1957 में यहां प्रभात फेरी से शुरू हुआ था अग्रवाल जयंती महोत्सव, तब और क्या थी खास बात, जानिए पूरी खबर

1957 में यहां प्रभात फेरी से शुरू हुआ था अग्रवाल जयंती महोत्सव, तब और क्या थी खास बात, जानिए पूरी खबर

पाली। शहर के प्रमुख समाजों में से एक अग्रवाल समाज [ Aggarwal Samaj ] के अग्रसेन जयंती महोत्सव [ Agrasen Jayanti Festival ] मनाने का इतिहास काफी पुराना है। 1957 में प्रभात फेरी व हवन के आयोजन से अग्रसेन जयंती महोत्सव मनाने की शुरुआत हुई। उसके बाद 1967 में शोभायात्रा निकालने का क्रम शुरू हुआ, जो आज भी जारी है। समाज के वरिष्ठ लोग बताते हैं कि पहले अग्रसेन जयंती पर लाखोटिया में मेला [ Fair in Lakhotia ] भरता था। समाजबंधु घर से खाना बनाकर साथ ले जाते और एक साथ भोजन करते थे। इससे आपस में घनिष्ठता बढ़ती तथा सभी से मेल-मिलाप हो जाता था।

बच्चों के लिए होती थी प्रतियोगिताएं
अग्रवाल पंचायत [ Aggarwal Panchayat ] के सात बार अध्यक्ष रह चुके 97 वर्षीय परसराम शाह बताते है कि वर्ष 1957 से सेलाराम चमडिय़ा, दौलतराम भरतिया व नथमल कंदोई ने अग्रसेन जयंती मनाने की शहर में शुरुआत की। उस समय जयंती पर समाजबंधुओं ने प्रभात फेरी निकालने एवं हवन कार्यक्रम आयोजित कर जयंती मनाने शुरू किया। वर्ष 1967 में रामनिवास बंसल, श्याम चमडिय़ा व भंवरलाल जयपुरिया ने प्रभात फेरी की जगह शहर में भगवान अग्रसेन की शोभायात्रा निकालना शुरू किया। इस मौके बच्चों के लिए विभिन्न प्रतियोगिता भी आयोजित करना शुरू किया गया।

लाखोटिया में भरता था मेला
86 वर्षीय रामेश्वर गोयल बताते है कि जयंती महोत्सव मनाने का उद्देश्य समाजबंधुओं का आपस में प्रेम व सौहार्द बढ़ाना था। पहले समाज के लोग जयंती महोत्सव पर लाखोटिया में एकत्रित होते थे। घर से खाना साथ ले जाते थे और एक साथ बैठकर सभी भोजन करते थे। इस दौरान लाखोटिया में मेला भी भरता था।

मेले में ही तय हो जाते थे कइयों के रिश्ते
अग्रवाल समाज के गजानंद गोयल बताते है कि समय के साथ मेले का रूप बदलता गया। मेले में समाजबंधुओं का मेलजोल होता था। विवाह योग्य कई युवक-युवतियां भी परिवार सहित मेले में आते थे। ऐसे में कइयों के रिश्ते तो मेले में ही तय हो जाते थे।

शहर में 600 परिवार, मिलजुल कर करते हैं आयोजन
अग्रवाल समाज के अध्यक्ष अरुण गुप्ता बताते हैं कि शहर में करीब 600 घर अग्रवाल बंधुओं के है। अधिकतर व्यापार से जुड़े हुए है। इस बार अग्रसेन जयंती महोत्सव 14 दिवसीय मनाया जा रहा है। जिसमें प्रतिभाओं को सम्मानित करने, शोभायात्रा, मेले से लेकर, बच्चों व बड़ों सहित महिलाओं के मनोरंजन के लिए भी कई तरह की प्रतियोगिताएं आयोजित कर रहे है।