देश में डिजिटल क्रांति के चलते बच्चों को ऑनलाइन पढ़ाया जा रहा है। स्कूलों में डिजिटल बोर्ड, प्रोजेक्टर समेत कम्प्यूटर आधारित शिक्षण और ऑनलाइन शिक्षण के लिए महंगे उपकरण उपलब्ध करवाए गए है। लेकिन शिक्षा के क्षेत्र में पिछड़े माने जा रहे जालोर जिले के नेहड़ क्षेत्र में कुछ गांवों में सरकारी स्कूलों के बच्चों के लिए आनलाइन शिक्षण एक सपना है।
देश में डिजिटल क्रांति के चलते बच्चों को ऑनलाइन पढ़ाया जा रहा है। स्कूलों में डिजिटल बोर्ड, प्रोजेक्टर समेत कम्प्यूटर आधारित शिक्षण और ऑनलाइन शिक्षण के लिए महंगे उपकरण उपलब्ध करवाए गए है। लेकिन शिक्षा के क्षेत्र में पिछड़े माने जा रहे जालोर जिले के नेहड़ क्षेत्र में कुछ गांवों में सरकारी स्कूलों के बच्चों के लिए आनलाइन शिक्षण एक सपना है। यहां बच्चों के लिए कम्प्यूटर तो क्या बैठने के लिए कक्षा कक्ष भी उपलब्ध नहीं है। जिले के नेहड़ क्षेत्र में आज भी बच्चे छप्परे में पढऩे को मजबूर है। यहां बच्चों के लिए कक्षा कक्ष नहीं है। सर्दी, गर्मी व बारिश में मासूम बच्चे इन्हीं छप्पर में पढऩे को मजबूर है। क्षेत्र पांच से छह स्कूलों के विद्यार्थी आज भी यहां मूलभूत सुविधाओं से वंचित है।
यहां छप्पर में चलते हैं स्कूल
चितलवाना उपखंड क्षेत्र के राजकीय प्राथमिक विद्यालय लखावांगा सुथड़ी कोलियों की ढाणी में 30 का नामांकन है। यह विद्यालय 2013 से संचालित है। राजकीय प्राथमिक विद्यालय वरहा की ढाणी साकरीया में 29 का नामांकन है। इस विद्यालय का संचालन भी 5 जनवरी 2013 से हो रहा है। वहीं राजकीय प्राथमिक विद्यालय कोलियों की ढाणी आकोडिया, राजकीय प्राथमिक विद्यालय अनुसूचित जाति बस्ती संस्कृत विद्यालय रताकोली की ढाणी आकोडिया में बच्चे मूलभूत सुविधाओं के वंचित है। हालांकि इन विद्यालयों के लिए दानदाताओंं की ओर से भूमि उपलब्ध करवाई गई है। लेकिन अभी तक कक्षा कक्षों के निर्माण को लेकर कोई प्रगति नहीं हुई है।
गर्मी में हालत खराब
पत्रिका संवाददाता ने नेहड़ क्षेत्र के दूरस्थ गांवों का दौरा कर स्कूलों के हालात जाने तो यहां न तो बच्चों के बैठने के लिए भवन थे और ना ही छाया की पर्याप्त व्यवस्था। गर्मी व उमस में यहां बच्चों की हालत खराब हो जाती है।
इनका कहना
स्कूलों के भूमि संबंधी दस्तावेज उच्चाधिकारियों को भेजे हुए हैं। उन्हें भवन निर्माण को लेकर अवगत करवा दिया है। लखावांगा, वरहा की ढाणी, कोलियों ढाणी, संस्कृत विद्यालय रताकोली की ढाणी के भवन निर्माण को लेकर विभागीय स्तर पर कार्यवाही चल रही है।
-मंगलाराम खोखर, एसीबीईईओ चितलवाना
वरहा की ढाणी विद्यालय साकरीया में भवन के अभाव में छप्पर में बच्चों को पढ़ा रहा हूं। यहां 29 का नामांकन है। विद्यालय को दस साल से भवन का इंतजार है। ग्रामीणों के सहयोग से विभिन्न व्यवस्थाएं पूरी कर स्कूल का संचालन कर रहे है।
-श्यामसुंदर, अध्यापक, वरहा की ढाणी साकरीया